सुबह की किरण ने जैसे ही धरती के आँचल को छूआ, चारों ओर प्रकृति खिल सी गई। ऊँची-ऊँची इमारतें अपने बुलंदी पर इतराने लगी। शहर का कोना-कोना प्रकाश से खिलकर इतराने लगा।.....फिर तो इंडिया गेट की चमक तो विशेष कर बिखरने लगा। सुबह के आगमन के साथ ही वहां हलचल बढ गई थी।.....सूर्य के आगमन के साथ ही सभी अपने-अपने काम में लग गए थे। उस इनोवा कार में भी प्रकाश पड़ी और प्रकाश सीधे पड़ने के कारण सान्या सिंघला कुनमुना कर उठी।
इस समय वो शरीर पर बिना किसी लिबास के थी और आँख खुलते ही उसे इस बात का एहसास हुआ।......यह तो संजोग ही कहा जाएगा कि किसी की नजर कार की तरफ नहीं गई थी.....अन्यथा तो वहां काफी भीड़ जमा हो जाती...और उसे शर्मिंदगी का सामना करना होता। परन्तु ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, अतः वो फटाफट अपने कपड़े पहनने लगी।...साथ ही उसके होंठों पर मादक मुस्कान उभड़ आई। उफ!...यह जिंदगी, मजा के लिए ही तो है, जम कर घूमो और मजे लो। उसने सोचा नहीं था कि ढाबे में काम करने बाले लड़के में इतनी जान होगी।....उस लड़के ने तो उसको जन्नत की सैर करा दी थी, उसके अंग-अंग में अभी मीठा -मीठा दर्द हो रहा था।
सोचते-सोचते सान्या सिंघला ने कपड़े पहन लिए थे और अब वो कार श्टार्ट करके आगे बढा दी थी। कार झटके लेती हुई आगे बढी और सरपट सड़क पर दौड़ने लगी। जबकि सान्या, उसने म्यूजिक प्लेयर आँन कर दिया था और बजते हुए गीत को होंठों से दुहरा रही थी।......बीस मिनट भी नहीं बीते होंगे कि उसकी कार ने रोहिणी में अवस्थित उसके निवास "भाव्या बिला" में प्रवेश किया। उसने कार को बंगले के पोर्च में खड़ा किया और बाहर निकल कर बिल्डिंग की और बढ गई।
जब वो हाँल में पहुंची, राजीव सिंघला हाँल में बैठे थे।....राजीव सिंघला, सौंदर्य प्रसाधन के उत्पादन कर्ता और बहुत बड़े बिजनेस मेन। पचास वर्ष के राजीव सिंघला इकहरा शरीर और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे। उसपर उनके आँखों पर काला चश्मा, उनके व्यक्तित्व को और भी प्रभावशाली बना रहा था।.....राजीव सिंघला, खुले विचार रखने बाले और खुले रिलेशनशीप का समर्थन करने बाले। इस समय वे इंग्लिस न्यूज का अखबार पढ रहे थे।.....सान्या ने हाँल में जैसे ही कदम रखा...उन्होंने पेपर से नजर उठाया और सान्या के चेहरे पर नजर टिकाकर बोले।
सान्या....माइ सन, इतनी देर कहां लग गई बेटा? बोलने के बाद वो फिर पेपर पढऩे लगे, जबकि सान्या उनके करीब आकर बैठ गई।....फिर मुस्करा कर बोली।
कुछ नहीं पापा......मैं सहेली के घर रुक गई थी, इसलिये आने में लेट हो गई।
कोई बात नहीं बेटा.....परन्तु समय से घर आ जाने की कोशिश किया करो। इस बार पेपर पढते हुए ही राजीव सिंघला ने कहा, जिसका जबाव सान्या ने नहीं दिया।
ऐसे में वहां चुप्पी छा गई और शायद उन दोनों में से कोई भी चुप्पी तोड़ना नहीं चाहता था। तभी घर का नौकर रामदिन ने हाँल में कदम रखा। इस समय उसके हाथों में ट्रे थी, जिसमें रखे कप से भाप उठ रहे थे, स्वाभाविक था कि वो काँफी लेकर आया था। उसने दोनों को काँफी सर्व किया और उलटे पांव वापस किचन की ओर लौट गया।....फिर तो दोनों काँफी पीने में मशगूल हो गए, परन्तु फिर भी उन लोगों के बीच बात चीत नहीं हुई। लेकिन अपनी काँफी खतम करने के बाद राजीव सिंघला ने अपनी नजर सान्या के चेहरे पर टिका दी और गंभीर स्वर में बोले।
बेटा सान्या.....।
जी पापा...। सान्या ने भी तत्परता के साथ उत्तर दिया। जिसे सुनकर सहज ही राजीव सिंघला के होंठों पर मुस्कान छा गई, फिर वे अपने शब्दों को तौल-तौल कर बोले।
बेटा.....मैं चाहता हूं कि तुम अब अपना जीवन साथी चुन लो, जिससे मैं अपने इस जिम्मेदारी से मुक्त हो सकूं।
पापा.....आप भी न, कभी-कभी बहकी-बहकी बातें करने लगते है। उनकी बातें सुनकर सान्या ने बनावटी नाराजगी दिखाकर कहा और फिर पैर के अंगूठे से फर्श को कुरेदने लगी। जबकि उसके द्वारा कही बातों को सुनकर राजीव सिंघला की मुस्कराहट और भी गहरी हो गयी। उन्होंने सान्या के आँखों में देखकर कहा।
सान्या बेटा.....ब्याह तो तुम्हें करना ही है और यह मेरी जिम्मेदारी भी है। "क्योंकि इतने विशाल एंपायर की तू अकेली वारिस है और तेरे सिवा मेरा दुनिया में कोई भी नहीं है और तो बेटा.....मुझपर मां एवं बाप, दोनों की जिम्मेदारी है। बोलने के बाद राजीव सिंघला एक पल के लिए रुके, फिर बोले।....यह अलग बात है बेटा कि तुम्हें कोई पसंद आ गया हो, तो बोल दे, मैं तुम्हारी शादी उसी से करवा दूंगा। बोलने के बाद राजीव सिंघला ने अपनी नजर सान्या के चेहरे पर टिका दी और उसके मनोभाव को पढऩे की कोशिश करने लगे।
जबकि सान्या क्या कहती, उसे तो रोज ही बिस्तर पर एक नया लड़का चाहिए होता था। लड़का में चाहे कितनी भी खूबसूरती हो, वह कितना भी जवाँ मर्द हो, एक बार के बाद वो उसके चित से उतर जाता था। उसकी इच्छा ने इतना विशाल वृक्ष का रुप ले-लिया था कि रात गई-बात गई, बाली स्थिति थी। ऐसी परिस्थिति में वो एक से शादी करके एक खूंटे से बंधकर नहीं रह सकती थी।.....परन्तु इन बातों को वो अपने पिता के सामने कह भी तो नहीं सकती थी। ऐसे में बहुत देर तक उसने चुप रहने के बाद गोल-मटोल जबाव दिया।
पापा.....आप भी न, सुबह-सुबह ही किस टाँपिक को ले कर बैठ गए। आप छोड़िए न अभी इन बातों को, अभी तो मेरी उम्र ही क्या है? जब कोई लड़का पसंद आ जाएगा, आप को बता दूंगी।
बोलने के बाद वो उठी और अपने रूम की ओर चली गई। उसने जो जबाव दिया था, उसके प्रतिक्रिया को भी जानने की कोशिश नहीं की।...उसे जाता हुआ देखकर राजीव सिंघला मुस्कराए। उनकी तो समझ में यही आया कि सान्या अभी बच्ची है, शायद उनके बातों को सुनकर शर्मा गई है।.....वैसे भी उनकी नजर में सान्या की उमर ही क्या हुई थी," अभी तो उसके खाने-खेलने के दिन थे। इसलिये उन्होंने अपना ध्यान उस ओर से हटाया और "अपने बिजनेस के लिए निर्धारित कार्यक्रम" को याद करने लगे। वैसे तो उनका बिजनेस बहुत बड़ा आकार ले चुका था....फिर भी उनके हृदय में संतुष्टि नहीं थी। उन्हें अपने इस विशाल एंपायर को और भी विशाल करना था" इतना विशाल कि इसकी जद में पूरी दुनिया ही सिमट कर आ जाए।
वैसे तो उनके पास अर्जित किए हुए संपत्ति का उपभोग करने बाला "सान्या" के अलावा और कोई नहीं था। परन्तु फिर भी उनको सनक सवार रहती थी कि इस बिजनेस को किस प्रकार से आगे बढाया जाए। इसलिये वे हमेशा प्रयासरत रहते थे और हर वो कदम उठाने के लिए तत्पर रहते थे, जिससे उनके बिजनेस को लाभ हो। आज भी इसी सिलसिले में उनकी विदेशी कंपनी से मीटिंग थी। इसलिये वे एक पल तक अपने दिन के सारे कार्यक्रम को याद करते रहे.....फिर अपनी जगह से उठे और हाँल से बाहर निकले। बाहर बिल्डिंग के अहाते में उनकी मर्सिडीज खड़ी थी। उन्होंने ड्राइविंग शीट संभाली और कार श्टार्ट करके आगे बढा दी। कार बिला के गेट से निकली और सड़क पर फिसलती चली गई।
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क्रमशः-