होटल पृथा से निकलने के बाद स्काँरपियों ने रफ्तार पकड़ लिया और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी।....परन्तु न जाने क्यों सलिल को कुछ न कुछ अजीब लग रहा था। वो जब होटल पृथा में गया था और जबतक वहां पर रहा था। उसे इस बात की अनुभूति हो रही थी कि उसके आस-पास कोई अजीब करेक्टर है। लेकिन क्या और किस तरह का? यह सवाल ही था जो उसके अंतरमन में द्वंद्व कर रहा था। .......परन्तु कितने भी मंथन कर लेने के बाद भी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया था। यही दुविधा शायद उसे बेचैन किए हुए थी।
इसलिये अब, जब वो होटल से निकल चुका था और उसकी कार सड़क पर फर्राटे भरती जा रही थी, वो अपने इस द्वंद्व का मंथन कर रहा था। उसकी आँखें ड्राइव कर रहे रोमील पर ही टिकी थी, लेकिन रोमील के चेहरे पर किसी प्रकार के भाव नहीं थे। वह तो बिल्कुल शांत था और ड्राइविंग में ध्यान पिरोएँ था। उसके शांत मन स्थिति को देखकर सलिल को जलन की भी अनुभूति होने लगी थी।.....एक वो है कि इस केस में सोच-सोच कर दुबला होता जा रहा है। उसे बीतते समय के साथ अजीब-अजीब अनुभूति हो रही है और एक रोमील है,...."दुनिया के टेंशन से अछूता और बेफिक्र"। सलिल ने मन ही मन गालियां दी रोमील को। साला! मेरी तरह आँफिसर होता तब न, तब उसको लगता कि बाँस होना अपने-आप में कितनी तकलीफदेह है। "साला" बिना वजह के भी टेंशन के पहाड़ को सिर पर उठाए घूमो और जिम्मेदारी का बोझ भी उठाओ।
रोमील का इस तरह से बेफिक्र होकर ड्राइव करना,......सलिल को "फूटी आँख नहीं सुहा रहा था"। परन्तु वो कर भी क्या सकता था रोमील का। रोमील तो डियूटी निभा ही रहा था, वह कोई कोताही तो कर नहीं रहा था।....ऐसे में उसको डांटना भी " मुश्किल " ही था। परन्तु इच्छा की बात है!....बस उसकी इच्छा हो रही थी कि रोमील को डांट की घुट्टी पिलाए। वैसे भी वह जब से पुलिस मूख्यालय से लौटा था, बिल्कुल ही अशांत था। वह अशांत था, इसलिये कि "बाँस ने उसे अजीवो-गरीब आदेश दे दिया था और यह उस व्यक्ति का अंतरात्मा ही महसूस कर सकता है" जब उसे उसके इच्छा के विरुद्ध कार्य करना पड़े।
स्काँरपियों किसी वियर बार के सामने या फिर अंग्रेजी शराब की दुकान के सामने रोकना। सहसा ही सलिल ने धीर-गंभीर स्वर में बोला। क्योंकि उसे लग रहा था कि अब शराब के दो-चार घूंट नहीं लिए न, उसके दिमाग की बत्ती गुल हो जाएगी। जबकि उसकी बातें सुनकर रोमील सहज ही बोला।
यश सर.....! फिर एक पल रुकने के बाद रोमील आगे बोला। ......वैसे सर, मुझे लग रहा है कि आप उलझे हुए है और कोई ऐसी बात है, जो आपको अंदर ही अंदर खाए जा रही है।
हूं, जनाब....अब जाकर आपको ध्यान आया है कि मैं थोड़ा उलझा हुआ हूं। सलिल तनिक चिढ कर बोला। जिसके जबाव में रोमील ने उसकी ओर देखा एवं शांत चित होकर जबाव दिया।
सर....!आप तो खामखा ही नाराज हो रहे हो। मैंने आपको परेशान देख लिया था, परन्तु पुछने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।....क्योंकि आप तो बिना बात के भी नाराज हो जाते हो।
नहीं.....ऐसी बात नहीं है रोमील। तुम जिस प्रकार से सोच रहे हो, इस प्रकार की बात बिल्कुल भी नहीं है। रोमील की बातें सुनकर सलिल तपाक से बोला, फिर एक पल रुककर फिर बोला।....मैं भी इंसान ही हूं और मेरे पास भी भावनाएँ है। ऐसे में कोई मुझे हर्ट करें,...स्वाभाविक ही-है कि गुस्सा आएगा।
