अपने आँफिस में लौटते-लौटते सलिल को दस बज गए। करीब दस बजे वह अपने आँफिस में पहुंचा और पहुंचते ही चौंक गया। उसने जैसे ही आँफिस में कदम रखा, अपने टेबुल पर रखे हुए लिफाफे को देखकर उसे चार सौ चालीस बोल्ट का झटका लगा। बात ही कुछ ऐसी थी, टेबुल पर कोर्ट का शील बंद लिफाफा रखा हुआ था। देखते ही सलिल की भँवें तन गई, फिर वो आगे बढा और अपनी शीट पर बैठ गया, तब तक रोमील भी आँफिस में कदम रख चुका था और उसकी भी नजर लिफाफे पर पड़ चुकी थी।
तब तक तो सलिल ने लिफाफे को उठाकर खोल लिया था और उसमें रखे हुए पेपर को निकाल कर पढने लगा था। जबकि रोमील अपनी शीट पर बैठ गया था और उसकी नजर सलिल के चेहरे पर टिक गई थी। उसके मन में उत्कंठा जग रही थी कि आखिर उस पेपर में क्या लिखा है?.....इसलिये वो सलिल के चेहरे को गहरी नजरों से देख रहा था। साथ ही उसके मनोभाव को पढने की कोशिश कर रहा था, परन्तु उसमें सफलता नहीं मिल रही थी।.....क्योंकि इस समय सलिल का चेहरा सपाट था, ऐसे में उसके चेहरे से उसके मनोभावों को पढना आसान नहीं था।
लेकिन उसे ज्यादा समय तक इंतजार नहीं करना पड़ा,.....क्योंकि सलिल ने "कोर्ट नोटिस" को पढ लिया था और अब उसने पेपर टेबुल पर रख दिया और मोबाइल उठाकर बाँस को काँल लगा दिया।....काँल रीसिव होते ही सलिल मृदुल शाहा को बतलाने लगा कि किस प्रकार से नोटिस भेजा है। सलिल के बात करने से ही रोमील को पता चला कि इस मर्डर केस में "तांत्रिक भूत नाथ " की एंट्री का कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट को इस बात का जबाव चाहिए कि पुलिस इस प्रकार से अंध विश्वास का शिकार कैसे हो सकती है और मीडिया के साथ ही जनता को भ्रम में किस प्रकार से डाल सकती है? बस इसलिये ही इस केस में स्पष्टीकरण के लिए पुलिस को कोर्ट में दिन के बारह बजे लाइन हाजिर होने को कहा है। फिर रोमील ने सुना कि बाँस सलिल को समझा रहे थे कि आगे क्या करना है।
इसके बाद सलिल ने फोन काँल डिस्कनेक्ट किया और अपनी शीट से उठकर बाहर निकला। फिर क्या था,.....रोमील ने उसका अनुसरण किया और फिर दोनों कुछ पल बाद ही स्काँरपियों में बैठे थे। कार ड्राइव रोमील कर रहा था, जबकि सलिल बगल में बैठा हुआ था। कार सड़क पर फूल रफ्तार से भागी जा रही थी। लेकिन ड्राइव करते हुए रोमील अपने विचारों में ही उलझा हुआ था और इन्हीं विचारों के जबाव पाने का इच्छुक था।.....परन्तु किस प्रकार से? वह कैसे अपने बाँस से प्रश्न पुछे?.....क्योंकि वो जानता था कि उसकी जुवान तनिक भी इधर-उधर हुई,..."बाँस उसपर राशन-पानी लेकर चढ दौड़ेगा"। इसलिये मन ही मन वो खुद ही उलझन को सुलझाने की कोशिश कर रहा था, तभी सलिल अचानक ही बोला।
लगता है,....तुम कोर्ट के ही नोटिस पर उलझे हुए हो? सलिल ने प्रश्न पुछा और अचानक ही पुछे गए प्रश्न से रोमील चौंक कर बोला।
ज...जी सर!....मैं इस प्रश्न पर उलझा हुआ हूं कि अब आगे क्या होगा? रोमील गंभीर स्वर में बोला, फिर अपनी नजर ड्राइव पर टिका दी। कार सरपट सड़क पर दौड़ती जा रही थी। आगे-पीछे भागते गाड़ियों की लाइन और इस तरह से भागती हुई प्रतीत होती सड़कें।
रोमील....अब तो कोर्ट रूम में जाने पर ही पता चलेगा कि आगे क्या किया जा सकता है। वैसे अभी तो फिलहाल पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेने के लिए हाँस्पिटल चलते है और वहां से सीधे मूख्यालय चलेंगे, बाँस के पास।
