*मानव जीवन में मनुष्य के बचपन का पूरा प्रभाव दिखता है | सम्पूर्ण जीवन की जड़ बचपन को कहा जा सकता है | जिस प्रकार एक बहुमंजिला भवन को सुदृढ बनाने के लिए उस भवन की बुनियाद ( नींव) का मजबूत होना आवश्यक हे उसी प्रकार मनुष्य को जीवन में बहुमुखी , प्रतिभासम्पन्न बनने के पीछे बचपन की स्थितियां - परिस्थितियाँ एवं कुशल पोषण की आवश्यकता होती है | जिस प्रकार कच्ची मिट्टी से कुम्हार जो चाहे आकार दे देता है , उसी प्रकार मनुष्य का बचपन भी कच्ची मिट्टी की तरह ही होता है | बचपन में मनुष्य का हृदय इतना सरल व कोमल होता है कि जो भी मन में बैठ गया वह जीवन भर नहीं भूलता है | इसीलिए पुरातनकाल में मातायें अपने बच्चों को ऐतिहासिक पुरुषों , बीर बालकों एवं अमर चरित्रों की कथायें / कहानियाँ सुनाई करती थीं | इन कहानियों को सुनाने का अर्थ मात्र
मनोरंजन न होकरके बच्चों में उन चरित्रों का आरोपण करना ही मुख्य उद्देश्य होता था | प्रत्येक अभिभावक को यह ध्यान देना चाहिए कि अपने बच्चों के समक्ष कभी भी अभद्र
भाषा या अभद्र व्यवहार नहीं करना चाहिए ! कभी बच्चों के समक्ष झूठ नहीं बोलना चाहिए ! यदि कुछ कह भी दिया है तो उसे पूरा करने का प्रयास करना चाहिए ! यदि किसी कारणवश आप किये गये वायदे को नहीं पूरा कर पा रहे हैं तो सम्भव हो तो उसे समझाने का प्रयास करें या फिर दूसरे दिन उससे किये गये वायदे को पूरा करने का प्रयास करें ! क्योंकि यदि बच्चे के समक्ष अभद्रता की जाती है या झूठ बोला जाता है तो इसका गहरा प्रभाव उस बाल सुलभ मन पर पड़ता है | क्योंकि बच्चे कुछ भी सिखाने की अपेक्षा देखकर अधिक सीखते हैं | अत: बच्चों के सामने उत्तम चरित्र ही प्रस्तुत करना ठीक रहता है | यदि उनके समक्ष आप अनुचित व्यवहार करते हैं तो बच्चा समझेगा यह हमारे कुल की रीति है और फिर बच्चा उसी सोॉच के अनुसार स्वयं को ढालने लगेगा |* *आज
समाज में जिस प्रकार अनाचार , चोरी , झूठ , फरेब एवं घूसखोरी बढ रही है उसका कारण कहीं न कहीं से बचपन में मिले संस्कारों का विशेष योगदान माना जा सकता है | आज किसी भी कार्यालय में चले जाईये यदि आपको अपना काक्य सम्पन्न कपाना है तो फिर आपको "सुविधा शुल्क" देना ही पड़ेगा | यह सुविधा शुल्क लेने की आदत कब और कैसे पड़ जाती है यह विचारणीय विन्दु है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज सुविधा शुल्क लेना और बिना ले लिए कोई कार्य न करना बच्चे बचपन से ही सीख रहे हैं | याद कीजिए ! जब आप अपने बच्चे को दुकान पर किसी सामग्री हेतु धन देकर भेजने लगते हैं तो कह देते हैं कि बेटा ! एक रूपया आप ले लीजिएगा ! बच्चा खुशी से झूमता हुआ दुकान पर चला जाता है क्योंकि उसको सुविधा शुल्क मिल गया है | यही छोटी - छोटी सुविधायें आगे चलकर बच्चे का चरित्र निर्माण करती हैं | जब बच्चा किसी विभाग में किसा उच्च पद पर पदासीन होता है तो किसी भी कार्य को सुविधा शुल्क लिये बिना न करना उसकी आदत में हो जाता है | इसके लिए दोषी हम और आप स्वयं हैं क्योंकि इस आदत का बीजारोपण उसके बचपन में हमारे आपके द्वारा ही किया गया है |* *बचपन मानव की निर्माणशाला होने के साथ ही बहुत ही संवेदनशील समय होता है | यहीं से एक नव यात्री अपनी जीवनयात्रा प्रारम्भ करता है , अत: प्रत्येक अभिभावक को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए |*