दिन के तीन बजने के साथ ही " होटल सांभवी" के आस- पास चहल-पहल बढ गई थी। वैसे तो इस होटल में अपराध घटित हुआ था, यह पुलिस के द्वारा शील कर दिया गया था और इसके रक्षा की जिम्मेदारी सब- इंस्पेक्टर राम माधवन को था और वो पिछले दो दिनों से अपनी डियूटी पूरी मुस्तैदी से "निभा" रहा था। परन्तु आज इस होटल में सीनियर अधिकारियों के दौरे होने थे, साथ में भूत नाथ भी आने बाला था।
बस समय निर्धारित होने के साथ ही होटल "सांभवी" के आस-पास हलचल बढ गई थी और इसे सुचारु रुप से चलाने की जिम्मेदारी राम माधवन एवं रोमील को दी गई थी।.....इसलिये रोमील कब का राम माधवन की मदद करने के लिए पहुंच चुका था। वैसे तो यहां पर ज्यादा कुछ नहीं करना था। बस तांत्रिक भूत नाथ यहां पर आकर तांत्रिक विधि को करने बाला था और इस कार्यक्रम को मीडिया बाले कबरेज करें, इसलिये पुलिस ने मीडिया बालों को भी बुला लिया था।....बस यही टेंशन था पुलिस बालों को कि.....कहीं एन मौके पर ही सब गुड़- गोबर नहीं हो जाए।
इसलिये सलिल ने रोमील को विशेष हिदायत देकर भेजा था, साथ ही पुलिस फोर्स की एक कंपनी "होटल" के आस-पास तैनात कर दी गई थी और अब जो रोमील यहां पहुंचा। उसने होटल के लाँक गेट को खुलवाया और फिर राम माधवन के साथ अंदर जाकर जायजा लिया।.....साथ ही एक सिपाही को उस रूम को धोने को कहा,...."जिसमें अपराध घटित हुआ था। सिपाही ने आदेश मिलते ही अपने काम की शुरुआत कर दी, जबकि राम माधवन व रोमील ने होटल बिल्डिंग के एक चक्कर लगाए और जब दोनों लौटे, रूम साफ हो चुका था। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि दोनों के चेहरे पर चमक आ जाए।
इसके बाद दोनों वहां से निकले और हाँल में आकर बैठ गए एवं अधिकारियों का काफिला आने का इंतजार करने लगे। फिर बीतते समय के साथ ही दोनों के चेहरे पर बेचैनी का भाव परिलक्षित होने लगा, क्योंकि किसी का भी इंतजार करना कितना दुष्कर होता है,....यह तो इंतजार करने बाला ही बतला सकता है।....परन्तु उन्हें ज्यादा देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा, क्योंकि चार बजते ही गाड़ियों का काफिला आने लगा।.....गाड़ियों की आवाज सुनते ही रोमील एवं राम माधवन तेजी से बाहर निकले, तब तक उन्हें सामने से सीनियर अधिकारी के साथ सलिल आता दिखाई दिया। राम माधवन ने उन लोगों को सैल्यूट दिया,....परन्तु सलिल एवं आने बाले अधिकारियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
इसके बाद मीडिया बालों की भी टीम आ गई और उन लोगों ने भी हाँल का रुख किया। सब से अंत में पांच मिनट बाद एस. पी. साहब की गाड़ी ने होटल कंपाऊंड में प्रवेश किया और पोर्च में रुकी। फिर उसमें से एस. पी. साहब के साथ तांत्रिक भूत नाथ बाहर निकला। उन्हें देखते ही दोनों ने सैल्यूट दिया, जिसका जबाव एस. पी. साहब ने मुस्करा कर दिया।.....फिर तो सभी होटल बिल्डिंग की ओर बढ गये,....लेकिन गेट के पास पहुंचते ही तांत्रिक भूत नाथ अचानक ही रुक गया।.....उसका यूं ही अचानक रुकना....ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसे अदृश्य ताकत ने रोक लिया हो।....फिर तो वो होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाने लगा और अचानक ही उसने हुंकार भरी।
इसके बाद एस. पी. साहब के साथ उसने हाँल में कदम रखा। जबकि उसके इस नौटंकी पर जहां एस. पी. साहब के होंठों पर मंद-मंद मुस्कान छा गई, वही पर राम माधवन कूढ कर बोला,...."साला कमीना, नौटंकी तो ऐसे करता है, जैसे अदृश्य शक्तियों से सीधा ताड़ जोड़ रखा हो"। लेकिन राम माधवन के होंठों से निकला स्वर इतना धीमा था कि उसकी गूंज सिर्फ रोमील के कानों तक ही पहुंच सकी। उसकी बातें सुनकर रोमील के होंठों पर मुस्कान आकर गायब हो गई। फिर वे लोग हाँल के अंदर पहुंचे। तब तक तो सलिल पुजा विधि करवाने के लिए उस रूम में वेदी बनवा चुका था, जिसमें वारदात हुई थी। हाँल में उन लोगों के पहुंचने पर हद ही हो गई, क्योंकि तांत्रिक भूत नाथ वहां रुका नहीं।
