सुबह के आठ बज चुके थे।
प्रभात किरण और भी प्रखर हो चुकी थी, परन्तु तेरह अक्तुबर की सुबह, वातावरण में फूल गुलाबी ठंढी का एहसास घुला हुआ था। ऐसे में सलिल पुलिस स्टेशन लौट आया था और अब फाइलों में उलझा हुआ था। जबकि रोमील को उसने काम से बाहर भेजा हुआ था।…..वैसे भी रोमील के लौटने के बाद उसे तांत्रिक भूत नाथ के पास जाना था। इसलिये वह चाहता था कि आँफिस के काम जल्द से जल्द निपटा ले। तभी उसे ध्यान आया कि “ होटल “ से लौटने के बाद उसने प्रभास एवं होटल के मैनेजर ऋषिकांत से किसी प्रकार की पूछताछ नहीं की है। इसलिये उसने फाइल साइड में रखा और “रुल” उठाकर आँफिस से बाहर निकला।
वैसे तो उसको इस बात की अनुभूति थी कि “उन दोनों” के पास जाकर भी किसी प्रकार की जानकारी नहीं मिलनी है,…..फिर भी डियूटी तो निभाना ही था। इसलिये वो गलियारों से चलता हुआ “लाँकअप “ के करीब पहुंचा और उसकी नजर अंदर बंद प्रभास एवं होटल के मैनेजर ऋषिकांत पर गई। वे दोनों लाँकअप के कोने में दुबके हुए बैठे थे और जैसे ही उन दोनों की नजर “सलिल” पर गई,…..दोनों की धिग्धी बंध गई। लेकिन जब तक दोनों संभल कर बैठ पाते, सलिल लाँकअप को खोलकर अंदर प्रवेश कर चुका था। इसके बाद तो सलिल ने दोनों को संभलने का कोई मौका दिए बिना ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
भला वे दोनों उन प्रश्नों का क्या जबाव देते, जिसके बारे में उन्हें खुद नहीं पता, भला उसके बारे में क्या जबाव देते। इसलिये दोनों चुप्पी साधे ही रहे,….जिसका परिणाम हुआ कि “सलिल” के क्रोध की ज्वालामुखी भड़क उठा। फिर तो वो दोनों पर पिल पड़ा और फिर तो लाँकअप दोनों के चीखो पुकार से दहल उठा। शायद उन दोनों की स्थिति बहुत देर तक ऐसी ही रहती,….अगर रोमील वहां पर न आ गया होता। रोमील के आते ही सलिल ने दोनों को उसी हाल में छोड़ा और फिर बाहर निकला। इसके बाद दोनों आँफिस में पहुंचे। वहां पहुंचते ही रोमील उसको बतलाने लगा कि उसने जाकर कौन-कौन से कार्य का संपादन किया है। सलिल उसकी बातों को सुनकर सिर्फ सहमति में सिर हिलाता रहा।
इसके बाद दोनों आँफिस से बाहर निकले और स्काँरपियों के पास पहुंचे
और वहां पहुंचते ही रोमील ने ड्राइविंग संभाल ली और सलिल बगल बाली शीट पर बैठ गया। इस दरमियान दोनों के बीच चुप्पी छाई रही, हां, रोमील ने कार श्टार्ट करके जरूर आगे बढा दिया था और जैसे ही कार ने रफ्तार पकड़ी, रोमील के अंतर्मन में प्रश्न घुमड़ने लगे। उसे इस बात को जानना था कि “ उसके बाँस के दिमाग में आखिर चल क्या रहा है ?” एवं सुबह -सुबह ही जाना कहां है?.....परन्तु उसका हिम्मत नहीं हो रही था कि अपने प्रश्न पुछ सके। लेकिन उसके मन की दुविधा की स्थिति ज्यादा देर तक टिकी नहीं रह सकी,….क्योंकि उसके मनोभाव को सलिल ने पढ लिया था, इसलिये शांत स्वर में पुछा।
रोमील….मैं देख रहा हूं कि तुम बहुत देर से उलझन में हो,….शायद किसी प्रश्न को पुछना चाहते हो? सलिल ने रोमील को संबोधित करके कहा और उसने अपनी नजर रोमील के चेहरे पर टिका दी। जबकि रोमील अपनी नजर ड्राइव पर टिकाए हुए ही शंकित स्वर में बोला।
सर….!आप के दिमाग में इस समय क्या चल रहा है और हम लोग अभी जा कहां रहे है?
