दिल्ली का वह “इंजीनियरिंग एण्ड डेवलपमेंट फाँर यूथ” का विशाल हाँल। गोलाकार शेप में बना हुआ हाँल काफी भव्यता लिए हुए था। उसमें भी बड़ी बात कि यहां “यंग लाइफ” सेमिनार आयोजित होना था,….इसलिये अभी यहां काँलेज स्टुडेंट की भीड़ जमा होने लगी थी। साथ ही बने हुए स्टेज पर अभी इको साऊण्ड सिस्टम धीमी आवाज में बज रहा था।
जबकि स्टुडेंट की भीड़ बढने के साथ ही हाँल में शोर-शराबा बढ गया था। वैसे तो दिन के ग्यारह बज चुके थे और अब तक प्रोग्राम शुरु हो जाना चाहिए था।.....परन्तु मुख्य अतिथि राजीव सिंघला के अभी तक नहीं आने के कारण "कार्यक्रम" में विलंब था। लेकिन ऐसी स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही, क्योंकि तभी "बिल्डिंग" के बाहर गाड़ी आने का शोर उभड़ा। इसी के साथ "हाँल" में सीटी की आवाज गुंजने लगी, जो काँलेज के छात्र खुशी में बजा रहे थे।.....फिर तो "मुख्य अतिथि" के आ जाने से स्टेज पर प्रोग्राम संचालक ललित भंडारी आ गया।....."कुछ पल पहले तक मुरझाए हुए चेहरे पर अब हरियाली स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगी"। फिर तो उसके शब्दों में भी ताजगी आ गयी और गला खंखार कर उसने हाँल को संबोधित किया, जो "इको सिस्टम" के कारण हाँल में गुंजने लगा।
हाँल में मौजूद सभी मित्र बंधु.....आप लोगों के इंतजार का पल खतम हो चुका है,....क्योंकि अब चीफ गेस्ट के साथ ही "प्रोग्राम होस्ट" भी आ चुके है। बोलने के बाद ललित भंडारी एक पल के लिए रुका, फिर आगे बोला। आप.....विभिन्न काँलेज के छात्र-छात्राओं का इस मंच के तरफ से स्वागत करता हूं जो आप लोग बड़ी संख्या में इस प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए आए है। साथ ही आपसे गुजारिश करता हूं कि आप लोग शांति के साथ बैठकर इस प्रोग्राम का आनंद ले।
ललित भंडारी ने अभी अपनी बात खतम ही की थी। तभी हाँल में राजीव सिंघला एवं ओजस्वी चक्रवर्ती ने कदम रखा। ओजस्वी चक्रवर्ती, शहर का मेयर, शांत स्वभाव लेकिन शातिर दिमाग। उम्र यही करीब पचपन के करीब होगा। ओजस्वी चक्रवर्ती, लालची प्रवृति के होने के कारण उसका ज्यादातर समय राजीव सिंघला के साथ ही बीतता था। आज भी ओजस्वी चक्रवर्ती इसलिये ही यहां पर आया हुआ था। राजीव सिंघला एवं ओजस्वी चक्रवर्ती आगे बढे और स्टेज पर पहुंच गए। उनके स्टेज पर पहुंचते ही पूरे हाँल ने सीटी बजा कर उन दोनों का अभिनंदन किया, जबकि ललित भंडारी ने फूलों का गुलदस्ता देकर दोनों का स्वागत किया।.....इसके बाद ललित भंडारी ने राजीव सिंघला को "यंग लाइफ" पर हाँल में वक्तव्य देने को कहा,.....परन्तु राजीव सिंघला से पहले ओजस्वी चक्रवर्ती आगे बढा, जबकि राजीव सिंघला वहां पर रखे सोफे पर बैठ गए।