इतनी बात बोलने के बाद सलिल ने चुप्पी साध ली।....फिर तो रोमील की हिम्मत ही नहीं थी कि आगे कोई प्रश्न पुछ सके। बस उसने कार ड्राइव पर ध्यान केंद्रित कर दिया, जबकि सलिल, वो सोच रहा था कि आगे उसे क्या-क्या करना है। उसे अपनी कार्यवाही को आगे बढाने के लिए सबसे पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जरूरत थी, इसलिये वो सरकारी हाँस्पिटल जा रहा था, डा. संजीव पाहूजा के पास। फिर वहां से निकलेगा, तो सीधे पुलिस मूख्यालय जाए और बाँस को रिपोर्ट सौंपेगा। उसके बाद बाँस से आदेश लेगा कि "कोर्ट नोटिस" पर किस प्रकार की कार्रवाई करनी है।
घर्र.....घर्रर।
सहसा अचानक ही कार झटके के साथ रुकी, जिसके कारण टायरों के घिसटने की आवाज से पूरा इलाका गुंज उठा और इस अचानक लगने बाले झटके से सलिल की तंद्रा भी टूट गई। फिर उसने देखा कि कार हाँस्पिटल के प्रांगण में खड़ी थी। इसलिये रोमील के साथ कार से उतरा और उधर बढ गया, जिधर डाक्टर संजीव पाहूजा की आँफिस थी।.....मन में इस विचार को लिए हुए कि डाक्टर इस केस में क्या जानकारी देता है। बात भी तो वहीं टिकी थी, रिपोर्ट आने के बाद ही इस केस में आगे कार्रवाई संभव था। इसलिये तेज कदमों से चलता हुआ वह डाक्टर के आँफिस में पहुंचा, तो देखा कि डाक्टर फाइलों में उलझा हुआ था। संजीव पाहूजा की नजर जैसे ही दोनों पर गई, बैठने के लिए इशारा किया और बैठ जाने के बाद उनकी ओर देखकर धीरे से बोला।
कहिए सर!.....आपकी क्या सेवा करुं?
सेवा करने की जरूरत नहीं है डाक्टर साहब, बस आप मुझे पोस्टमार्टम रिपोर्ट दीजिए और इस केस के महत्वपूर्ण बिंदुओं को बताइए। डाक्टर की बातें सुनकर सलिल तपाक से बोला और फिर पाहूजा के चेहरे को व्यग्र नजरों से देखने लगा। उसकी बातें और चेहरे के हावभाव देखकर को समझ कर डाक्टर पाहूजा के होंठों पर मुस्कान आ गई और फिर बोले।
लगता है सलिल सर......आप बहुत जल्दी में है, तभी तो व्यग्र हो रहे है?
हां डाक्टर साहब,.....बात ही कुछ ऐसी है। कोर्ट ने इस केस में संज्ञान ले लिया है और बारह बजे कोर्ट में भी पेश होना है। पाहूजा की बातें सुनकर सलिल पूर्ववत बोला, जबकि उसकी बातें सुनकर डाक्टर पाहूजा ने एक फाइल उसके हाथों में थमाया और बोला।
सर.....ये रही तीनों डेड बाँडी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट। परन्तु आश्चर्य की बात है कि इन तीनों हत्याओं में साइनाइड जहर का उपयोग हुआ है। परन्तु इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात ये है कि इस हत्या में डेड बाँडी के शरीर से जो कांच निकला है,....वो ड्रेसिंग बोर्ड के शीशे का ही टुकड़ा है,.....है न आश्चर्य की बात। अपनी बातें बोलने के बाद पाहूजा ने अपनी नजर सलिल के चेहरे पर टिका दी और उसके आँखों में देखने लगा। जबकि उन्हें अपनी ओर देखता पाकर सलिल बोला।
डाक्टर साहब.....यह तो ठीक है, परन्तु इसके आगे कोई खास बात? सलिल ने प्रश्न पुछा, जिसके जबाव में पाहूजा एक पल मौन होकर कुछ सोचने लगा, फिर गंभीर होकर बोला।
नहीं सर,.....ऐसी बात नहीं है सर। उसमें भी अभी तक बिसरा रिपोर्ट नहीं आया है, इसलिये इस विषय में ज्यादा कुछ नहीं बतला सकता।
बोलने के बाद पाहूजा ने मौन साध ली। डाक्टर के मौन साधते ही सलिल समझ चुका था कि अब पाहूजा बात करने के मुड में नहीं है। इसलिये डाक्टर से विदा लेकर सलिल और रोमील वहां से निकले और कार में बैठते ही श्टार्ट करके आगे बढा दी। फिर तो कार हाँस्पिटल गेट से निकलते ही सरपट दौड़ने लगी। इस दरमियान कार के अंदर चुप्पी छाई रही,.....क्योंकि सलिल बात करने के मुड में नहीं था और रोमील की हिम्मत नहीं थी कि बात की शुरुआत कर सके। ऐसे में बस कार के इंजन की आवाज ही कार में गुंज रही थी। फिर तो कार "पुलिस मूख्यालय " के प्रांगण में ही रुकी और गाड़ी के रुकते ही दोनों बाहर निकले और तेजी से एस. पी. साहब के आँफिस की ओर बढे,....मन में जिज्ञासा के साथ ही भय को लेकर।
***********
क्रमशः-