एस. पी. साहब रात के इस समय लैपटाँप पर डटे हुए थे। उनकी आँखों में देखकर ऐसा लगता था कि निंद उनसे कोसो दूर है।....आखिर उन्हें निंद आता भी कैसे? जब उनके इलाके में लगातार दूसरे दिन ही नवजवान लड़की की निर्मम हत्या कर दी गई थी। मामला ही इतना गंभीर था कि वे आज पुलिस स्टेशन में ही रुक गए थे,....घर नहीं गए थे। इस केस को लेकर वे कितने गंभीर है, इस बात की पुष्टि उनके चेहरे पर छाई गंभीरता कर रही थी।
एस. पी. आँफिस, आधुनिक सुविधाओं से लैस, आँफिस में उनके कुर्सी के आगे टेबुल, उसके आगे लगा इंपोर्टेड सोफा चेयर। साथ ही कोने में रखा हुआ रेफ्रीजरेटर। आखिर वे पुलिस कप्तान थे और उनके आँफिस की व्यवस्था भी उसी प्रकार की होनी चाहिए थी। परन्तु उनका स्वभाव, अपने अधीनस्थ के लिए वे कठोर व्यवहार करते थे, परन्तु नगर वासियों के लिए उनके स्वभाव में मृदुलता कुछ अधिक ही थी। इस समय भी वे आँफिस में इसलिये ही रुके थे कि इस केस को जल्द से जल्द सुलझा कर जनता को राहत दे सकें।
जय हिंद सर! ......आँफिस का गेट खुला और आँफिस में कदम रखते ही सलिल एवं रोमील ने उन्हें सैल्यूट देते हुए बोला।
जय हिंद!.....आओ बैठो।....एस. पी. साहब अपना काम करते हुए ही बोले। सलिल एवं रोमील के आने से "मजाल कि उनके चेहरे पर कोई भाव आया हो"।
आँफिस में कदम रखने के बाद भी बाँस की किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं देखकर सलिल एवं रोमील की धिग्धी बंध गई।.....उन्हें ज्यादा तो कुछ भी समझ नहीं आया, बस इतनी ही बात दोनों समझ पाए कि आज उनकी जमकर क्लास लगने बाली है। इसलिये दोनों सावधानी पूर्वक आगे बढे और वहां रखे सोफे पर सावधानी पूर्वक बैठ गए। इस आँफिस में कदम रखते ही रोमील भी काफी हद तक संभल चुका था। कुछ पल पहले चलते-चलते भी निंद खींचने बाला रोमील अभी सावधान बैठा हुआ था, उसके चेहरे पर सतर्कता चश्पा हो गई थी। परन्तु मृदुल शाहा साहब को तो मानो इससे कोई मतलब ही नहीं था। वे तो बस अपने काम को निपटाने में लगे हुए थे और जब वे काम से निवृत हुए, उन दोनों को आए हुए करीब आधा घंटे हो चुका था।
हां तो सलिल, अब बताओ कि इस केस में कहां तक पहुंचे हो और आगे की क्या योजना है? एस. पी. साहब ने अपने काम से फ्री होते ही सबसे पहले यही प्रश्न किया और अपनी कुर्सी खींचकर उन लोगों के करीब ले आए और फिर उन्होंने अपनी नजर दोनों के चेहरे पर टिका दी। उन्हें इस प्रकार से अपनी ओर देखता पाकर एक बारगी तो दोनों का हिम्मत ही जबाव दे गया, फिर भी बातें तो करनी ही थी, इसलिये सलिल धीरे से बोला।
सर!.....इस केस में हम ज्यादा तो कुछ भी अभी तक नहीं जान पाए है।....परन्तु मौका- ए- वारदात की वीडियो क्लीप हमारे हाथ लगी है। बोलकर सलिल मौन हो गया, तब एस. पी. साहब बोले।
तुम भी न सलिल,....ऐसे आधी-अधूरी जानकारी दोगे, तो क्या समझ पाऊँगा। मुझे तो, इस केस में कितना प्रोग्रेस किए हो, उसके बारे में बतलाओ? एस. पी. साहब ने प्रश्न किया और फिर नजर टिका दी, सलिल के चेहरे पर। परन्तु सलिल उनके प्रश्न पुछने का तरीका ही ऐसा था कि एक पल के लिए सलिल जबाव देने का हिम्मत नहीं कर सका। फिर बहुत हिम्मत जुटाकर इस घटना के बारे में क्रम-बार बतलाने लगा।