वह सीधे कदमों से तेजी से चलता हुआ उसी रूम में पहुंचा और वहां पहुंचने के बाद ही रुका। फिर तो देर ही किस बात की थी, वह आसन पर बैठ गया और ऊँचे स्वर में मंत्र बुदबुदाने लगा और फिर हाथों में जल लेकर सीधे हवन वेदी में डाला। उसके इस क्रिया से अचानक ही हवन के लिये रखी लकड़ियों ने आग पकड़ा और धूं-धूं कर जलने लगी। फिर तो तांत्रिक भूत नाथ के होंठों से निकलता "मंत्र स्वर" उच्च आवाज में गुंजायमान होने लगा। उसकी ये हरकत मीडिया बाले लाइव प्रसारण कर रहे थे। जबकि रूम में मौजूद एस. पी. साहब, सलिल, रोमील, राम माधवन एवं पुलिस के अधिकारी, सभी ध्यान पूर्वक उसकी कार्यवाही देख रहे थे।
बीतते समय के साथ ही तांत्रिक भूत नाथ, अग्नि में हविश को डालने लगा और उच्च स्वर में मंत्र बुदबुदाने लगा और अचानक ही,.....उसके चेहरे के हाव-भाव बदले। उसकी आँखें अचानक ही लाल-लाल हो गई, उसके बाल बिखर गए और फिर वह दबी-दबी आवाज में चिल्लाने लगा,....."रति संवाद-रति संवाद"। उसे इस प्रकार से चिल्लाता देखकर रूम में मौजूद सभी व्यक्ति की आँखें आश्चर्य से फैलने लगी। जबकि तांत्रिक भूत नाथ अपने स्वर उच्चारण की गति को बढाता जा रहा था-बढाता जा रहा था और अचानक ही रुका। उसने अपनी आँखें बंद कर ली और थोड़ी देर के लिए ध्यानस्थ मुद्रा में हो गया।
उसके इस हरकत पर रूम में मौजूद सभी व्यक्तियों की सांसे अधर में फंस गई। तभी भूत नाथ ने अपनी आँखें खोली और फिर से हवन करने लगा। फिर तो वो करीब पंद्रह मिनट तक तांत्रिक क्रियाओं को करता रहा और उसके इस कर्मकांड की लाइव रिपोर्टिंग होती रही। इसके बाद वो रुका और एस पी. साहब की और भरपूर नजरों से देखने के बाद बोला।
एस. पी. साहब....वह कोई प्रेतात्मा है.....खून की प्यासी आत्मा!....जो अतृप्त है और इसी तृप्ति की चाह में वह इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है। बोलने के बाद भूत नाथ ने एस. पी. साहब के चेहरे को देखा, मानो जानने की कोशिश कर रहा हो कि उसके बातों का कितना प्रभाव हुआ है। जबकि उसकी बातों को सुनकर एस. पी. साहब गंभीर स्वर में बोले।
तो फिर आप ही बताओ......कि इसके उपाय क्या है और पुलिस को आगे क्या करना चाहिए?
उपाय.....उपाय करने की सोचना भी मत!...क्योंकि जो संभव ही नहीं, उसे करोगे कैसे? वह आत्मा बहुत ही शक्तिशाली है और वह किसी के बस में आने बाली नहीं। भूत नाथ ने ऊँचे स्वर में कहा और एक पल रुककर अपने शब्दों के प्रभाव को देखता रहा, फिर आगे बोला। वह अतृप्त आत्मा लड़के का है और वो लड़की से धोखा खाया हुआ है।.....ऐसे में वो बदले की भावना से ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहा है।.....ऐसे में उसको सिर्फ और सिर्फ तांत्रिक विधि द्वारा ही रोका जा सकता है, जो मैं करूंगा। भूत नाथ अपने अंतिम के शब्दों पर भार देकर कहा।
इसके बाद एस. पी. साहब ने अपनी शंकाओं को उसके सामने व्यक्त किया, जिसका समुचित उत्तर भूत नाथ ने दिया। उधर उन दोनों में बातें हो रही थी, इधर सलिल मन ही मन कूढ रहा था। उसे इतना तो पता था कि अभी जो इस रूम में हो रहा है,...."ढकोसला” के सिवा कुछ भी तो नहीं"। परन्तु उसकी मजबूरी यह थी कि इस ढकोसले को वह रोक नहीं सकता था। वह यह भी जानता था कि इससे कुछ हासिल होने बाला नहीं, इसलिये उसके चेहरे पर उकताहट के भाव थे। आखिरकार जब सलिल ज्यादा ही व्यग्र हो गया,....उसने राम माधवन एवं रोमील के चेहरे को देखा और उसके मन में संतुष्टि के भाव जगे। क्योंकि एक वही नहीं था, जिसके चेहरे पर ऐसे भाव थे, जबकि दोनों के चेहरे से वही भाव परिलक्षित हो रही थी।
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क्रमश:-