बोलने के बाद सलिल ने रोमील के चेहरे की ओर देखा, जहां किसी प्रकार के भाव नहीं थे। सलिल ने अपनी बात खतम की और रोमील उसके बातों का जबाव देना ही चाहता था....तभी उसकी नजर आगे "शराब के दुकान पर गई"....जो सुबह के चार बजे भी खुला हुआ था। बस फिर क्या था, रोमील ने गाङी की रफ्तार धीमी की और सड़क किनारे रोक दी। बस फिर क्या था, स्काँरपियों के रुकते ही सलिल तेजी से बाहर निकला और शराब के दुकान की ओर बढ गया। जबकि रोमील बैठा-बैठा सोचने लगा।
बाँस का व्यवहार कितना अजीब है!.....कभी तो मोम सा नर्म, तो कभी पत्थर से भी अधिक कठोर। उसको दो वर्ष बीत गए थे उनके साथ रहते हुए,....परन्तु अब तक उसे बाँस को समझने में सफलता हासिल नहीं हुई थी। वैसे तो साथ रहना, साथ खाना और साथ घूमना भी था। उसके बिना "बाँस" कहीं नहीं जाते थे, किसी काम को अंजाम देने की बात तो दूर है। परन्तु गाहे-बगाहे डांट देना और किसी के सामने भी जलील कर देना, बाँस के स्वभाव की खासियत थी। इसलिये तो कभी -कभी रोमील की इच्छा होती थी कि किसी दूसरे पुलिस स्टेशन में अपना तबादला करवा ले।....उसने एक दो बार कोशिश भी की थी, परन्तु सलिल ने उसका तबादला होने ही नहीं दिया था।
क्या सोच रहे है जनाब?.....सलिल ने कार का गेट खोलकर बैठते हुए पुछा। फिर साथ लाए हुए शराब की बोतल, गिलास एवं चखने को शीट पर रख दिया। जबकि उसे आया देखकर रोमील की तंद्रा जैसे टूटी। फिर उसने कार श्टार्ट करके आगे बढाया और सधे हुए स्वर में सलिल के प्रश्न का उत्तर दिया।
ऐसी कोई बात नहीं है सर!.....बोलने के बाद रोमील ने अपना ध्यान ड्राइव पर केंद्रित कर दिया। जबकि सलिल ने गाड़ी के आगे बढते ही जाम बनाने की शुरुआत कर दी। फिर गंभीर स्वर में बोला।
अब छोड़ो भी इन बातों को और आओ, दो-दो घूंट शराब पीते है। बोलने के बाद सलिल थोड़ी देर के लिए रुका और जाम बनाने में जुटा रहा, फिर बोला। वैसे रोमील.....बाँस लोगों को पता नहीं, क्या-क्या सूझता रहता है कि जो मन में आया, योजना बना डाली और फैसला सुना दिया। अब इसके पीछे चाहे कितने ही पापड़ बेलने पड़े, या परेशानी उठानी पड़े। बोलने के बाद सलिल रोमील के चेहरे की ओर देखने लगा।
सलिल रोमील के चेहरे पर उभड़े भावों को पढना चाहता था,.....परन्तु उसे इसमें सफलता नहीं मिली। क्योंकि रोमील भी तो पूरा "घाघ" था, क्या मजाल जो उसने मन के भाव उसके चेहरे पर प्रदर्शित हो। जबकि रोमील मन ही मन सोच रहा था कि जब आप पर बाँस का अत्याचार होता है, परेशान हो उठते हो।....लेकिन जो आप अपने अधीनस्थ के ऊपर अत्याचार करते हो, उसका क्या? भले ही रोमील मन ही मन इन बातों को सोच रहा था, परन्तु उसका चेहरा सपाट था, भाव रहित। ऐसे में सलिल के हाथों निराशा लगी, तब उसने तैयार हुए "जाम" को रोमील के हाथ में थमाया, दूसरा पैग खुद उठा लिया और टकरा कर एक स्वर में बोले।
चियर्स.....!
फिर दोनों ने शराब गटक ली, फिर रोमील ने कार की रफ्तार धीमी कर दी। इसके बाद तो दोनों ने स्काँच की पूरी बोतल गटक ली। इसके बाद सलिल ने कलाईं घड़ी में देखा, सुबह के साढे़ चार बज चुके थे। अब वह पुलिस स्टेशन लौटेगा अपने काम की खाना पूर्ति करेगा। सलिल ने सोचा, फिर उसने रोमील के चेहरे की ओर देखा, रोमील शायद बात करने के मुड में नहीं था और ड्राइविंग में तल्लीन था। ऐसे में सलिल ने भी बात करने की इच्छा टाल दी और सोचने लगा कि आज उसे क्या-क्या करना है।.....वैसे ही बाँस के दिए हुए आदेश के अनुसार उसे किसी तांत्रिक को ढूंढना था।....फिर आगे क्या-क्या करना है, उसकी प्लानिंग करनी थी। सलिल इन बातों को सोच रहा था, जबकि स्काँरपियों फूल रफ्तार से पुलिस स्टेशन की ओर भागी जा रही थी।
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क्रमशः-