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🌱 वसंत ऋतु की पहली कोपल 🌱
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नैसर्गिक बीज एक नील गगन से-
पहला जब वसुन्धरा पर आ टपका।
मिट्टी की नमी से सिंचित हो वह-
ध्रुतगति से पनप खिल कर महका।।
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सूर्य उर्जा से अवशोषित उष्णता
मिट्टी से अंत-शोषण- पोषण- संचय।
प्रथम अंकुरण पा कर बड़भागी
कोपल फुटी तो! पोसा संशय।।
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लगा खोजने पादप नियंत्रक को
पर वह नहीं कहीं और मिल पाया।
हर पल महसूस किया सन्निकट,
हरीनाम उचर- अराध्य उसे बनाया।।
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मानव नवान्न फल फूल तोड़ कर-
हरि प्रसाद समझ कर उसको खाया।
हरी को रूप दे पत्थर में बैठा कर-
जीवंत मूक मुद्रा में! उसको पाया।।
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जल-पुष्प-अक्षत-तांबूल से
नित दिन पूजन में उसे चड़ाया।
अंत काल में हरिनाम बिसार
हरियाली भरा वसंत फिर आया।।
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नैसर्गिक बीज एक नील गगन से-
पहला जब वसुन्धरा पर आ टपका।
मिट्टी की नमी से सिंचित हो वह-
ध्रुतगति से पनप खिल कर महका।।
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🙏डॉ. कवि कुमार निर्मल🙏
बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार