दिन के बारह बजे।
रोहिणी कोर्ट का प्रांगण, हलचल होता हुआ, वहां हर एक को जल्दी थी। किसी को अग्रिम जमानत चाहिए था, इस कारण से वकीलों से उलझा हुआ था। तो किसी के केस तारीख की पेशी थी। ऐसे में कोर्ट रूम के बाहर वकील भी अपने-अपने सेटिंग में लगे हुए थे। अंदर कोर्ट रूम में अभी सन्नाटा पसरा हुआ था, क्योंकि लंच टाइम का ब्रेक जो हुआ था।
लेकिन वकीलों को इससे क्या? जिसकी चलती थी, वो अपने क्लाइंट से पैसे के लेन-देन के बारे में बातें कर रहा था। तो जिसकी चलती नहीं थी, वह क्लाइंट यानी कि मुल्ले की तलाश कर रहा था। अजीब सा हलचल मचा हुआ था चारों तरफ।....तभी कोर्ट रूम के मुख्य द्वार से सलिल की स्काँरपियों ने प्रवेश किया और पार्किंग में आ कर लगी।....फिर तो सलिल एवं रोमील कार से बाहर निकले और वकील राघव जुनेजा के आँफिस की ओर बढे।....उस राघव जुनेजा के आँफिस की ओर बढे, जिनके बारे में कहावत थी कि वो "केस हारते नहीं"। ऐसे में दोनों चलते हुए जुनेजा के आँफिस में पहुंचे और वहां पहुंचते ही चौंके।
.....उनके चौंकने का कारण भी तो विशिष्ट था, क्योंकि वकील जुनेजा, दुनिया से बेफिक्र होकर गहरी निंद में सोया हुआ था। उसके पैर टेबुल पर रखे हुए थे और सिर कुर्सी पर टिकी हुई थी। सामने वीजिटिंग चेयर खाली ही थी, जिससे प्रतीत होता था कि उसके पास कोई काम नहीं हो।.....परन्तु ऐसी बात तो बिल्कुल भी नहीं थी, जुनेजा का तो सिर्फ नाम बिकता था। भरा-भरा गोल चेहरा, आँखों पर चश्मा, घुंघराले बाल और गठा हुआ शरीर, उसपर नीली आँखें और कड़क मूँछें। राघव जुनेजा की यही विशिष्ट पहचान थी। लेकिन उसमें एक खासियत थी कि वो बिना मतलब के केस हाथ में लेता ही नहीं था। इसलिये ही उसके आँफिस में अनावश्यक भीड़ जमा नहीं होती थी।
उसे इस प्रकार से गहरी निंद में खोया हुआ देखकर सलिल और रोमील सकते में आ गए। उन्हें इस परिस्थिति में समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें। अगर उन्होंने जुनेजा को कच्ची निंद से जगा दिया और वो खामखा ही बुरा मान गया तो।.....सलिल जानता था कि इस बात की संभावना ज्यादा थी,....क्योंकि जुनेजा मूडियल इंसान था। ऐसे में सलिल उलझन में फंसा हुआ था कि अब क्या करें?....तभी आँफिस में मृदुल शाहा ने कदम रखा और उन्होंने एक बार गहरी नजरों से राघव जुनेजा को निंद में खोए हुए देखा और मुस्कराए,...फिर ऊँचे स्वर में बोले।
मिस्टर जुनेजा.....अब निंद से जगो भी!....देखो, हम लोग आ चुके है। एस. पी. साहब ने कहा और उसकी प्रतिक्रिया भी हुई। जुनेजा की आँख खुल गई और जब उसने उन लोगों को खड़े देखा, हकबका कर संभल कर बैठ गया और खुद पर नियंत्रण करके बोला।
साँरी सर.....आप लोग आए और मैं सो गया था।.....आप लोग बैठिए न। बोलने के बाद जुनेजा एस. पी. साहब के चेहरे को देखने लगा। जबकि तीनों आगे और बैठ गए, तब मृदुल शाहा बोले।
मिस्टर जुनेजा.....इसमें साँरी कहने जैसी कोई बात नहीं है। मैं आपके व्यक्तित्व और कार्य करने के तरीकों से पूर्ण परिचित हूं। बोलने के बाद एस. पी. साहब एक पल के लिए रुके और जुनेजा के चेहरे को देखते हुए थोड़ा आगे झुके, फिर बोले। वैसे मिस्टर जुनेजा.....आप से बात की थी, उसी कार्यवाही के सिलसिले में हम लोग आए हैं।
नो टेंशन सर.....मैं हूं न, देख लूंगा। आप चिन्ता मत कीजिए और निश्चिंत रहिए। कोर्ट का तो काम ही है, फटी में टांग अड़ा देना,.....लेकिन हम वकील लोग है न उस समस्या के निवारण के लिए। एस. पी. साहब की बातें खतम होते ही जुनेजा तपाक से बोला।
फिर अचानक ही उसने कलाईं घड़ी को देखा, जो दिन के साढे़ बारह बजने की सूचना दे रही थी। बस जुनेजा अपनी शीट से उठकर आँफिस से बाहर निकला और कोर्ट रूम की ओर बढ गया। तो तीनों ने भी जुनेजा का अनुसरण किया और वे लोग कोर्ट रूम में आ गए। कोर्ट रूम में पहुंच कर एस. पी. साहब ने देखा कि कोर्ट रूम की कार्यवाही शुरु ही होने बाली थी। दर्शक दीर्घा पूरी तरह से भर चुका था और वकील भी अपने-अपने शीट पर बैठ चुके थे। अतः एस. पी. साहब सलिल और रोमील के साथ राघव जुनेजा के बगल में बैठ गए। तभी जज वाय. एस. सिंन्हा ने कोर्ट रूम में कदम रखा और सभी ने उनका उठकर स्वागत किया, इसके बाद कोर्ट कार्यवाही की शुरुआत हुई और जज साहब ने स्वतः संज्ञान का नोटिस उठाकर बोला।
