रोहिणी पुलिस स्टेशन!
इंस्पेक्टर सलिल ने फोन पर बात करके अभी काँल को डिस्कनेक्ट कर दिया था।.....परन्तु अभी भी सलिल शांत नहीं हुआ था, उसकी धड़कन धौंकनी की मानिंद चल रही थी। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव गोते लगा रहे थे। "ऐसा कैसे हो सकता है कि उसने अभी अपराध के बारे में चर्चा की और अभी अपराध घटित हो गया"। क्या यह महज एक संजोग है? या फिर उसकी जुवान ही काली है। बस सलिल संशय और आश्चर्य के सागर में डुबकी लेता हुआ अपनी शीट के पास पहुंचा और धम्म से बैठ गया। इस समय उसके हाव-भाव से ऐसा ही प्रतीत हो रहा था कि जैसे वो शक्तिहीन हो चुका हो।
जबकि रोमील, उसे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। क्या भला साहब अच्छे मुड में थे, परन्तु आखिर ऐसी क्या बात हुई कि एक दम से लुंज- पुंज हो गए। ज्यादा तो कुछ नहीं, “परन्तु वह इतना तो समझ ही चुका था कि कोई अनहोनी घटित हुई है"। परन्तु क्या? यह उसके लिए सवाल ही था। वैसे तो रोमील अभी जीवन के बारे में ज्यादा नहीं समझता था, आखिर उसकी उम्र भी तो अधिक नहीं थी। परन्तु साहब के साथ नौकरी करते हुए इन दो वर्ष में बहुत कुछ समझ गया था।....वो अच्छी तरह से जानता था कि किसी के चेहरे पर आश्चर्य का भाव आना, मतलब नहीं होने बाली बात घटित हो गई है। लेकिन क्या? इसी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उसने हिम्मत जुटाकर सलिल से प्रश्न पुछा।
आखिर बात क्या है सर कि आप इस तरह से हैरान- परेशान है? रोमील ने प्रश्न पुछा और अपनी नजर सलिल के चेहरे पर टिका दी। जबकि सलिल, जब वो परेशान हो, उस समय उससे कोई प्रश्न पुछे, उसे नागवार गुजरता था। इस समय भी उसके चेहरे पर नाराजगी दिखी, परन्तु वह तुरन्त ही सामान्य हो गया, फिर बोला।
घटित हो चुका है!
लेकिन क्या? आधे-अधूरे उत्तर सुनकर रोमील ने अपने प्रश्न को दुहरा दिया। जबकि दुबारा प्रश्न सुनकर सलिल के स्वर में नाराजगी की गंध आ ही गई। वो तनिक उखड़े हुए स्वर में बोला।
तुम भी न रोमील, बहुत सवाल किया करते हो। कभी तो थोड़ी शांति भी रखा करो और अपने जुवान को आराम दिया करो। सलिल ने जब अपनी बात खतम की, रोमील कांप चुका था। वह समझ चुका था कि साहब नाराज हो चुके है, इसलिये संयमित स्वर में बोला।
ज...जी सर! वह सहमें हुए स्वर में बोला। जबकि उसकी बातें सुनकर सलिल तुरंत ही शांत हो गया और अपनी जगह से उठता हुआ बोला।
तुम जल्दी मेरे साथ चलो, फिर रास्ते में बतलाता हूं कि आखिर हुआ क्या है।
बोलने के साथ ही सलिल आँफिस से बाहर निकला। फिर क्या था, रोमील ने उसका अनुसरण किया। दोनों बाहर आकर पुलिस वान में बैठे और सलिल ने वान श्टार्ट की और दौड़ा दिया। वान गेट से निकली और सड़क पर सरपट दौड़ने लगी। जबकि इसी बीच सलिल ने डाँग स्क्वायड एवं फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को काँल कर दिया। उसके बाद उसने ड्राइविंग पर अपनी नजर जमा दी। लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि उसका ध्यान कहीं और नहीं था। उसकी तिरछी नजर पास हो रहे दोनों किनारे की बिल्डिंग को भी देख रही थी। रात के दस बज चुके थे और ऐसे में दिल्ली की सड़क पर ट्रैफिक में कमी आ गई थी। "सलिल सड़क के दोनों ओर बहुमंजिला इमारतों एवं मल्टी स्टोर को देखे जा रहा था" । साथ ही उसकी तिरछी नजर कभी-कभी रोमील के चेहरे पर भी जाकर टिक जाती थी।....वह जानता था कि रोमील उसके व्यवहार से दुःखी है, स्वाभाविक ही है कि उसे इस प्रकार से बात नहीं करनी चाहिए थी। बस इतना सोचने के बाद सलिल रोमील को संबोधित करके धीमे स्वर में बोला।
