*इस विशाल एवं रहस्यमयी सृष्टि की संकल्र्पना नारी के बिना कदापि नहीं की जा सकती है ! सृष्टि का मूल यदि नारी को कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | हमारा देश भारत त्योहारों एवं पर्वों के लिए प्रसिद्ध है | यहां समय-समय पर अनेक पर्व - व्रत एवं त्यौहार बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है परंतु यदि ध्यान से देखा जाय तो पुरुष समाज के लिए , उनकी मंगल कामना के लिए अधिकतर व्रत नारियों के द्वारा ही रखे जाते हैं | त्याग एवं तपस्या की मूर्ति नारी अपने प्रत्येक व्रत में पुरुष समाज के लिए मंगल कामना ही करती है | व्रतों की इन कड़ियों में पुत्र के लिए एक व्रत है जिसे "हलछठ" कहा जाता है , जो कि भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्मोत्सव भी है बड़ी ही श्रद्धा के साथ अपने पुत्रों की मंगलकामना के लिए माताओं के द्वारा मनाया जाता है ! प्रत्येक पर्व / व्रत की एक विशेष विशेषता होती है उसी प्रकार भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी (छठ) को भी विशेष भाव से मनाकर छठी माता का पूजन करके मातायें अपने पुत्रों के लिए दीर्घायु की कामना करती हैं ! यह व्रत अद्भुत इसलिए भी है कि आज के दिन पवित्र माने गये गाय के दूध को भी वर्जित माना जाता है तथा भैंस के ही दूध - दही - घी का सेवन माताओं द्वारा किया जाता है ! इसके अतिरिक्त आज के दिन हल से जोती गयी भूमि का अन्न भी वर्जित है ! बलराम जी के जन्मोत्सव पर उनके मुख्य अस्त्र हल से जोतकर पैदा किया गया अन्न एवं कोई भी फल इस व्रत में वर्जित है ! महुआ एवं तिन्नी (झीलों में स्वयं पैदा होने वाला एक विशेष चावल) का ही सेवन करके पूरा दिन व्यतीत कर देती हैं ! मन में एक ही भावना होती है कि हमारी सन्तान स्वस्थ एवं दीर्घायु हो ! विचार कीजिए कि इन व्रतों में नारी अपने लिए कुछ नहीं माँगती इसीलिए नारी को त्याग एवं तपस्या की मूर्ति कहा जाता है |*
*आज भाद्रपद की कृष्णपक्ष की छठी को मातायें जब अपने पुत्रों के लिए नि:स्वार्थ भाव से कठिन व्रत कर रही हैं तो पुत्रों को भी अपनी माता के इस त्याग को याद रखना चाहिए ! आज की आधुनिकता के भंवर में फंसे नवयुवक विवाह होते ही जिस प्रकार अपने माँ बाप से अलग होकर उनसे वैमनस्यता कर रहे हैं क्या इन माताओं के त्याग का यही फल मिलना चाहिए ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" पुरुष प्रधान समाज से पूछना चाहता हूँ कि जो नारी ने समय समय पर पुरुषों के लिए कभी करवा , कभी तिलवा , कभी बहुला , कभी छठ तो कभी अत्यन्त दुष्कर हरतालिका तीज (निर्जल) का व्रत करती रहती है क्या वह पुरुषों के द्वारा समय समय पर तिरस्कार की ही अधिकारिणी है | क्या किसी पुरुष ने कभी किसी नारी के लिए कोई व्रत किया है ? पुरुष यदि नारीजाति के लिए कुछ करता भी है तो उसमें उसका स्वार्थ छुपा होता है परंतु पुरुषों के लिए किये गये कठिन से कठिन व्रत में नारी का कोई स्वार्थ नहीं होता ! इतना सब कुछ करने के बाद भी आज नारी पुरुषों के द्वारा स्थान स्थान पर छली जा रही है ! पुरुष् समाज में अपने हृदय में झाँककर देखना चाहिए और विचार करना चाहिए कि क्या नारी सिर्फ उनके तिरस्कार एवं अपमान की ही पात्र है ? यदि किसी भी नारी को पुरुष कुछ न दे पाये तो कम से कम उसको उचित सम्मान एवं स्थान अवश्य देना चाहिए क्योंकि नारी ही सृष्टि का मूल है ! जिस दिन नारी नहीं होगी उसी दिन पुरुष का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा |*
*पुरुष समाज के लिए अद्भुत , अनोखे एवं दुष्कर व्रतों का पालन करने वाली नारी अपमान की नहीं बल्रि सम्मान की पात्र है ! क्योंकि वह कभी भाई के रूप में , कभी पति के रूप में तो कभी पुत्र के रूप में पुरुष समाज के लिए ही सारे व्रत किया करती है !*