कहानी के मुख्य शब्द, यानी कि रति संवाद, मानव मन की वेदना का आकलन है। जब कोई किसी के द्वारा छला जाता है, किसी के द्वारा धोखा खाता है, तो उसके हृदय में कुंठा जागृत होती है। जब वह अपने मन की कुंठा का समन नहीं कर पाता, तो फिर औरो के लिए नुकसान देय बन जाता है।
प्रारंभ:-
वह बीस वर्ष का नौजवान था। शरीर गठा हुआ, लेकिन इकहरा, घनी काली जुल्फें और नीली आँखें। गौर वर्ण और गोल चेहरा और उसपर सुर्ख गुलाबी ओंठ। जंगल के बीच उस फर्महाउस में इस समय वह अकेला ही बरामदे में बैठा हुआ था। उस नौजवान की सुन्दरता ऐसी थी कि किसी का भी दिल अपनी ओर बरबस ही खींच ले। परन्तु उसके आँखों में थकावट की रेखा थी।......उसके चेहरे से बेचैनी स्पष्ट झलक रही थी। बरामदे पर बेंत की कुर्सियां रखी हुई थी और उसके बीच टेबुल पर प्याले में मादक पेय रखा हुआ था।
हां, वह फेनी पीने का शौकीन था, इसलिये स्पेशल अपने ही लिए मंगवाता था। इस समय शाम के पांच बजने को थे और ढलते समय के साथ ही सूर्य देव थक कर अस्ताचल की ओर जा रहे थे।.......... लेकिन उनकी थकी हुई रोशनी में भी गजब की चमक थी, जिसमें फर्महाउस अपनी छटा बिखेर रहा था।.....दूर- दूर तक जंगल ही जंगल, जिसके मध्य में बना हुआ वह "चंद्रिका वन, नाम का फर्म हाउस। आर्टिटेक्ट की दृष्टि से काफी भव्य और बेहतर तरीके से बनाया गया था फर्म हाउस को।
चारों तरफ ऊँची-ऊँची बाऊँड्री बाँल से घिरा हुआ, जिसके मध्य में तीन मंजिल की इमारत थी। हां, उसे इमारत ही कहना उचित होगा.....क्योंकि वह काफी विशाल थी और काफी दूर में फैली हुई थी। आगे स्वीमिंग पुल और इसके बाद चारों तरफ विभिन्न प्रकार के पौधे और फूलों की क्यारी। वहां का वातावरण काफी खुशनुमा और सुगंधित था।.....ऐसा कि किसी के भी चेहरे पर प्रसन्नता ला दे। परन्तु न जाने क्यों वहां का खुशनुमा वातावरण भी उस नौजवान के चेहरे पर प्रसन्नता नहीं ला सकी थी। वह खुश नहीं था, शायद वहां वो अकेला भी था।
बीतते समय के साथ ही जब उससे नहीं रहा गया, उसने प्याले को उठाया और हलक में उड़ेल लिया। फिर भी उसके चेहरे पर शांति के भाव परिलक्षित नहीं हुए। ऐसे में वो अपनी जगह से उठा और अंदर जाकर लैपटाँप उठा लाया। साथ में फेनी की बोतल भी, जिसे उसने बैठने के साथ ही प्याले में भरने लगा। उसके बाद तो दे दनादन, उसने चार प्याले हलक में उतार लिए। अब उसकी आँखों में तृप्ति के भाव दृष्टिगोचर होने लगे थे। नशा की हल्की सुर्ख लाली अब उसके आँखों में उतर आई थी और तब वह लैपटाँप खोलकर उसके की-बोर्ड से खेलने लगा।
उसे लिखना था, अपने जीवन के बीते हुए उन लमहों को.....जो बेतरतीब से उलझे हुए थे। मानव मन चेतना की पराकाष्ठा को पाना चाहता है। मानव ही तो है......जीवंत होकर जीना चाहता है। परन्तु समय बहुत ही बलवान है, वह मानव को मन की चलने ही नहीं देता। जब समय अपनी चाल चलता है, मानव के हौसले पस्त हो जाते है। समय जब अपनी चाल चलता है, मानव को अपने अक्ष पर चक्करघिन्नी बनाकर ही छोड़ता है। उसकी भावनाओं को पंगु कर देता है, इतना पंगु कि उसकी सहनशक्ति जबाव देने लगती है।......शायद वह भी तो समय के इसी चपेट में फंसा हुआ था। तभी तो वो अपने बीते हुए लमहों को डायरी के पन्नों में कैद कर लेना चाहता था।
