होटल “सांभवी” से लौटने के बाद पहले तो सलिल एवं रोमील ने पेट- पुजा की।.....उसके बाद सलिल ने रोमील को निर्देशित किया कि टाँर्चर रूम में लेकर आए। दिन के ठीक बारह बजे सलिल भल्ला के साथ टाँर्चर रूम में था। टाँर्चर चेयर पर बंधा हुआ श्रीकांत भल्ला सलिल एवं रोमील को जिबह होते बकरे की तरह देख रहा था। उसकी आँखों में खौफ....स्पष्ट देखा जा सकता था। उसके आँखों में अगर इस समय कोई भाव था....तो वो था याचना की। वो करुण नेत्रों से दोनों को देख रहा था....मानो कि रहम की भीख मांग रहा हो।
परन्तु उसे क्या पता था कि वो ऐसे कसाई के चंगुल में फंस चुका है, जो न तो उसे जीने देंगे और न ही मरने की इजाजत देंगे। सलिल और रोमील तो ऐसे आँफिसर थे, जो अपनी पर आ जाए, तो पत्थर को भी बोलने पर विवश कर सकते थे।....तो फिर श्रीकांत भल्ला की बिसात ही क्या थी? वैसे भी वो ए.सी. रूम में काम करने के कारण कमजोर इम्युनिटी का था। बीतते समय के साथ ही श्रीकांत भल्ला के दिलों की धड़कन बढती जा रही थी और आखिरकार सलिल उसके करीब आकर उससे मुखातिब हुआ।
तो श्रीमान बतलाएंगे कि होटल में आखिर ऐसा क्या हुआ कि नंदा को अपनी जान गंवानी पड़ी। बोलने के साथ ही सलिल ने अपनी आँखों को भल्ला के चेहरे पर गड़ा दी। जबकि उसके प्रश्न सुनकर भल्ला अकबकाया।...उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले? सच का उसे शायद पता नहीं था और झूठ बोलने पर मार पड़नी थी। ....परन्तु चुप भी तो नहीं रह सकता था, इसलिये सलिल से आँखें मिलाकर बोला।
सर....सच कहता हूं कि यह घटना कैसे घटी?....इसकी जानकारी बिलकुल भी नहीं है। अभी भल्ला अपनी बाते खतम भी नहीं कर पाया था कि स्वर गुंजा।
तड़ाक......।
आवाज अधिक तीव्र था, जो सलिल के हाथों द्वारा उसके गाल पर पड़ने के स्वरूप उत्पन्न हुई थी। इसके बाद तो भल्ला के मुंह से चीख निकली और वो अपने गाल सहलाने लगा। जबकि सलिल उसकी आँखों में झांककर गुर्रा कर बोला।
अबे कमीने, गोटी किसको दे रहा है? साले....तेरे होटल रूम में अय्याशी होती थी और तू बोलता है कि तुम्हें मालूम ही नहीं। साले....सच-सच बोल, नहीं तो समझ ले कि छठी की दूध याद करा दूंगा। सलिल ने अपनी बातें खतम की और फिर भल्ला को क्रूर नजरों से देखने लगा, जबकि भल्ला बकरी की तरह मिमिया कर बोला।
सर......मैं सच कह रहा हूं कि इस घटना के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है।
बस इतना बोलना था और सलिल भल्ला पर पिल पड़ा, वह उसकी धुआँधार पिटाई करने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप टाँर्चर रूम की दीवार भल्ला के चीखो-पुकार से दहलने लगी। परन्तु इसका कोई असर सलिल पर नहीं हुआ, उसने तो भल्ला को ठोकरों पर रख लिया और जब वो थक गया, रोमील ने मोर्चा संभाल ली। परन्तु भल्ला पर किसी प्रकार की रहम नहीं की गई। जिसके परिणाम स्वरूप ही भल्ला पंद्रह मिनट में ही लहूलुहान होकर बेहोश हो गया था। परन्तु अभी तक सलिल को संतुष्टि नहीं पहुंची थी। इसलिये उसने पानी मंगवा कर भल्ला पर डाला और जब भल्ला होश में आया, फिर से उसकी तुड़ाई शुरु कर दी गई।
परन्तु भल्ला "भला उस बात को कहां बताता, जिसके बारे में उसे खुद जानकारी नहीं थी"। ऐसे में सलिल ने ही हार मान ली और रोमील को आदेश दिया कि भल्ला को लाँकअप में पहुंचा दे और खुद पुलिस स्टेशन के बाहर की ओर निकलने के लिए बढा। बाहर वो स्काँरपियों के करीब पहुंचा ही था कि रोमील बाहर निकल कर आ गया। फिर तो सलिल ने खुद ड्राइविंग शीट संभाली, जबकि रोमील बगल में बैठ गया।.....इसके बाद स्काँरपियों श्टार्ट हुई और पुलिस स्टेशन से बाहर निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। इधर कार के रफ्तार पकड़ते ही रोमील के हृदय में जो विचार दौड़ रहे थे, उसे बाहर लाने को तत्पर होकर बोला।
सर......"भल्ला" ने तो कुछ बताया नहीं, फिर हम लोग क्या करेंगे?