लेकिन इन बातों को तुम्हें जानने की जरूरत क्या आन पड़ी। सलिल ने सपाट स्वर में कहा और गहरी नजरों से रोमील के चेहरे को देखा। जबकि उसके मुख से निकली इतनी सी बात और रोमील की धिग्धी बंध गई। इसके बाद तो उसके कंठ से एक शब्द नहीं निकल सका, वह बस ड्राइव पर नजर जमाये रहा और कार सड़क पर सरपट दौड़ती रही।…..आखिरकार सलिल से नहीं रहा गया और तब वह बोला।….रोमील!...अभी तो मेरे दिमाग में फिलहाल तो कोई योजना नहीं है, रही बात चलने की, तो हम लोग अभी तांत्रिक भूत नाथ के पास जा रहे है। बोलने के बाद सलिल ने चुप्पी साध ली।
फिर तो रोमील की हिम्मत ही नहीं हुई कि आगे “किसी प्रश्न को पुछ सके” इसलिये उसने अपना ध्यान ड्राइव पर केंद्रित किया। इसके बाद तो स्काँरपियों सड़क पर सरपट दौड़ती रही और पीछे शहर की बिल्डिंगे छूटती रही। ऐसे में करीब घंटे बाद स्काँरपियों ने दक्षिणी दिल्ली के वीरान इलाके में प्रवेश किया और एक आश्रम के सामने रुकी। वह आश्रम, वीरान इलाके मौजूद विशाल फुस का बना मंदिर के शेप में बना हुआ झोंपड़ी। स्काँरपियों रुकते ही सलिल एवं रोमील बाहर निकले और झोंपड़ी के गेट की ओर बढे। गेट के करीब पहुंचते ही उन दोनों के नथुनों से धुमन जलने की सुगंध टकराई। फिर तो उनका मन वाग-वाग हो गया और फिर दोनों ने अंदर कदम रखा।
बाहर से साधारण सी दिखने बाली झोंपड़ी, अंदर से बहुत ही आलीशान एवं भौतिक सुख- सुविधा से परिपूर्ण थी। अंदर की साज-सज्जा एवं सुविधा को देखकर आश्चर्य चकित हो रहे सलिल की नजर जैसे ही आगे एक छोटे से मंदिर के आगे ध्यानस्थ तांत्रिक भूत नाथ पर गई,……उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। उसने तो सोचा था कि तांत्रिक कोई बूढा होगा, परन्तु आसन पर बैठा हुआ वह पच्चीस वर्ष के करीब का नौजवान था। जिसके माथे पर जटा का शक्ल लिए हुए बाल, बढी हुई दाढी और ललाट पर लगी हुई लाल-लाल रोली। झोंपड़ी में जलती हुई रोशनी में तांत्रिक का व्यक्तित्व चमक रहा था।
उसे ध्यानस्थ देखकर सलिल एवं रोमील झोंपड़ी के अंदर सजाकर रखे सोफे पर बैठ गए और इंतजार करने लगे कि “तांत्रिक भूत नाथ” कब ध्यान से अलग होते है। लेकिन उन्हें ज्यादा देर तक
इंतजार नहीं करना पड़ा,…..क्योंकि तांत्रिक भूत नाथ की आँखें खुल चुकी थी। आँखें खुलने के साथ ही जैसे ही उसकी नजर आए हुए आगंतुक पर गई, तांत्रिक ने हल्की आवाज में ताली बजाई। जिसके प्रतिक्रिया स्वरूप अप्सरा सी सुंदर युवती ने दो गिलास हाथ में लिए वहां कदम रखा और रोमील एवं सलिल को गिलास थमाकर वहां से उलटे पांव लौट गई। तब सलिल एवं रोमील ने देखा कि गिलास में “सुगंधित पेय” रखा हुआ था, जिसे दोनों ने होंठों से लगा लिया। जबकि तांत्रिक ने एक बार उन दोनों के चेहरे को देखा, फिर अपनी दाढी पर हाथ फेरते हुए गंभीर स्वर में बोला।
श्रीमान!.......आप लोगों के आने का प्रयोजन क्या है, जानता हूं। परन्तु आप इतनी जल्दी आ जाएंगे,…इसकी उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी।
महात्मन….समस्या ही ऐसी है कि मैं समय बीतने का इंतजार नहीं कर सकता था। जानता था कि आप जरूर सहायता करने को तैयार होंगे, इसलिये आपकी सेवा में हाजिर हो गया। सलिल अपने शब्दों में शहद लपेट कर बोला। जबकि उसकी बातों ने मानो भूत नाथ पर कोई असर नहीं किया हो, वो पूर्ववत मुस्करा कर बोला।
आपका सोचना सही है श्रीमान…..आप तो जाइए और तैयारी कीजिए। समान का लिस्ट आपके थाने पर पहुंच जाएगा और मैं नियत जगह पर समय से पहुंच जाऊंगा।
इतनी बातें बोलने के बाद भूत नाथ ने समाधि लगा ली।…..अब ऐसे में वहां रुकने का कोई प्रयोजन ही नहीं था। अतः सलिल ने एक नजर झोंपड़ी के अंदर चारों ओर डाली और फिर रोमील के साथ बाहर निकल गया। मन में इस आशा को लिए हुए…..कि कहीं इससे होकर ही केस में आगे बढने के लिए रास्ता मिले।…..परन्तु वो जानता नहीं था कि उसके इस कदम के परिणाम सार्थक होंगे या निरर्थक। वह तो बाँस ने आदेश दिया था। इसलिये उनके आदेश का पालन करना ही उसका धर्म था।
क्रमश:-