*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य संसार को अपना मानने लगता है | माता - पिता , भाई - बहन , घर एवं समाज के साथ पति - पत्नी एवं बच्चों को अपना मान कर उन्हीं के हितार्थ कार्य करते हुए मनुष्य का जीवन व्यतीत हो जाता है | परंतु यह विचार करना चाहिए कि मनुष्य का अपना क्या है ? जन्म माता पिता ने दिया ! शिक्षा गुरु ने दी ! घर पूर्वजों का मिला ! बच्चे पत्नी के सहयोग से मिले ! तो आखिर अपना क्या है ? यहां तक कि मनुष्य की मृत्यु के बाद वह स्वयं चिता तक भी नहीं जा सकता | जिस संसार में रहकर अपने परिवार के लिए मनुष्य अनेकों कृत्य कुकृत्य किया करता है अंत समय में वह सब यहीं छूट जाता है | खाली हाथ आया हुआ मनुष्य खाली हाथ ही इस धरा धाम को छोड़कर चला जाता है तो आखिर मनुष्य का अपना क्या है ? क्या इस विषय पर सद्गुरुओं से प्राप्त ज्ञान के आधार पर मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही बताना चाहूंगा कि इस संसार में मनुष्य का ज्ञान ही उसका अपना है | यहां कुछ लोग कर्म को भी अपना कह सकते हैं परंतु मनुष्य कर्म भी अपने ज्ञान के अनुसार ही करता है | मनुष्य का जिस प्रकार का ज्ञान होगा उसी प्रकार सकारात्मक एवं नकारात्मक उसके कर्म भी होते हैं | ज्ञान मनुष्य को मां के गर्भ में ही प्राप्त हो जाता है तभी तो वह ईश्वर से गर्भ के कष्टों से छुटकारा दिलाने के लिए प्रार्थना किया करता है | और तो और कुछ जीवात्मायें ऐसी होती है जिनका सब कुछ इस धरा धाम पर छूट जाने के बाद ही उनका ज्ञान नहीं छूटता है और अन्यत्र जन्म लेने के बाद पूर्व जन्म का ज्ञान बना रहता है | इन तथ्यों पर ध्यान रखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस संसार में मनुष्य का अपना अगर कुछ है तो वह है उसका ज्ञान , इसके अतिरिक्त इस संसार में मनुष्य का कुछ भी नहीं है | इसी ज्ञान के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन को सफलता के उच्च शिखर पर ले जाता है तथा यदि मनुष्य का ज्ञान नकारात्मक हो जाता है तो वह मनुष्य को पतित कर देता है | स्वर्ग या नर्क की प्राप्ति मनुष्य को उसके ज्ञान के अनुसार की होती है यदि ज्ञान नहीं है तो मनुष्य जड़ की भांति ही हो जाता है , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने हृदय में व्याप्त ज्ञान का प्रसार करते रहना चाहिए क्योंकि ज्ञान ही है जिसे अपना कहा जा सकता है | इसी ज्ञान के माध्यम से मनुष्य परमात्मा को भी प्राप्त कर लेता है |*
*आज संसार में मनुष्य मोह - माया में इतना लिप्त हो गया है कि वह शायद स्वयं को एवं स्वयं के जन्म लेने के उद्देश्य को भी भूल गया है | माता - पिता , भाई - बंधु , पत्नी एवं संतान से बाहर निकल कर समाज एवं संसार को अपना मान कर मनुष्य इस भ्रम में रह रहा है कि मैं जिसे अपना मान रहा हूं वह हमारे हैं | परंतु विचार कीजिए जब मनुष्य का अंत समय आता है तो कौन ऐसा प्रिय है जो उसके साथ चला जाता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहूंगा कि इस संसार में कोई किसी का नहीं है | मिथ्या मोह - माया के चक्कर में पड़कर मनुष्य अपनों के लिए दूसरों से ईर्ष्या देश भी रखने लगता है जो कि कदापि उचित नहीं है | आज मैं और मेरा , अपना और पराया का भ्रम मनुष्य को वास्तविक ज्ञान पर बहुत दूर लेकर चला जा रहा है | इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि मनुष्य अपने परिवार को या अपने समाज को अपना ना माने परंतु मनुष्य को मन से विरक्त एवं शरीर से रागी होना चाहिए | कहने का तात्पर्य है कि इस संसार में आकर संसार के अनुसार व्यवहार तो करना ही पड़ेगा और करना भी चाहिए परंतु यह सदैव मानकर चलना चाहिए जिसे हम अपना मान रहे वह हमारे अपने नहीं हैं | यदि अपना कुछ है तो वह है अपना ज्ञान एवं उस ज्ञान के माध्यम से किया गया कर्म , जिसका फल प्रत्येक मनुष्य को भोगना ही पड़ता है | इसलिए अपने ज्ञान को परमात्मा से जोड़ने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए | जिस दिन मनुष्य का ज्ञान आत्मा एवं परमात्मा के बंधन से परे हो जाता है उसी दिन मनुष्य का मुक्त हो जाता है | इसलिए इस संसार में सभी को अपना मानते हुए भी किसी के प्रति अतिशय आसक्ति का भाव नहीं रखना चाहिए | आसक्ति का भाव याद रखना है तो उसके प्रति रखा जाए जो कि मनुष्य का अपना है और वह है ज्ञान |*
*ज्ञान के बिना मनुष्य इस संसार में कुछ भी नहीं कर सकता है | इस संसार में जन्म लेने से पहले मनुष्य के हृदय में ज्ञान प्रकट हो जाता है और इस संसार का त्याग करने के बाद भी वह ज्ञान अक्षुण्ण बना रहता है इसलिए यह तथ्य स्थापित हो जाता है कि संसार में मनुष्य का यदि अपना कोई है तो वह ज्ञान है |*