कोर्ट ने शहर में हो रहे तात्कालिक अपराध के संदर्भ में पुलिस को नोटिस दिया था, उसपर ही सुनवाई होनी है। तो .....पुलिस विभाग के तरफ से इस नोटिस का जबाव कौन देगा?.....जज साहब ने अपनी बात कही और नजर उठाकर कोर्ट रूम में देखा। जबकि उनकी बातें सुनने के बाद राघव जुनेजा अपनी जगह से उठा और आगे बढकर जज साहब के सामने पहुंचा,....फिर अपने शब्दों में दुनिया भर की मिठास भरकर बोला।
मिलार्ड....कोर्ट नोटिस का जबाव देने के लिए पुलिस विभाग द्वारा मुझे हायर किया गया है। बोलने के बाद जुनेजा ने अपने हाथों में थामी हुई फाइल को जज साहब की ओर बढाया, फिर पूर्ववत बोला।....मिलार्ड!...पुलिस इन अंधविश्वास पर कभी भी विश्वास नहीं करती और न ही चाहती है कि " अंधविश्वास" का फैलाव जन मानस के बीच हो।
तो फिर शहर में हो रहे अपराध पर "तांत्रिक भूत नाथ" को हायर करना और इस तांत्रिक क्रियाओं का मीडिया कबरेज करवाना? इसके मतलब क्या है? इसपर आप स्पष्टीकरण करेंगे। जुनेजा की बातें खतम होते ही जज साहब तनिक तल्ख लहजे में बोले। जबकि जुनेजा के चेहरे पर इन बातों की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई हो जैसे, वो पूर्ववत ही बोला।
मिलार्ड!.....इस संदर्भ में पुलिस विभाग ने स्पष्टीकरण कर दिया है, जो कि आपको दी गई फाइल में मौजूद है। बोलने के बाद जुनेजा एक पल के लिए रुका, फिर आगे बोला। मिलार्ड....जहां तक "तांत्रिक भूत नाथ" की बात है, तो कभी-कभी ऐसी परिस्थिति भी बन जाती है, कि न चाह कर भी हमें ऐसे कार्य करने पड़ते है, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं कर सकते।
फिर भी.....मिस्टर जुनेजा,.....इस केस को सुलझाने की अपेक्षा पुलिस "तंत्र-मंत्र" का सहारा लेकर इस केस पर लीपा पोती- कर रही है। जो कि कानून की दृष्टि से अनुचित है और इसलिये कोर्ट पुलिस को आदेश देती है कि इस केस को जल्द से जल्द सुलझाए और इस केस में जो भी "अपराधी" है, उसे जकड़ कर कोर्ट के सामने पेश करें। जुनेजा की बात खतम होते ही जज साहब तल्ख लहजे में बोले और फिर वो नोट-पेड पर इस संदर्भ में आदेश लिखने लगे।
ऐसे में जुनेजा समझ चुका था कि जज साहब आगे किसी भी बात को सुनने के मुड में नहीं है। अतः वह पलटा और कोर्ट रूम से बाहर निकल गया। उसे जाते देखकर एस. पी. साहब भी उसके पीछे-पीछे चल दिए। ऐसे में सलिल समझ चुका था कि यहां अब रुके रहने का कोई फायदा नहीं। इसलिये वो रोमील के साथ कोर्ट रूम से बाहर निकला और कार के पास पहुंचा। फिर तो रोमील ने ड्राइविंग शीट संभाल ली, जबकि सलिल बगल बाली शीट पर बैठ गया। इस विचार में उलझा हुआ कि अब आगे क्या होगा?.....सवाल तो उसका सही ही था, परन्तु इसका उत्तर देने के लिए वो खुद ही जिम्मेदार था। अब वो बाँस से तो नहीं कह सकता था कि तंत्र क्रिया करवा कर आपने जान परेशानी में ला दी।
बाँस को तो जो करना था, उन्होंने कर दिया था।....परन्तु इस उलझे हुए मामले को किस प्रकार से सुलझाना है, उसे ही सोचना था और प्रयास भी करना था। साथ ही नितांत जरूरी हो गया था कि "अपराधी" को जल्द ही पकड़ लिया जाए। अन्यथा कोर्ट और मीडिया बालों के सामने पुलिस की किरकिरी होने से कोई नहीं बचा सकता था और उसकी जिम्मेदारी भी उसके माथे ही आनी थी।....फिर बाँस के क्रूर चेहरे से टपकता हुआ आग। उफ!....सोच कर ही सलिल का रोम-रोम सिहर उठा। तब तक रोमील ने स्काँरपियों श्टार्ट करके आगे बढा दी थी और गाड़ी ने सड़क पर आते ही फूल रफ्तार पकड़ लिया था।
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क्रमश:-