रात के बारह बजने को ही था, तभी सम्यक की कार अपार्ट मेंट के अहाते में आकर लगी। फिर वो तेजी से बाहर निकला और अपने फ्लैट की ओर बढा, लाँक खोली और अंदर प्रवेश कर गया। अंदर धूप्प अंधेरा था, ऐसे में हाथ को हाथ नहीं दिखाई दे रहे थे। ऐसे में सम्यक ने आँखों को अंधेरे में देखने का अभ्यस्त बनाया, फिर स्वीच बोर्ड के सभी बटन को आँन कर दिया। फिर तो झबाका हुआ और पूरी फ्लैट रोशनी से नहा गई।
परन्तु वह कुछ मिनटों तक ऐसे ही हाँल में खड़ा रहा, शायद खुद पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा था,....क्योंकि लवण्या से मिलने के बाद उसको जो खुशी हुई थी, उसने उसके शरीर में "बाईब्रेशन" पैदा कर दिया था। जिसकी धमक अब तक थी और उसकी धमनियां अभी तक कंपित हो रही थी। ऐसे में जब उसे थोड़ी शांति महसूस हुई, वह किचन में जाकर अपने लिए गरमागरम काँफी बना लाया और हाँल में रखे सोफे पर बैठकर चुस्की लेने लगा।....परन्तु उसका मन तो कहीं और था,...."हां, लवण्या के पास"। तभी तो वो जब से उससे जुदा हुआ था, उसके बारे में ही सोचे जा रहा था। उफ!....वह तो जिंदगी की त्रासदी से तंग ही हो चुका था, तभी उसको आज लवण्या मिला, “सावन के मीठे-मीठे शीतल फुहारों की तरह"।
उसका यूं अचानक ही मिलना और वो अपने जीवन की सारी तपिश, सारे दुःख पल भर में ही भूल गया। आज जो अचानक ही उससे लवण्या मिली, लगा कि उसके जख्मों पर नर्म-नर्म मक्खन लग गए हो और उसे "परम शांति मिल गई हो"। बात सही भी था, क्योंकि लवण्या के बिना उसका जीवन अधूरा- अधूरा लगता था और जब वो मिल गई है,....."उसके जीवन में सतरंगी इंद्रधनुष अपने-आप सज कर निखर जाएंगे। सोचते-सोचते उसने काँफी खतम की, तभी उसके मन में खयाल आया कि लवण्या का मिलना महज संयोग ही नहीं। यह जरूर ईश्वर की असीम अनुकंपा है, जिसने मेरे विरह वेदना से द्रवित होकर ऐसे परिस्थिति बना दिए कि लवण्या "वर्षों बाद अचानक मिल गई।
इतनी बातें दिमाग में आते ही उसने ईश्वर को मन ही मन धन्यवाद कहा। सम्यक ईश्वर में सच्ची आस्था रखता था और उसे प्रतीत हो रहा था कि आज जो भी कुछ हुआ, वह ईश्वर की ही कृपा थी। अन्यथा तो ऐसे लवण्या का अचानक से मिल जाना, वर्षों बाद हुआ, जो कि महज संयोग नहीं हो सकता। यह तो उसके दिल को पता था कि "लवण्या की अहमियत उसके लिए कितनी थी"। वह तो कोई उससे पुछे कि उसके जुदा हो जाने पर न जाने कितनी रातों तक सम्यक ने जाग कर गुजारे थे। उसे लगने लगा था कि उसकी जिंदगी वीरान हो गई है। ऐसे में वह काँफी और पुस्तकों के टेबुल तक सिमट कर रह गया था।....लेकिन अब लवण्या मिल गई है, तो ईश्वर कृपा से सब कुछ अच्छा ही होगा।
सम्यक ने काँफी खतम कर लिया था और यह सोचने के बाद कि "ईश्वर कृपा से सब कुछ अच्छा ही होगा “अपनी जगह से उठा और वाथरुम मे चला गया। फिर दस मिनट बाद बाहर निकला, तो उसके वदन भीगे हुए थे, यानी कि उसने स्नान किया था। फिर तो वो पुजा रूम की ओर बढा, उस रूम की ओर, जहां उसके बेचैन मन को शांति मिलती थी।....पुजा रूम की सजावट बेहतरीन तरीके से की गई थी और उसमें एक छोटा सा मंदिर स्थापित था। जिसमें "भगवान राम" की प्रतिमा रखी हुई थी, जिनका कि सम्यक आराधना करता था। तभी तो उसने मंदिर के आगे दीप प्रज्वलित किए, अपने कपड़े बदले और फिर ध्यानस्थ मुद्रा में मंदिर के सामने बैठ गया और भगवान की आराधना करने लगा।
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रात के बारह बज चुके थे, जब सलिल पुलिस स्टेशन लौटा और कार पार्क होते ही अपने आँफिस की ओर बढ गया, जबकि रोमील गिरफ्तार आरोपियों को लेकर लाँकअप की ओर बढ गया। सलिल ने आँफिस में पहुंचते ही फ्रीजर खोला और ठंढा पानी की बोतल निकाल कर होंठों से लगा लिया।....फिर तो जब बोतल खाली हुआ, तब ही उसके होंठों से हटा।