रोमील! साँरी यार, वैसे तुमने पुछा था न कि क्या हुआ? बोलकर सलिल रुक सा गया। जबकि उसको बोलते देख कर रोमील चहक कर बोला।
यश सर! मैं जानना चाहता था कि एक फोन काँल ने आपके चेहरे के भाव को कैसे बदल दिया? बस एक फोन काँल और आप आश्चर्य के सागर में डूब से गए।
बात ही कुछ ऐसी है रोमील। मैंने तुमको कहा था न कि आजकल अपने इलाके में शांति है।....परन्तु सिर मुड़वाते ही जैसे ओले पड़े हो, मेरी जुवान "काली" साबित हुई। मैंने इधर अपनी बातें खतम नहीं की, उधर होटल "सांभवी " में मर्डर हो चुका था। रोमील के प्रश्न सुनकर सलिल बोला, फिर एक पल रुकने के बाद बोला। अब मैं क्या जानता था कि मैं बोलूंगा और अपराध घटित हो जाएगा। अब इसे संयोग कहे, या अभिशाप कि बोला नहीं और अपराध घटित भी हो गया। बोलने के बाद सलिल तिरछी नजर से रोमील के चेहरे को देखने लगा, जबकि उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वो तल्लीनता के साथ ड्राइव कर रहा है। पुलिस जिप्सी आगे की ओर सरपट दौड़ती जा रही थी।
नहीं सर! आप भी न खामखा ही उस बात को दिल पर ले बैठे है। वैसे भी अपराध घटित होना था, तो होता ही, चाहे आप बोलते, या नहीं बोलते। सलिल के चुप होते ही रोमील उत्साहित होकर बोला।
उसकी बातें सुनकर सलिल कुछ बोलने ही बाला था, लेकिन फिलहाल उसने अपने इरादे को टाल दिया। क्योंकि होटल सांभवी आ चुका था और अब उसे कार्रवाई को अंजाम देना जो था। सलिल ने पुलिस जिप्सी को होटल गेट के अंदर घुसाया और कंपाऊंड में खड़ी कर दी। फिर वे दोनों जिप्सी से बाहर निकले और बिल्डिंग की ओर बढ चले। जिप्सी से उतरते समय ही सलिल की तेज नजर ने देख लिया था कि पुलिस टीम आ चुकी है। इसका मतलब है कि काम शुरु हो चुका है। इसलिये उसने अपनी चाल तेज कर दी। वे होटल के उस रूम में पहुंचे, जहां " वारदात" घटित हुआ था।
वहां पहुँचने के बाद सलिल ने नंदा की लाश को देखा। "लाश" को नंगी अवस्था में देखकर सलिल के तो हाथ-पाँव ही फूल गए। कहीं मीडिया बालों ने लाश को इस अवस्था में देख लिया, तिल से ताड़ बनाते देर नहीं करेंगे। फिर तो उसकी शामत ही आनी है, क्योंकि उसका खड्डूस बाँस तो बस मौके की तलाश में ही रहता है। बस मौका मिला नहीं कि उसपर राशन-पानी लेकर चढ दौड़ेगा।.....सोचकर ही सलिल ने झुरझुरी सी ली, फिर उसने फिंगर एक्सपर्ट जयकांत बात्रा को निर्देशित किया कि लाश को ढक दे। परन्तु जयकांत बात्रा ने उसको समझाया कि अभी सबूत इकट्ठी करनी है, इसलिये लाश के साथ छेड़छाड़ करना ठीक नहीं।
जयकांत की बातें सुनकर उसने हामी भरी, फिर वहां खड़े पुलिस के जवानों को निर्देशित करने लगा कि जब तक वो नहीं कहे, मीडिया बाले को अंदर आने नहीं दे। उसके बाद सलिल लाश के पास बैठ गया और गहरी नजर से नंदा के जिस्म को देखने लगा। तभी उसकी नजर दूर कोने में बैठे श्रेयांश पर गई। सलिल उठा और श्रेयांश के पास पहुंचा। उसे अपनी ओर बढता देख श्रेयांश की धिग्धी बंध गई, जबकि सलिल उसके करीब ही बैठ गया।.....फिर अपने हाथ को उसने श्रेयांश के कंधे पर टिका दिया। उसका सहानुभूति भरा स्पर्श पा कर श्रेयांश थोड़ा शांत हुआ और सलिल को घटना के बारे में बतलाने के लिए उद्धत हुआ।.....परन्तु उससे बिना कोई सवाल किए ही सलिल उठा और होटल के दूसरी तरफ बढ गया।
***********
क्रमशः-