प्रातःकाल सूर्य की सुहावनी सुनहरी धूप में कलावती दोनों बेटों को जाँघों पर बैठा दूध और रोटी खिलाती। केदार बड़ा था, माधव छोटा। दोनों मुँह में कौर लिये, कई पग उछल-कूद कर फिर जाँघों पर आ बैठते और अपनी तोत
Alok a Religion Flag of India yeh story alok naam ke ak sautele bete par Aadharit hai. Jo bachpan se apne pita aur Sauteli maa ke Durvyavahar aur Atyachar se pidit rehta hai. Alok ki ak Bhumi Naam ki
मेरी बाल-स्मृतियों में 'कजाकी' एक न मिटने वाला व्यक्ति है। आज चालीस साल गुजर गये; कजाकी की मूर्ति अभी तक आँखों के सामने नाच रही है। मैं उन दिनों अपने पिता के साथ आजमगढ़ की एक तहसील में था। कजाकी जाति क
बुलंद हौसलें कहाँ ठहरते है , सिर्फ इतना सा पाकर,ये तो शुरुआत है,भरना अभी लम्बी उड़ान बाकी है,छोटा सा जहाँ ही आया है "गगन"हिस्से में अभी तक,ठहरना नहीं है, पाना अभी सारा आसमान बाकी है।गगन शर्मा...✍️हिंदी
तेरा साया बनूं मेरी मां,बचपन में थामी उंगली मेरी,गिरता मैं था और तू रोती बड़ी,मुझे यूं उठाकर सीने से लगाकर,मेरा लाल है तू, पुचकारियों में तू मुझे बताती थी,ऐसी थी तू मेरी मां.......तेरे बिन मैं अधूरा ह
अगले दिन तड़के ही चींकी के पिता पास की बस्ती में चले गए.... इस उम्मीद में की शायद वहाँ से कुछ खाने का इंतजाम हो जाए..। दोपहर होने को आई थी पर उनकी कोई खबर नही थी... यहाँ घर पर चिंकी और किष्ना की
आसमान में काले घने बादल मँडरा रहे है, इतनी तपिश के बाद आख़िरकार बारिश ने दस्तक दी है। ऐसा लग रहा है आज मौसम की पहली बारिश होने वाली है, हाँ-हाँ ठीक सुना आपने मौसम की पहली बारिश। चारों तरफ़ आक्रोश भरी
चिंकी और किष्ना अपनी दैनिक आजीविका अर्जित कर अपने निमित्त समय पर घर की ओर चल दिए..। घर जाकर उन्होंने वो चटनी अपनी माँ को दी ये कहकर की किसी मुसाफिर ने पैसों के ऐवज में दी हैं..। रात का खाना
ले कटोरा हाथ में चल दिया हूं फूटपाथ पे
अपनी रोजी रोटी की तलाश में
मैं भी पढना लिखना चाहता
एक बार एक नाई जंगल से होकर गुजर रहा था। जंगल में जंगली जानवरों का बड़ा भय था। उसे बहुत डर लग र
दीनदयाल जी रोज़ सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर अपने बगीचे में बैठकर चाय की चुस्की लेते हुए नियमि
एक बार एक गधा जंगल में हरी-हरी घास खाने में मग्न था। उधर एक शेर शिकार के इरादे से धीरे-धीरे उस