लवण्या कार को यूं ही भगाये जा रही थी, बेतहाशा, बिना किसी मकसद के। उसका तो रोज का ही काम था, दिल्ली की सड़क को छानना। बस वह एक झलक पाना चाहती थी और अचानक ही उसकी कार एक्सीडेंट होते-होते बची। उसे तो लगा कि उसकी कार सामने बाली कार से टकरा ही गई,.....भय से उसने आँखें बंद कर ली और जब खोली, भौचक्की रह गई। कारण भी था, क्योंकि उसने जो कल्पना नहीं किया था, आखिर वही हुआ था। उसके पांव ब्रेक पर कसे हुए थे और सामने बाली कार भी रुकी हुई थी।
खतरा टला, तो स्वाभाविक ही था कि लवण्या आर को होश आया और होश आते ही वो गुस्से से लाल-पीली हो गई। उफ!....शहर के लोग कैसे है? ड्राइव करने नहीं आती और सड़क पर कार लेकर आ जाते है। बस गुस्सा आना था और लवण्या आर बाहर निकली, एवं सामने बाली ब्लैक इनोवा कार के पास पहुंची और गुस्से से कार के शीशे को थपथपाया। लेकिन जैसे ही कार का गेट खुला, लवण्या आर आश्चर्य में डूब कर बुत बन गई। भला वो उस चेहरे को कैसे भूल सकती थी, जो काँलेज में उसका "हमदर्द" नाम से मशहूर था। जिसकी कोशिश ही यही रहती थी कि हमेशा "लवण्या आर" के चेहरे पर खुशी विराजमान रहे। वह नित दिन ही तो उसके होंठों की हंसी को "कायम" रखने के लिए प्रयास रत रहता था। लेकिन एक वो थी कि कभी उसके भावना को समझने की कोशिश ही नहीं की। अन्यथा, शायद वो समझकर भी यूं ही अंजान बनती रही।
हां, सामने बाली कार में सम्यक बहल ही था, जो आश्चर्य के सागर में गोते लेता हुआ लवण्या आर को देखे जा रहा था। उस लवण्या आर को, जिसकी दीवानगी में वो काँलेज में "मजनू बहल" के नाम से मशहूर हो गया था। उस लवण्या आर को देख रहा था, जो उसके भावनाओं का कद्र करना ही नहीं जानती थी। लेकिन इससे क्या? चाहतों की उफान धीमी होती है? तो जबाव होगा कि नहीं,.....ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है। चाहत तो वो चीज है, जो सामने से पाने की आशा ही नहीं रखती। इसका तो स्वभाव ही ऐसा है कि जिसको अपना मान लिया,.....बस उसके ही होकर रह गया। इसमें स्वार्थ नहीं होता, अपितु बस अर्पित करने की इच्छा होती है। बस अपने आप में रमने की चाह में "फना" हो जाने पर भी किसी प्रकार की आनाकानी नहीं होती।
बस सम्यक बहल, उसी चाहत के अधीन हो चुका था, तभी तो लवण्या आर को अपने सामने देख कर आश्चर्य के सागर में गोते लगा रहा था। लेकिन इस स्थिति में वो ज्यादा देर तक नहीं रह सका, क्योंकि तभी लवण्या आर के होंठ हिले, परन्तु आश्चर्य एव भावनाओं के प्रबल आवेग में वो भी कुछ नहीं कह सकी। बस दोनों की नजरे आपस में एक दूसरे को देखती रही और बातें करती रही। लेकिन ऐसी स्थिति ज्यादा देर तक स्थाई नहीं रहने बाली थी। आखिर दोनों में से किसी को तो बात की शुरुआत करनी ही थी। इसलिये सम्यक ने जब देखा कि लवण्या चाह कर भी बोल नहीं पा रही, वो कार से बाहर निकला और उसके सामने खड़ा हो गया, फिर तो उसके होंठों से कांपता स्वर निकला।
लवण्या.....त....तुम! ओह माय गाँड! विश्वास ही नहीं होता कि तुम मेरे सामने खड़ी हो। बहुत ही मुश्किल से सम्यक अपनी बातों को कह सका, फिर वो उसके आँखों में देखने लगा। जबकि लवण्या आर, वो तो बस अपलक सम्यक को देखे जा रही थी। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि......अचानक से ही उससे मुलाकात हो जाएगी, "वह भी इस प्रकार से"। ऐसे में जब उसने सम्यक की बातें सुनी, "हर्ष, आश्चर्य, दुख और अह्लाद के भाव" से वह सम्यक से लिपट गई और कांपते हुए स्वर में उसके कान के पास धीरे से बोली।
सम्यक......तुम!....यूं ही अचानक से! कहां थे अब तक तुम?
