*हमारे सनातन ग्रंथों में एक कथानक पढ़ने को मिलता है जो समुद्र मंथन के नाम से जाना जाता है | देवताओं एवं दैत्यों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मन्दाराचल को मथानी एवं वासुकि नाग को रस्सी बनाकर समुद्र का मन्थन किया | अथक परिश्रम से मन्थन करने के बाद समुद्र से अमृत निकला परंतु अमृत निकलने के पहले समुद्र से तेरह रत्न और भी निकले | जिसमें विष , कामधेनु गाय , उच्चैश्रवा घोड़ा , ऐरावत हाथी , कौस्तुभ मणि , कल्पवृक्ष , रम्भा अप्सरा , लक्ष्मी जी , वारुणी , चन्द्रमा , धनु, एवं धन्वन्तरि जी हैं | प्राय: लोगों को सुनकर आश्चर्य होता है कि क्या समुद्र मंथन करके रत्न प्राप्त किए जा सकते हैं ? इस समुद्र मंथन का रहस्य क्या है ?? आदि आदि प्रश्न मानव मस्तिष्क में उठते रहते हैं | इस रहस्य को समझने के लिए हमें अध्यात्म क्षेत्र में उतरना पड़ेगा जहाँ हमारे महापुरुषों का कहना है संसार रूपी समुद्र में मानव का मन ही मंदराचल पर्वत है | जिस प्रकार मंदराचल पर्वत समुद्र में नहीं टिका तो भगवान को कच्छप अवतार धारण करके उसको रोकना पड़ा उसी प्रकार यह मन संसार रूपी समुद्र में डूबता चला जाता है | भगवान का आश्रय ही इसे स्थिर कर सकता है | श्वांस - प्रश्वांस का यजन ही वासुकि नाग है , इसी से मंथन करके आज भी मानव हृदय में अमृत प्राप्त किया जा सकता है | समुद्र मंथन का अद्भुत रहस्य है इसे समझ पाना साधारण मनुष्यों के बस की बात नहीं है , इसे समझने के लिए मनुष्य को सकारात्मक भाव के साथ सद्गुरुओं की संगति करते हुए सत्संग का लाभ लेना होगा | जब मनुष्य सकारात्मक भाव के साथ सद्गुरु की शरण ग्रहण कर ज्ञानार्जन करे तभी वह समुद्र मंथन के रहस्य को समझ सकता है , अन्यथा मानव मात्र को यह कथानक एक कहानी से अधिक कुछ और नहीं लग सकता | इस रहस्य रूपी मोती को प्राप्त करने के लिए सत्संगरुपी अथाह सागर में उतरना ही पड़ेगा |*
*आज के समाज में हमारे पौराणिक रहस्यों को पढ़कर या सुनकर लोगों को आश्चर्य होता है कि पुराणों में वर्णित घटनायें सत्य हैं या काल्पनिक ? क्या मन्थन करके रत्न प्राप्त किये जा सकते हैं ? क्या अमृत आज भी मिल सकता है ? यह रहस्य समझने के लिए मनुष्य को चिंतन करना पड़ेगा | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि मनुष्य जब अमृत रूपी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए अपने मन रूपी मंदराचल को मथेगा तो सबसे पहले मनुष्य के हृदय में स्थित बुरे विचार ही बाहर निकलेंगे | यही बुरे विचार कालकूट विष हैं | जब विषरूपी बुरे विचार हृदय से निकल गये तो मन निर्मल होगा , मन की निर्मलता ही "कामधेनु" का प्रतीक है | जब मनुष्य का मन निर्मल हो जाता है तो अमृतरूपी परमात्मा का सामीप्य निकट हो जाता है | समुद्र मव्थन से निकला "उच्चैश्रवा घोड़ा" मन की गति का प्रतीक है | अर्थात मन निर्मल हो जाने के बाद मन की गति पर विराम लगाना सम्भव हो जाता है | "ऐरावत हाथी" बुद्धि का प्रतीक है उसके चार दाँत लोभ , मोह , वासना एवं क्रोध का प्रतीक हैं | बुद्धि के द्वारा ही इनका शमन किया जा सकता है | जब इन विकारों का शमन हो जायेगा तो हृदय में भक्ति रूपी "कौस्तुभ मणि" प्रकट होगी | भक्ति का प्राकट्य हो जाने के बाद मनुष्य की सांसारिक इच्छायें समाप्त प्राय हो जाती हैं यही "कल्पवृक्ष" का उदय है | जब भक्ति की ओर मनुष्य अग्रसर होता है तो हृदय "रम्भा" रूपी वासना मनुष्य को अपने भ्रमजाल में फंसाकर भ्रमित करने का प्रयास करती है | यदि मनुष्य ने इस पर नियंत्रण कर भी लिया तो प्राकट्य होता है "लक्ष्मी" जी का , जिसका अर्थ यह हुआ कि जब मनुष्य परमात्म पथ पर अग्रसर होता है तो उसे सांसारिक सुख एवं ऐश्वर्य अपनी ओर आकर्षित करके विचलित करने का प्रयास करते हैं | यदि मनुष्य ने इन आकर्षणों से स्वयं को बचा भी लिया तो मनुष्य के हृदय में "वारुणी देवी" का प्राकट्य हो जाता है | जिसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य को अपनी ही भक्ति का मद (नशा) हो जाता है और मनुष्य पथभ्रष्ट हो जाता है | परमात्मारूपी अमृत को पाने के लिए मद का त्याग भी करना पड़ेगा | जब मनुष्य के हृदय से बुरे विचार , लालच , वासना , नशा आदि समाप्त हो जायेेंगे तब वह हृदय शीतल हो जायेगा , जो कि "चन्द्रमा" का प्रतीक है | जब मनुष्य का हृदय चन्द्रमा की भाँति शीतल हो जाता है तो वह परमात्मा की निकटता प्राप्त करते हुए उनके "धनुष" की तरह उनके कंधे पर पहुँच जाता है | जिस प्रकार "शंख" देखने में तो खोखला लगता है परंतु बजाने पर उसमें से नाद निकलता है उसी प्रकार जब मनुष्य परमात्मा के अधिक समीप पहुँच जाता है तो तो मन का खालीपन ईश्वरीय नाद से भर जाता है , ऐसा अनुभव होने पर यह समझ लेना चाहिए कि परमात्मारूपी अमृत प्पाप्त होने वाला है | स्वस्थ तन एवं मन ही "धनवन्तरि" का प्रतीक है | निरोगी काया एवं निर्मल मन हो जाने पर ही चौदहवें नम्बर पर परमात्मा रूपी अमृत मिल सकता है |*
*इस प्रकार आज भी यदि मनुष्य अपने मन रूपी मन्दराचल का मन्थन करने का प्रयास कर ले तो उसके हृदय में परमात्मा रूपी अमृत अवश्य प्रकट हो सकता है |*