उसके मन की कड़वी बातें, उसका खुद का किया हुआ अनुभव किसी के काम आ सके।...उसके साथ जो घटित हुआ, किसी और के साथ घटित नहीं हो। बस इसलिये वह लैपटाँप के की-बोर्ड पर अपने अंगुलियों को तेजी से चलाने लगा।.....इस दरमियान उसके चेहरे पर भावों की आवृति सी होती रही।...सूर्यदेव चलते-चलते थक से गए और अपने अस्ताचल को चले गए। सूनसान इलाका होने के कारण वह पूरा इलाका अंधेरे के आगोश में धीरे-धीरे समाने लगा।.....लेकिन अभी पूरा अंधेरा ढला भी नहीं था कि पूरा फार्म हाउस रोशनी से नहा गया और चंद्रमा की तरह प्रतीत होने लगा। जिस प्रकार से अंधेरी रात में आकाश में चंद्रमा दैदीप्यमान होता है और अपने शीतल प्रकाश से जगत को आच्छादित कर देता है। ठीक उसी प्रकार से जंगल के बीच वह फर्महाउस प्रतीत हो रहा था, चमकता हुआ।
अचानक ही वह युवक उठा, उसने लैपटाँप टेबुल पर रख दिए और स्वीमिंग पुल की ओर बढा। लेकिन उसकी चाल बता रही थी कि जैसे उसे किसी प्रकार की जल्दी नहीं है। वह धीमी कदमों से चलता हुआ स्वीमिंग पुल के करीब पहुंचा और फिर छपाक! उसने स्वीमिंग पुल में गोते लगा दिए। इसके बाद वह बेवजह ही पानी में इधर-उधर तैरने लगा। समय आहिस्ता-आहिस्ता आगे की ओर बढती जा रही थी। परन्तु उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि उसे किसी प्रकार की जल्दी हो। वह तो इस शीतल जल में अपने मन को शीतल कर लेना चाहता था। वह, जो विचारो की अग्नि में जल रहा था, उस जलन से उसे निजात चाहिए थी।.....परन्तु क्या यह संभव है?....कभी भी नहीं। क्योंकि मानव मन की गति ऐसी है कि उसे रोकने में तो सिद्ध ऋषि-मुनि भी असमर्थ थे, तो मानव की क्या बिसात।
खैर! करीब आठ बजे वो स्वीमिंग पुल से निकला और बिल्डिंग की ओर बढा। लेकिन वह बाहर नहीं रुका, सीधे लीविंग रूम में पहुंच गया। उसका भीगा हुआ वदन, जिसपर से पानी की बूंदें टपक रही थी। इस समय वह और भी सुंदर प्रतीत हो रहा था। जैसे कमल के फूल पर ओर की बूंदें पड़ने के साथ ही खिल जाती है, उसी प्रकार उसका अंग-अंग खिल उठा था। उसने लीविंग रूम में कदम रखा और अपने कपड़े बदलने लगा। अंदर की सजावट बहुत ही बेहतरीन तरीके से की गई थी। अंदर का डेकोरेशन बेहतरीन तरीके से किया गया था। हाँल में लगा हुआ सोफा, जिसके मध्य में लगी हुई सेंटर टेबुल, तो कोने में रखा हुआ रेफ्रीजरेटर।
अभी वो कपड़ा बदल ही रहा था कि तभी सेंटर पर रखे हुए उसके मोबाइल ने अचानक ही वीप दी। इसके साथ ही पूरे बंगले की रोशनी अचानक ही बंद हो गई। एकाएक धूप्प अंधेरा छा गया और फिर तो रंग- विरंगी रोशनी जलने-बुझने लगी। इसके साथ ही तरंग में डूबा हुआ स्वर गुंजने लगा।.....रति संवाद.....रति संवाद.. रति संवाद! इसके साथ ही गुंजता हुआ स्वर अधिक तीव्र- अधिक तीव्र होने लगा। साथ ही रंग-विरंगी रोशनी तेजी के साथ जलने-बुझने लगी। वहां ऐसा प्रतीत होने लगा कि रहस्यमय तरंगें प्रवाहित हो रही हो। भय का अजीब सा लहर हाँल में प्रवाहित होने लगा।
भय का तीव्र लहर उस युवक के चेहरे पर भी प्रवाहित होने लगी। लेकिन वह डरते-डरते ही आगे बढा, मोबाइल उठा कर काँल रीसिव किया और इसके साथ ही हाँल में गुंजता स्वर शांत हो गया। रोशनी का झपकना रुका और वहां स्थिर शांत दुधिया रोशनी फैल गई। वहां की स्थिति नार्मल होते ही युवक के चेहरे पर भी राहत के भाव दृष्टि गोचर होने लगे। इसके बाद वो फोन पर बात करने लगा और उधर से कही बातों पर आश्चर्य चकित होता रहा। उसके चेहरे पर के हाव-भाव पल-पल बदल रहे थे, साथ ही उसके आँखों की चमक बढती जा रही थी।
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क्रमशः-