*सनातन धर्म में मानव कल्याण के लिए अनेकों व्रत विधान की एक लंबी श्रृंखला है जो कि जो मानव जीवन के कष्टों को हरण करते हुए मनुष्य को मोक्ष दिलाने का साधन भी है | इसी क्रम में भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को "अनंत चतुर्दशी" का व्रत किया जाता है | भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है यह व्रत | अनन्त अर्थात जिसका कभी अंत ना हो | जब समस्त सृष्टि महाप्रलय के जल में लय हो जाती तब क्षीरसागर में अपनी शेष शैया पर भगवान श्री हरि विष्णु ही शेष रहते हैं | उनका कभी अंत नहीं होता है इसीलिए उनका एक नाम अनंत भी | अनंत चतुर्दशी के दिन मनुष्य को इस संसार की आधि - व्याधियों से मुक्ति प्राप्त करते हुए मोक्ष प्राप्त करने का एक प्रबल साधन है | किसी सरोवर के किनारे स्नान करके भगवान श्री हरि विष्णु की कुश से बनी प्रतिमा का पूजन करना चाहिए | अग्नि पुराण के अनुसार इस व्रत में कपास या रेशम के धागे से बना हुआ चौदह गाँठों का सूत्र हाथ में बांधा जाता है | इस सूत्र में चौदह गांठें ही क्यों होती हैं ?? इस विषय पर प्रकाश डालते हुए हमारे ऋषि वैज्ञानिकों ने अपना विशिष्ट मत प्रस्तुत किया है कि यह चौदह गाँठे चौदह लोकों का पर्याय होती , जो मनुष्य को इन चौदह लोकों से मुक्ति प्रदान करके भगवान श्री हरि के चरण शरण में स्थान दिलाती हैं | पूर्ण भक्ति श्रद्धा के साथ किया जाने वाला यह व्रत मनुष्य को अवश्य मृत्योपरांत मोक्ष दिलाने में सक्षम है | परंतु यह व्रती के श्रद्धा एवं विश्वास के ऊपर निर्भर होता है कि वह यह व्रत किस कामना से कर रहा है | कोई भी व्रत एवं उपवास करने का अर्थ हुआ कि मनुष्य एक दिन के लिए ही सही कम से कम सांसारिकत से ऊपर उठकर के भगवान की शरण गहे | तभी उसका कल्याण हो सकता है और ऐसा करके हमारे पूर्वजों ने सद्गति भी प्राप्त की है |*
*आज की अंधानुकरण के युग में मनुष्य अनेकों प्रकार के व्रत-त्योहार एक दूसरों को दिखाने के लिए अधिक करता है , उनमें श्रद्धा और विश्वास की कमी स्पष्ट झलकती है | अनेकों लोग ऐसे हैं जो कि आधुनिकता में आकर के व्रत तो करते हैं परंतु उनको किए जा रहे व्रत के विषय में और उसके महत्व के विषय में भी पता नहीं होता है | आश्चर्य तो तब होता है जब व्रत करने वाले लोग सम्बन्धित व्रत के रहस्य एवं महत्व को जानने का भी प्रयास नहीं करते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि जिस प्रकार किसी भी औषधि का सेवन करने के पहले उसके विषय में जानना परम आवश्यक होता है अन्यथा वह मनुष्य को अहितकारी सिद्ध होती है , उसी प्रकार कोई भी व्रत कोई भी उपवास करने के पहले उसके विषय में यदि नहीं जाना जाता है तो वह व्रत या उपवास मनुष्य के लिए हितकर नहीं हो सकता है | अधूरा ज्ञान सदैव विपत्ति का कारण बनता है | मेरे कहने का अर्थ यह नहीं है की जो आज व्रत कर रहे है उनको व्रत नहीं करना चाहिए परंतु इतना कहना चाहता हूं कि कोई भी व्रत करने के पहले उसके विषय में अपने पूर्वजों से या विद्वानों से अवश्य ज्ञानार्जन कर लेना चाहिए जिससे कि व्रत का फल भी मनुष्य को प्राप्त हो | मात्र काया जलाने से किसी भी व्रत का फल नहीं प्राप्त हो सकता है | व्रत करने का अर्थ होगा इंद्रिय संयम जो कि आज बहुत कम लोगों में दिखाई पड़ता है | मनुष्य को कोई भी व्रत करने के पहले इन तथ्यों पर विचार अवश्य करना चाहिए | जब तक हम किसी भी विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं रखते तब तक सफलता संदिग्ध ही रहती है |*
*भगवान अनन्त को काल कहा गया है | बारंबार काल के गाल में जाने से मुक्ति प्राप्त करने हेतु भगवान अनंत का पूजन करके अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से मनुष्य आवागमन से मुक्ति पा जाता है |*