एस. पी. साहब उसकी बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहे थे। जबकि सलिल उन्हें बतलाने लगा कि किस प्रकार से नंदा एवं नंदिनी की हत्या की गई और फिर सी. सी. टीवी से वीडियो क्लीप हासिल हुआ। फिर वो बतलाने लगा कि किस प्रकार से इस केस में अब तक खोजबीन की है और वीडियो मिलने के बाद उसकी आगे की तैयारी क्या है? एस. पी. साहब ध्यान पूर्वक उसकी बातों को सुन रहे थे और जब सलिल चुप हुआ, उन्होंने वीडियो क्लीप चलाकर दिखाने को कहा।...फिर तो सलिल ने अपने मोबाइल को लैपटाँप से जोड़ दिया और वीडियो प्ले कर दिया।....एस. पी. साहब ने दोनों वीडियो क्लीप को ध्यान पूर्वक देखा और फिर मौन होकर सलिल के चेहरे को देखने लगे।
उन्हें इस प्रकार से देखता पाकर सलिल घबरा सा गया। उन्हें अपनी ओर इस प्रकार देखता पाकर सलिल समझ नहीं पा रहा था कि बाँस की मंशा क्या है? जबकि एस. पी. साहब करीब पांच मिनट तक मौन रहने के बाद सलिल को समझाने लगे कि तुम एक काम करो कि इस घटना को प्रेत से जोड़ दो और किसी तांत्रिक के पास इस घटना के संदर्भ में मिलो।.....हलांकि सलिल ने हल्के स्वर में इस बात का विरोध करने की कोशिश की,....परन्तु एस. पी. साहब उसको समझाने लगे। वे गंभीर होकर बतलाने लगे कि" इस घटना क्रम ने तहलका मचा दिया है"। इसपर मीडिया बाले टी. आर. पी के लिए इस केस को भुनाने की कोशिश कर रहे है। ऐसे में मुझे भी "डिबेट" के लिए बुलाया गया है।
इसके बाद एस. पी. साहब उसे अपनी योजना के बारे में समझाने लगे।....बाँस का आदेश सिर्फ पालन करने के लिए होता है, इसमें विरोध शब्द की कोई गुंजाइश नहीं होती। इसलिये सलिल सहमति में सिर को हिलाता रहा और फिर एस. पी. साहब ने जब अपनी बातें खतम की, सलिल ने उनसे अनुमति ली और उठकर आँफिस से बाहर निकला। जब वो आँफिस से बाहर निकला, रात के दो बज चुके थे। ऐसे में दोनों आँफिस बिल्डिंग से निकल कर स्काँरपियों के पास पहुंचे और गाड़ी में बैठने के साथ ही श्टार्ट की और आगे की ओर बढा दिया।
स्काँरपियों ने सड़क पर आते ही रफ्तार पकड़ लिया था। जबकि रोमील, कार ड्राइव करते हुए भी सलिल के चेहरे को कनखियों से दख लेता था। रोमील के हाव-भाव बतला रहे थे कि आँफिस से निकलने के बाद वह कुछ उलझा-उलझा सा है। बात ही कुछ ऐसी थी, उसे एस. पी. सर द्वारा कहा गया "आधा शब्द" ही समझ आया था। अतः वो चाहता था कि सलिल से इस संदर्भ में बात करें।.....परन्तु वह हिम्मत ही नहीं कर पा रहा था सलिल से बात करने की, क्योंकि वो देख रहा था कि " सलिल" गहरे विचार में डूबा हुआ है। उधर सलिल भी समझ रहा था कि रोमील उससे कुछ पुछना चाह रहा है। परन्तु इस समय उसकी बोलने की इच्छा बिल्कुल भी नहीं थी। वह तो वास्तव में ही उलझा हुआ था, "बाँस द्वारा मिले आदेश ने उसे उलझाकर रख दिया था।
एस. पी. साहब द्वारा मिले आदेश के बाद वो सोचने पर विवश हो गया था कि " आगे क्या? वह अच्छी तरह से जानता था कि "घटित हुआ अपराध" भले ही सबसे अलग दिख रहा हो। लेकिन भूत-प्रेत से इस घटना को जोड़ना विक्टीम के साथ न्याय नहीं होगा। भले ही वो इस मामले को "प्रेत बाधा" के रुप में प्रचारित करें, ....परन्तु जब तक इस केस को उकेरा नहीं गया। उसे सफलता नहीं मिल सकती। वो जानता था कि एस. पी. साहब के आदेश का पालन करके त्वरित राहत तो मिल सकती है। लेकिन यह राहत बिल्कुल भी टिकाऊ नहीं होगी और फिर से इस मामले को तूल पकड़ना है। उसने इस बात को समझाने की कोशिश की थी,....परन्तु बाँस तो बाँस होता है। उन्होंने आदेश सुना दिया, उसके बाद कोई शक की या आर्गूमेंट की गुंजाइश नहीं रहती। ऐसे में उसके पास "आदेश पालन" करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था।
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क्रमशः-