फिर वो अपनी शीट पर आकर बैठ गया और रोमील का इंतजार करने लगा।....वैसे ही लगातार तीन रातों तक जागरण करने के कारण उसकी आँखें लाल थी। उसके चेहरे पर थकावट के चिन्ह थे और इसी इंतजार में था कि रोमील आए, तो वो चैन की निंद ले सके। परन्तु रोमील का अता-पता नहीं था, ऐसे में वो सोचने लगा कि आखिर इस मामले पर नियंत्रण किस प्रकार से करें। वैसे भी उसे कल कई काम निपटाने थे और साथ ही पुलिस मूख्यालय जाकर बाँस से भी मिलना था।.....आखिर तीसरी हत्या हो चुकी थी और अब बाँस आगे क्या आदेश करते हैं, जानना था।
सलिल अभी सोच ही रहा था कि तभी आँफिस के गेट पर पदचाप उभड़ी।.....रात के समय कौन हो सकता है? सलिल सोच ही रहा था कि तभी आँफिस गेट पर मृदुल शाहा जिन्न की तरह प्रगट हो गए और फिर तो सलिल हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ और इतना ही नहीं जोड़दार सैल्यूट दिया। लेकिन शाहा ने उसके सैल्यूट की कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और आगे बढ कर कुर्सी पर बैठ गए।.....उनके बैठते ही सलिल भी बैठ गया, तब तक रोमील भी आ चुका था और सैल्यूट देने के बाद बैठ गया। परन्तु आँफिस में शांति छाई रही, न तो एस. पी. साहब ने बात की शुरुआत की और न सलिल एवं रोमील बोलने की हिम्मत कर सके।
ऐसे में आँफिस में शांति छा गई, सर्द खामोशी कि अगर सुई भी गिरे, तो जोरदार धमाका हो। समय तेजी से आगे की ओर भागा जा रहा था और इसी के साथ सलिल की बेचैनी बढती जा रही थी। वो सोच रहा था कि बात की शुरुआत हो,.....लेकिन किस प्रकार से? वह जानता था कि अगर उसने सामने से कोई बात अगर कह दी, जानता था कि गलत प्रतिक्रिया भी हो सकती थी। वह जानता था अपने बाँस के स्वभाव को, इसलिये चुप रहने में ही भलाई समझता था।.....जबकि रोमील,....वो तो जानता था कि दो-दो सीनियर अगर सामने हो, वहां चुप्पी साधने में ही भलाई है। परन्तु आँफिस की चुप्पी ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी, क्योंकि एस. पी. साहब ने चुप्पी तोड़ी और गंभीर होकर बोले।
सलिल.....आगे क्या करना है? इसका ब्लू-प्रिंट है तुम्हारे दिमाग में?
नहीं तो सर,.....वैसे अभी मैंने इस बारे में सोचा ही नहीं है। एस. पी. साहब की बातें सुनकर सलिल ने तत्परता के साथ जबाव दिया। जबकि उसके उत्तर सुनकर एस. पी. साहब मुस्कराए, फिर बोले।
तो सुनो,....सबसे पहले तो तुम तांत्रिक भूत नाथ के पास चले जाना और उसको लेकर "होटल" चले जाना। वहां पर मीडिया बाले पहले ही पहुंच चुके होंगे। उसके बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेने के लिए हाँस्पिटल जाना और वहां से सीधे मेरे पास पहुंचना।
यश सर!......एस. पी. साहब ने जैसे ही अपनी बात खतम की, सलिल ने तत्पर होकर बोला। लेकिन एस. पी. साहब ने शायद उसकी बात सुनी नहीं। वे पूर्ववत ही गंभीर होकर आगे बोले।
और सुनो,....पोस्टमार्टम की रिपोर्ट किसी हालत में मीडिया बालों के हाथ नहीं लगना चाहिए, इस बात का ख्याल खासकर रखना।
इसके बाद एस. पी. साहब उसे आगे की योजना समझाने लगे। सलिल उनकी बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहा था और जहां उसे लग रहा था कि कमी है, वो अपनी शंकाओं को बता रहा था।.....एस. पी. साहब शांत होकर उसके शंका का समाधान करते जा रहे थे और जब उन लोगों के बीच बातचीत खतम हुई, रात के एक बज चुके थे।.....ऐसे में एस. पी. साहब ने वहां से विदा ली, जबकि उनके जाने के बाद सलिल सोचने लगा कि उसका बाँस कितना " काईंया" है। उन्होंने मीडिया बालों को उलझाने के लिए ही "तांत्रिक भूत नाथ" को इस केस में एंट्री करवाया था। सलिल समझता था कि "तांत्रिक भूत नाथ" के एंट्री ने इस केस में ट्वीस्ट उत्पन्न कर दी थी। ऐसे में पब्लिक और मीडिया, दोनों को इसमें ही उलझ जाना था और पुलिस को इस केस को साँल्व करने में अधिक समय मिलना था।
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क्रमश:-