*सनातन
धर्म एवं उसकी मान्यतायें इतनी वृहद एवं विस्तृत हैं कि इनका जोड़ सम्पूर्ण विश्व में कहीं नहीं मिलेगा | सम्पूर्ण विश्व ने कभी न कभी , किसी न किसी रूप में हमारे
देश की संस्कृति से कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य ग्रहण की है | बस अंतर यह है कि उन्होंने उन मान्यताओं को स्वीकार करके प्रगति की तो हम अपनी ही मान्यताओं को भूलते जा रहे हैं | हमारा देश
भारत यदि यह कहा जाय कि एक चमत्कारिक देश है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कही जा सकती | यहाँ जो कार्य वैज्ञानिक एवं चिकित्सक नहीं कर पाते उनका समाधान आपको सनातन की मान्यताओं में अवश्य मिल जायेंगे | अनेक
रहस्य , अनेक बीमारियां , जिनका चिकित्सा जगत में कोई ईलाज नहीं है उसका ईलाज सनातन पद्धति में अवश्य मिल जायेगा , और लाखों लोग इसका लाभ उठा रहे हैं | इसी प्रकार एक अनूठा रहस्य अपने आप में छुपाये हुए है बनारस का "लोलार्क कुण्ड" | यह संसार का ऐसा इकलौता कुण्ड है जिसने अनेकों घरों को कुलदीपक प्रदान किया है | यहाँ की मान्यताओं के अनुसार आज अर्थात भाद्रपद शुक्लपक्ष की षष्ठी (लोलार्क षष्ठी) को यहाँ नि:संतान दम्पति आकर स्नान करके पुत्रवान होते रहे हैं | लोलार्क षष्ठी के दिन यहाँ स्नान करके वस्त्र उसी कुण्ड में छोड़ देने की मान्यता के साथ ही कोई एक सब्जी भी चढाई जाती है जिसका त्याग व्रती तब तक किये रहता है जब तक उसकी कामना (पुत्रप्राप्ति) पूरी नहीं हो जाती | लोलार्क षष्ठी का व्रत करके उस कुण्ड में नियमपूर्वक स्नान करने वाले दम्पति आज तक निराश नहीं हुए हैं |* *आज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है | आज
विज्ञान ने अनेकानेक रहस्यमयी अनुसंधान भी कर लिए हैं , परंतु कहीं कहीं विज्ञान एवं वैज्ञानिक असहाय हो जाता है | सनातन वैदिक युग के अनेक रहस्य आज तक रहस्य ही बने हुए हैं , जिसका कोई जबाब आज तक विज्ञान भी नहीं दे पाया है | सनातन धर्म स्वयं वैज्ञानिकता से ओत प्रोत एवं परिपूर्ण है | जो अनुसंधान वैज्ञानिक इतने संसाधनों को लेकर अब कर रहे हैं वही अनुसंधान हमारे ऋषियों - महर्षियों ने बिना किसी संसाधन के कर लिये थे , जिनको मानने के लिए आज विज्ञान भी विवश है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कहना चाहूँगा कि हमारी सनातन मान्यतायें फलित होती हैं श्रद्धा एवं विश्वास पर | आज विज्ञान एवं चिकित्सा जगत जिन माताओं को पुत्र का सुख नहीं दे पा रहा है उसे लोलार्क कुण्ड में स्नान करने मात्र से मातृत्व सुख प्राप्त हो रहा है | कमी हमारी है कि हम अपनी मान्यताओं को भूलकर दूसरों की ओर आशाभरी दृष्टि से देख रहे हैं | इस सकल सृष्टि में ऐसा कोई रोग नहीं है जिसकी चिकित्सा सनातनी ग्रंथों न प्राप्त हो | विचार कीजिए कि क्या जब विज्ञान ने प्रगति नहीं की थी तब चिकित्सा का स्रोत क्या था ? उत्तर यही मिलेगा कि हमारे वेदों से ही उद्धृत आयुर्वेद |* *हम स्वयं को , स्वयं की पहचान को भूल गये हैं | आधुनिकता के चकाचौंध में पुरातन संस्कृति को भूल गये है | इस आधुनिक युग में लोलार्क जैसे कई कुण्ड अपना कार्य कर रहे हैं |*