क्या करेंगे से मतलब?.....आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? बोल कर सलिल एक पल के लिए रुका, फिर आगे बोला।....मेरे भाई रोमील.....भल्ला को जो मालूम होगा, वही बतलाएगा न।
तो फिर आप कहना चाहते है कि "भल्ला" निर्दोष है? रोमील चौंक कर बोला। जिसके बाद सलिल के होंठों पर मुस्कान छा गई और वो धीरे से बोला।
अमा यार रोमील.....तुम भी न, बिना मतलब की बातें करते हो। भला, "भल्ला" निरपराध कैसे हो गया? उसके मैनेजर रहते होटल में दो नंबर का काम होता था और इसलिये ही यह दुर्घटना घटित हुई है। बोलने के बाद एक पल रुककर सलिल ने रोमील के चेहरे को देखा, फिर आगे बोला।.... परन्तु इस अपराध से "भल्ला" का दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं है, क्योंकि यह एक आम मर्डर नहीं होकर सीरियल मर्डर है, मेरे विचार से।
सीरियल मर्डर से मतलब सर? आप कहना क्या चाहते है? रोमील तनिक उत्तेजित होकर बोला। जिसके जबाव में सलिल मुस्करा कर पूर्ववत बोला।
इसका मतलब यही है कि यह एक मर्डर मिस्ट्री है। मैंने जो इस केस में अब तक समझा है, उसके अनुसार इस केस में अभी और भी वारदात होने बाकी है। सलिल बोलकर चुप हुआ, तो रोमील ने टाँपिक ही बदल दिया।
सर....अभी हम लोग कहां जा रहे है?
तुम न रोमील....बहुत ज्यादा सवाल करते हो। चिढ कर बोला सलिल, परन्तु दूसरे ही पल उसने संक्षिप्त उत्तर दिया। हम अभी पोस्टमार्टम विभाग के डाक्टर संजीव पाहूजा के पास जा रहे है।
बोलने के बाद सलिल ने चुप्पी साध ली, जिसके बाद रोमील आगे बोलने की हिम्मत नहीं कर सका। जिसके परिणाम स्वरूप स्काँरपियों के अंदर पूर्ण शांति छा गई, रह गया तो सिर्फ इंजन की आवाज। कार सड़क पर सरपट दौड़ती जा रही थी, पीछे लंबी-लंबी बिल्डिंगो की कतार छोड़ते हुए।.....परन्तु कार में फैली शांति उनके हृदय में नहीं थी। जहां रोमील बाँस द्वारा कहे बातों का मनो-मंथन कर रहा था, वही सलिल इस घटना क्रम में उलझा हुआ था।.....उसने नंदा के हत्या की वीडियो देखी थी, वह भी अनेकों बार,...फिर भी उसके समझ में कुछ भी नहीं आया था।
वह तो इसी बिंदु पर उलझा हुआ था कि ड्रेसिंग टेबुल का शीशा टूटकर अचानक ही बिखरा किस प्रकार से।....फिर तो एक शीशे का टुकड़ा पेट में धंसने से नंदा की मौत कैसे हो गई? सवाल गंभीर था और इसका उत्तर तभी मिल सकता था, जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाए। इसलिये ही वो संजीव पाहूजा से मिलना चाहता था। जब वो संजीव पाहूजा के आँफिस में पहुंचा, दिन के ढाई बज चुके थे।....वह डाक्टर साहब से मिला तो जरूर, परन्तु उसके हाथ निराशा ही लगी," क्योंकि अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई थी। ऐसे में वह रोमील के साथ वहां से निकला और फिर दोनों स्काँरपियों में बैठकर निकले।.....परन्तु अब की सलिल बेवजह ही कार को दिल्ली की सड़क पर दौड़ा रहा था। " नहीं ऐसा कहना भी उचित नहीं होगा कि वह बेवजह ही दिल्ली की सड़कों को नाप रहा था।
एक तो उसे समय बिताना था और दूसरे उसे विचार करने के लिए समय चाहिए था और इसलिये ही वो अभी पुलिस स्टेशन लौटना नहीं चाहता था। ……परन्तु विचार तो उलझते ही जा रहे थे, वो जितना चाहता था कि सुलझ जाए "विचारों की श्रृंखला उसपर हावी होती जा रही थी। कार जिस रफ्तार से दिल्ली की सड़क पर दौड़ रही थी, उसी रफ्तार से उसके विचार भी दौड़ रहे थे और इसी कशमकश में शाम के छ बज गए। तब थक-हार कर सलिल ने कार का रुख पुलिस स्टेशन की ओर कर दिया। अब वो अपने आँफिस को लौटना चाहता था, क्योंकि उसे बहुत से काम निपटाने थे।
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क्रमशः-