लवण्या आर ने एक साथ प्रतिक्रिया भी दी और प्रश्न भी पुछ लिए। तब तक सम्यक काफी हद तक संभल चुका था और उसे अनुभूति हो चुकी थी कि "उन दोनों के कारण ट्रैफिक जाम की समस्या उत्पन्न हो चुकी है। दिल्ली की सड़क पर वैसे ही सेकंड में सैकड़ों गाड़ियां गुजर जाती है। ऐसी परिस्थिति में उन दोनों का खङा होना, आगे-पीछे हजारों गाड़ियां खड़ी हो गई थी। इसलिये सम्यक ने अपनी भावना को नियंत्रित किया और लवण्या आर को खुद से अलग किया। फिर उसको समझाया कि " यहां खड़े होकर बात करने की अपेक्षा किसी काँफी शाँप में चलते है।
उसकी बाते सुनकर लवण्या आर मुस्कराई और उसने काँफी शाँप चलने की बजाए किसी वियर बार में चलने को कहा। इसके बाद तो, दोनों ने कार श्टार्ट की और एक ही लीक में कर लिया और फिर दोनों की कार आगे-पीछे सरपट सड़क पर दौड़ने लगी। दिल्ली की सड़क, रात में भी रोशनी में नहाई हुई “जगमग" करती। उसपर दौड़ती हुई गाड़ियां, उसके बीच दोनों की कार सरपट भागती जा रही थी और फिर "अशोका वियर बार" के सामने ही जाकर रुकी। अशोका वियर बार, रोशनी में जगमग करती हुई दुल्हन की तरह लग रही थी।
कार के रुकते ही दोनों बाहर निकले और वियर बार के बिल्डिंग की ओर बढे। गेट से प्रवेश करते ही उनकी आँखें चमक उठी। कारण, इस वियर बार में ज्यादातर शाम को काँलेज के छात्र ही आते थे, शाम को इंज्वाय करने और दोनों की नजरे दो परिचित चेहरे से टकरा गई। इसलिये ही उन दोनों की आँखों में चमक आई थी। फिर दोनों उसी टेबुल की ओर बढे, जहां उनके काँलेज के दोस्त इशांत एवं संभ्रांत बैठे थे। चलते हुए जैसे ही दोनों उस टेबुल के करीब पहुंचे, इशांत एवं संभ्रांत भी हर्ष एवं आश्चर्य युक्त होकर चौंके। फिर तो सम्यक एवं लवण्या वहां रखी खाली कुर्सी पर बैठ गए। तब तक इशांत खुद पर नियंत्रण कर चुका था, इसलिये आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोला।
तुम दोनों......अचानक ही इतने दिनों बाद! वह भी एक साथ इस वियर बार में?.....इशांत ने प्रश्न पुछा, फिर अपनी नजर दोनों के चेहरे पर टिका दी। जबकि उसके प्रश्न सुनकर सम्यक सहज ही मुस्कराया, फिर उसने हाँल में नजर घुमाई। आधुनिक सुविधाओं से युक्त इस वियर बार की बात ही निराली थी। जो शाम होते ही ग्राहकों के अवर-जबर से गुलजार हो जाता था। उस पर यहां के वेटरों की चुस्ती-फुर्ती, जो ग्राहकों की सेवा में तत्पर रहते थे। सम्यक और लवण्या अनेकों बार यहां आ चुके थे, क्योंकि यह वियर बार उन्हें बहुत पसंद था। आज भी तो, नीली रोशनी में हाँल चमक रहा था। जिसे देखने के बाद सम्यक शर्माकर बोला।
यार इशांत......मैं तो आज भी यहां नहीं आता। लेकिन अचानक ही लवण्या मुझे मिली और उसने आने के लिए कहा।
इसके बाद सम्यक उसे बतलाने लगा कि किस प्रकार से "लवण्या जब उसे इग्नोर करने लगी थी। उसने काँलेज आना छोड़ दिया था और अपने अपार्ट मेंट में कैद होकर रह गया था और आज अचानक ही वर्षों बाद उसे लवण्या मिली। सम्यक अपनी बातें कहता जा रहा था और लवण्या पछतावा और वेदना में पिघलती जा रही थी। तब तक वेटर "वियर की बोतल" सर्व कर गया। इसके बाद तो, संभ्रांत ने पैग बनाने की जिम्मेदारी संभाल ली, जबकि सम्यक की बातें खतम होते ही इशांत ने लवण्या से उसके बारे में पुछा।....लवण्या उसके प्रश्न सुनकर एक पल को मौन होकर सोचती रही, फिर बतलाने लगी कि किस प्रकार से वो अपने जीवन के फैसले लेने में धोखा खा गई और "व्यर्थ प्रेम के जाल में फंस गई"।
किस प्रकार से "गर्वित सक्सेना " ने उससे प्रेम किया और फिर सान्या सिंघला के जाल में फंस कर उसका साथ छोड़ दिया। लवण्या अपने बीते दिनों के "कड़वे अनुभवों को" बतलाने लगी। इस दौरान उन चारों में पीने-पिलाने का दौर शुरु हो चुका था। जब लवण्या ने अपनी बात खतम की, इशांत दोनों की तकलीफ समझ चुका था। वह जानता था कि लवण्या और सम्यक में वार्तालाप की जरूरत है, तभी उनके बीच के गिले-शिकवे दूर हो सकते है।....इसलिये उसने पीने-पिलाने के दौरान ही दोनों में बात शुरु करवा दी।.....फिर तो दोनों घंटों बात करते रहे और "अलग होने के बाद" के खट्टे-मीठे अनुभव बताते रहे। लेकिन सम्यक से लवण्या को बस इतनी ही शिकवा-शिकायत थी कि जब वो उसको चाहता था,....तो उसने अपने प्रेम का इजहार क्यों नहीं किया।
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क्रमश:-