एस. पी. साहब के जाने के बाद सलिल गहरी निंद में सोया था और इसके कारण ही उसको राहत की अनुभूति हो रही थी। उसने देखा कि रोमील के चेहरे पर भी ताजगी थी और उस ताजगी को देखकर समझ गया था कि उसके सोने के बाद वह भी सो गया हो गया। अब तो सुबह हो चुका था, इसलिये सलिल अपनी शीट से उठा और बाहर निकला। उसका बाहर निकलना और रोमील ने उसका अनुसरण किया।
फिर दोनों बाहर निकले, कार में बैठे और कार श्टार्ट होकर पुलिस स्टेशन से बाहर निकली और सड़क पर दौड़ने लगी। ऐसे में ड्राइव करते हुए सलिल ने रोमील की ओर देखा, उसके कान में लीड लगी थी और आँखें बंद थी। शायद वो गीत सुनने में मस्त था, ऐसे में उससे बात करने का कोई मतलब नहीं था। इसलिये उसने ड्राइव पर ध्यान केंद्रित की और सोचने लगा कि आगे क्या करना है?....वो जानता था कि अगर थोड़ी सी भूल-चुक हो गई, तो मामला बिगड़ भी सकता था। मामला संगीन था, ऐसे में संभल-संभल कर कदम उठाने की जरूरत थी। परन्तु.....सलिल जानता था कि मामला ही ऐसा है, जो धोखा दे सकता है।
सुबह के समय, चारों तरफ नव प्रभात किरणों से जगमग कर रहा था। सुबह का समय होने के कारण हर तरफ ताजगी महसूस हो रही थी। सड़क पर सुबह-सुबह दौड़ती गाड़ियां और किनारे पैदल चलते लोग, लगता था कि "दिल्ली जग कर सड़क पर उमड़ आया हो। ऐसे में सलिल को भी "ताजगी पाने के लिए" काँफी की जरूरत महसूस हुई और उसने टी-स्टाल के सामने गाड़ी खड़ी कर दी। फिर तो दोनों ने वहां पर काँफी पी और फिर सफर पर चल पड़े और पहुंच गए तांत्रिक भूत नाथ के पास। जब दोनों ने झोंपड़े में कदम रखा, देखा कि आसन पर बैठा हुआ भूत नाथ गेट की ओर ही टकटकी लगाए देख रहा था। ऐसे में भूत नाथ का आदेश मिलते ही दोनों रखी कुर्सियों पर बैठ गए। तब बोलने को उत्सुक रोमील बोल ही पड़ा।
स्वामी जी!
हां बोलो वत्स!.....रोमील की बातें सुनकर स्वामी भूत नाथ ने तत्काल प्रतिक्रिया दी। जिसे सुनते ही रोमील तत्काल बोल पड़ा।
स्वामी जी!.....हम लोगों ने अंदर आते हुए देखा कि आप गेट की ओर ही देख रहे थे, शायद हम लोगों के आने का ही इंतजार कर रहे थे। रोमील ने प्रश्न पुछा और अपनी नजर भूत नाथ पर टिका दी। जबकि उसके इस प्रकार से बात करने पर सलिल की भँवें तनिक चढी,....परन्तु देखने के बाद भी रोमील ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जबकि उसके प्रश्न सुनकर तांत्रिक भूत नाथ ने मंद-मंद मुस्करा कर कहा।
हां, जरूर ऐसा ही है!.....मैं आप लोगों की राहें ही देख रहा था। बोलने के बाद भूत नाथ थोङी देर के लिए रुका, फिर आगे बोला। बात ही कुछ ऐसी है, क्योंकि जब से मैं होटल से लौटा हूं, थोड़ा उलझन में हूं। बोलने के बाद भूत नाथ मौन हो गया, जबकि उसकी बातें सुनकर सलिल चौंककर बोला।
बात ही ऐसी है,....से आपका क्या मतलब है? आप कहना क्या चाहते है, स्पष्ट कहें?