माय डियर फ्रेंड....हाऊ आर यू? ओजस्वी चक्रवर्ती ने माइक के पास पहुंचते ही ओजस्वी एवं मधुर शब्द में कहा। जिसके बदले में हाँल में किलकारियां उभड़ी। जबकि मिस्टर चक्रवर्ती ने फिर अपनी बातों को आगे बढाया। दोस्त......आप लोग यंग हो और अपनी लाइफ के शुरुआती बिंदु पर हो। ऐसे में हृदय में प्रश्न उठना लाजिमी ही है कि...."हम लाइफ" को जीए कैसे? जिसमें आनंद भी हो, उत्तेजना भी हो और बंधन भी नहीं रहे। तो मेरा मानना है कि इसके लिए हमें खुद के शर्तों पर जीना होगा, तभी हम जीवन का सही आनंद ले पाएंगे। मिस्टर चक्रवर्ती ने कहा, तो हाँल में किलकारियां गुंजने लगी। जबकि मिस्टर चक्रवर्ती ने अपनी बात खतम की और सोफे पर जाकर बैठ गया। तब राजीव सिंघला माइक के पास पहुंचा और बोला।
हेलो फ्रेंड.....! राजीव सिंघला ने कहा और हाँल में मौजूद युवाओं को देखा। जबकि उनकी बातें सुनते ही हाँल फिर से किलकारियों से गुंजने लगी,...तब राजीव सिंघला ने कहा। दोस्तों....यह हमारा जीवन है और हमें इसे अपने शर्तों पर जीना चाहिए। बोलने के बाद राजीव सिंघला एक पल के लिये रुका, फिर आगे बोला। यह मेरा जीवन है और इसका मालिक दूसरा कोई नहीं हो सकता। हम फिर इसे अपने मन-मुताबिक क्यों नहीं जीएँ, हम क्यों दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करने की शर्तों पर अपनी खुशियों को आग लगा लें। फिर तो....जीवन में जवानी बार-बार नहीं आती। बोलने के बाद "राजीव सिंघला" ने मुस्करा कर हाँल में देखा, तभी हाँल में मौजूद एक पत्रकार ने प्रश्न किया।
तो सर.....इसलिये ही आप "लीव इन रिलेशनशीप" के पक्षधर है?
हां....जरूर!...मैं अपनी बातों को डंके की चोट पर कहता आया हूं और आज भी कहता हूं। पत्रकार की बातें खतम होते ही राजीव सिंघला ने शांत स्वर में कहा और एक पल रुककर फिर आगे बोला। माना कि यह चलन समाज में नया-नया है, लेकिन इसमें आजादी है.....जीवन जीने की अपनी शर्तें है। फिर तो......जीवन बार-बार मिलता नहीं, तो फिर हम इसे यूं ही बर्बाद क्यों कर दें।
लेकिन सर.....सुनने में आता रहा है कि आपका "सौंदर्य" प्रसाधन का बिजनेस होने के कारण ही आप इसके पक्षधर है? क्या यह बात सही है? राजीव सिंघला की बातें खतम होते ही दूसरे पत्रकार ने प्रश्न पुछा, फिर अपनी नजर उनके चेहरे पर टिका दी।....जबकि उनकी बातें सुनते ही राजीव सिंघला के होंठों पर मुस्कान गहरी हो गई, फिर उन्होंने कहा।
आपकी बातें सही है या नहीं, मैं इन बातों में नहीं पड़ूंगा। फिर भी.....इतना तो कहूंगा ही कि जब व्यक्ति सफल होता है, उसके साथ बदनामी भी चलती है।.....परन्तु मैं उनमें से नहीं, जो इन बातों से घबरा जाऊँ। मैं सच्चे अर्थ में युवाओं को जीने की राह बतलाता हूं।
लेकिन सर!.....इसके दुष्परिणाम भी तो है। आपका इस संदर्भ में क्या मंतब्य है, इस पर भी प्रकाश डालें? राजीव सिंघला की बातें खतम होते ही तीसरे पत्रकार ने पुछा। जिसके जबाव में पहली बार राजीव सिंघला गंभीर शब्दों में बोला।
मानता हूं कि आपका यह प्रश्न समाज के हित में है। लेकिन चिन्ता की ऐसी बात है-ही नहीं। अभी तो "लीव इन रिलेशनशीप" का भारत में नया प्रचलन है, तो स्वाभाविक है कि इसके कुछ इफेक्ट भी दिखेंगे। नया-नया होने के कारण इसका विरोध भी होगा। परन्तु अब तो....हमारे न्यायाधीशों ने भी इसको मान्यता दी है, इसके जरूरत को समझा है।
इसके बाद कभी तो छात्र-छात्राओं ने, तो कभी पत्रकारों ने "राजीव सिंघला" से प्रश्न पुछते रहे और वे ढृढता से उन सभी प्रश्नों के जबाव देते रहे। आखिर में ललित भंडारी के संबोधन के साथ इस प्रोग्राम की समाप्ति दिन के दो बजे हुई। इसके बाद राजीव सिंघला हाँल से निकला और अपनी कार के पास पहुंचा। उससे पहले ही उनकी सेक्रेटरी "ज्योत्सना" वहां खड़ी थी। ज्योत्सना, चालीस वर्ष की शादीशुदा महिला, चेहरे पर ओज और सुंदर व्यक्तित्व। राजीव सिंघला के कार में बैठते ही....... ज्योत्सना भी उनके बगल में बैठ गई। इसके बाद तो कार ने रफ्तार पकड़ा और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। जबकि ज्योत्सना......वह "राजीव सिंघला" से कुछ कहना चाहती थी, लेकिन ड्राइवर के मौजूदगी के कारण कह नहीं पा रही थी। लेकिन वो अपने मन के भाव राजीव सिंघला के अनुभवी आँखों से नहीं छिपा सकी और उन्होंने पुछ ही लिया।
तुम शायद कुछ पुछना चाहती हो? अतः जो भी पुछना हो, निःसंकोच पुछो।
सर......!मैं देखती आ रही हूं कि आप करीब बीते दस वर्षों से "लीव इन रिलेशनशीप" पर वक्तव्य देते आएँ है और युवाओं की भावना भड़काते आए है। जबकि मैं भी जानती हूं और आप भी जानते है, इसके दुष्परिणाम को। राजीव सिंघला की बात खतम होते ही ज्योत्सना ने गंभीर होकर बोला और अपनी नजर उनके चेहरे पर टिका दी। जबकि उनकी बातें सुनकर राजीव सिंघला मुस्करा कर बोले।
ज्योत्सना.......तुम समझ नहीं पाई हो, या समझना नहीं चाहती।.....परन्तु मैं जानता हूं कि मेरे जितने भी "उत्पाद" है, युवाओं के लिए ही-है। ऐसे में युवा जितने स्वच्छंद होंगे, हमारा बिजनेस उतना ही बढेगा।
बोलने के बाद राजीव सिंघला ने चुप्पी साध ली। बस ज्योत्सना ने समझ लिया कि बाँस अब नहीं बोलेंगे। लेकिन बाँस के शब्दों ने उसके हृदय को झकझोर दिया था। राजीव सिंघला के कहे गए शब्दों से वह उलझ सी गई थी। वो सोचने लगी थी कि "अपने स्वार्थ पूर्ति" के लिए इंसान इतना अंधा हो सकता है कि समाज में विष रुपी ग्रंथी का "बीजारोपण" करने को उद्धत हो जाए। इसके भयावह परिणाम को जानते हुए भी। लेकिन कहीं यही विष ग्रंथी उसके खुशियों को डंस ले तब? प्रश्न गंभीर था और उसके हल को ढूंढने की कोशिश "ज्योत्सना" कर रही थी,....परन्तु उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। कार में इस समय खामोशी पसरी हुई थी, बस कार के इंजन की आवाज आ रही थी।
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क्रमश:-