कहने की बात बस इतनी है कि जब से मैं होटल से लौटा हूं, लग रहा है कि कुछ अनिष्ट होने बाला है। कोई ऐसी शक्तिशाली आत्मा है, जिसकी छवि स्पष्ट नहीं हुआ है। सलिल के बातों के उत्तर में भूत नाथ बोला, फिर अपनी बातों की प्रतिक्रिया को सलिल के चेहरे पर देखने के लिए रुका, फिर बोला। जहां तक मेरा अंदाजा है कि इस आत्मा को नियंत्रित करने के लिए बहुत बड़ा अनुष्ठान करना होगा, वह भी शीघ्र।
तो....आप चाहते क्या है? भूत नाथ की बातें सुनकर चौंक कर बोला सलिल, जबकि उसके चौकने के प्रतिक्रिया स्वरूप भूत नाथ के होंठों पर फिर मुस्कान उभड़ी, जिसे रोक कर वो बोला।
मिस्टर सलिल, चाहना मुझे नहीं बल्कि आपको है। आप अनुष्ठान की तैयारी करवाइए, फिर देखिए कि "वारदात" किस प्रकार से रुकता है। बोलने के बाद भूत नाथ ने चुप्पी साध ली।
सलिल उसके प्रतिक्रिया स्वरूप बोलना ही चाहता था, तभी वहां पर सुंदर सी युवती काँफी का ट्रे थामे हुए आई। उसने सभी के हाथों में कप थमाया और उलटे पांव लोट गई। उस युवती को देखते ही सलिल के दिमाग में आया कि भूत नाथ का जीवन कितना विलास पूर्ण है। कहने को तो वो एक तांत्रिक है, लेकिन अपनी सेवा में कमायनी सी सुंदर युवती को रखे हुए है। फिर भी दुनिया उसकी पुजा करती है, तभी तो उसका दुकान धड़ल्ले से चल रहा है। सोचते हुए सलिल ने अपनी काँफी खतम की और वहां रखे टेबुल पर रखा। भूत नाथ और रोमील पहले ही काँफी पी चुके थे, ऐसे में अब वहां रुकने का कोई मतलब ही नहीं था।
तभी तो तीनों बाहर निकले और कार में बैठ गए। इस बार ड्राइव रोमील ने संभाल रखी थी। उसने कार श्टार्ट की और आगे बढा दिया, लक्ष्य था "होटल सन्याल। कार रफ्तार से भागी जा रही थी, जबकि अंदर सन्नाटा पसरा हुआ था। इस सन्नाटे से रोमील ऊब चुका था, वो बात करना चाहता था, लेकिन भूत नाथ की मौजूदगी के कारण नहीं कर पा रहा था। फिर तो इसी सन्नाटे भरी चुप्पी में पूरा रास्ता निकल गया और कार होटल सन्याल के प्रांगण में जा लगी। इसके बाद तीनों कार से बाहर निकले और होटल बिल्डिंग की ओर बढ गए। तभी होटल प्रांगण में मीडिया बालों की भी गाड़ी आने लगी और जैसे ही भूत नाथ ने मीडिया बालों को देखा, उसमें गजब की फुर्ती आ गई।
फिर तो तीनों को उस रुम में पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा, जिसमें बीती रात दुर्घटना घटित हुई थी। वहां पर पहले से ही पुलिस बालों द्वारा पुजा पाठ की तैयारी कर ली गई थी। इसलिये "भूत नाथ" जैसे ही वहां पहुंचा, तांत्रिक क्रियाओं को करने में जूट गया।....जबकि सलिल ने देखा कि मीडिया बाले "तांत्रिक क्रिया कलापों का कबरेज कर रहे थे" ऐसे में उसका वहां रुके रहने का कोई मतलब नहीं था। इसलिये उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि इस समय "होटल बिल्डिंग" की तलाशी लेगा। इसलिये वो रोमील के साथ उस रूम से बाहर निकला और होटल बिल्डिंग की तलाशी लेने लगा।
उसे आशा थी कि "कहीं कोई सबूत, जो कि अपराधी के द्वारा भूल बस वहां छूट गया हो, उसके हाथ लग जाए"। परन्तु उसके मनोकामना की सिद्धि नहीं हो सकी। उसने पूरे दो बार बहुत ही बारीकी से "होटल बिल्डिंग" की तलाशी ली,....परन्तु उसके हाथ ऐसा कुछ नहीं लगा, जिसे वो सबूत कह सकता और अपराधी तक पहुंच पाता।.....ऐसे में वो निराश होकर वापस उसी रूम में लौट आया, जिसमें तांत्रिक क्रियाएँ हो रही थी। उसने देखा कि "मीडिया बालों की मौजूदगी के कारण" भूत नाथ कुछ ज्यादा ही उत्साहित था और शायद इसलिए ही वह मंत्रों को तनिक ऊँचे स्वर में उच्चारण कर रहा था और मीडिया बाले भी "उस तांत्रिक अनुष्ठान" को कबरेज करने में अच्छी-खासी दिलचस्पी ले रहे थे और यह जानना सलिल के लिए आश्चर्य से कम न था।
वह अच्छी तरह से जानता था कि ये जो तांत्रिक क्रियाएँ करवाई जा रही है, बस मीडिया बालों और जनता का ध्यान भटकाने के लिए। अन्यथा वो अच्छी तरह से जानता था कि इस केस में भूत-प्रेत जैसी कोई बात नहीं है। हां, ये केस जरूर इस तरह से उलझा हुआ था कि किसी को भी "पहली नजर में ही" भूत-प्रेत की करामात लगे।.....इस बात की पुष्टि आज पोस्टमार्टम रिपोर्ट करने बाली थी, सलिल यह भी अच्छी तरह से जानता था। फिर भी तांत्रिक भूत नाथ ने अघोरी माया फैलाने में कोई कोर- कसर नहीं छोड़ी थी। वह तांत्रिक साधना का इस तरह से प्रयोग कर रहा था, मानो भूतों ने ही हत्याएँ की है और अब वो उसे पकड़ लेगा।
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क्रमश:-