*सनातन
धर्म के अनुसार इस महान सृष्टि का संचालन करने के लिए भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियों के साथ ब्रह्मा , विष्णु , महेश एवं तैंतीस करोड़ देवी - देवताओं की मान्यताएं दी गई हैं | जहां ब्रह्मा जी को सृष्टि का सृजनकर्ता तो विष्णु जी को पालनकर्ता एवं भगवान शिव को संहारकर्ता कहा गया है | उत्पत्ति , पालन एवं संहार में यदि आंकलन किया जाय तो जन्म देने वाले से पालन करने वाले का महत्व अधिक होता है , इसीलिए सभी देवी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ भगवान श्री हरि विष्णु को माना जाता है | श्री हरि विष्णु का एक विशेष चरित्र यह देखने को मिलता है कि इस सृष्टि में जब जहां जैसी आवश्यकता प़ड़ी वहां उस प्रकार का स्वरूप धारण करके लोक कल्याण करने का प्रयास किया है , जिसे हमारे धर्म ग्रंथों में अवतार कहा गया है | पालक व संचालक का यह कर्तव्य होता है कि समाज या परिवार के पालन में यदि स्वयं को या स्वयं के स्वरूप को भी मिटाना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए | उसी प्रकार भगवान श्री विष्णु ने समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए अपने सुंदर स्वरूप का त्याग करके विभिन्न अवतार ग्रहण किये | इन्हीं अवतारों में दूसरा अवतार कूर्म अर्थात "कच्छप अवतार" कहा गया है | जब समुद्र मंथन के समय मथानी बना मंदराचल पर्वत समुद्र की गहराइयों में धंसता चला जा रहा था तब लोक कल्याण के लिए भगवान ने अपना सुंदर स्वरूप त्याग करके वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कच्छप अवतार धारण करके मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर रोका , एवं उनके उस उद्योग से देवताओं को अमृत एवं संसार को अनेक औषधियां प्राप्त हुई | अपने स्वरूप का ध्यान ना दे कर के लोक कल्याण के कार्य हेतु तत्पर रहने के कारण ही भगवान श्री हरि विष्णु देवताओं में श्रेष्ठ एवं सर्वपूज्य माने गए |* *आज वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को भगवान श्री विष्णु जी के कूर्म अवतार के पावन दिवस पर विचार करने का समय है कि समाज परिवार एवं
देश का पालक कैसा होना चाहिए | पालनकर्ता का महत्व जीवन में सर्वश्रेष्ठ होता है | भगवान श्री कृष्ण को जन्म तो देवकी ने दिया था परंतु पालन यशोदा मैया ने किया जिसका परिणाम यह हुआ कि आज भी भगवान कन्हैया को समस्त संसार यशोदा नंदन ही कहता है | यह कथानक यही दर्शाता है कि जन्म देने वाले से पालन करने वाले का महत्व अधिक है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज में अनेक ऐसे लोगों को भी देख रहा हूं | आज अनेकों लोग ऐसे हैं जो परिवार के मुखिया होते हुए भी , पालनकर्ता के पद पर होते हुए अपने पद अनुरूप कार्य नहीं कर पा रहे हैं | अनेकों ऐसे उदाहरण देखने को मिल रहे हैं जहां पालक ही संहारक की भूमिका निभा रहा है | हम भगवान श्री हरि विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथाएं तो बहुत प्रेम से कहते एवम् सुनते हैं परंतु सिर्फ आनन्द के लिए | जबकि भगवान की कथाएं आनंददायक के साथ साथ शिक्षाप्रद भी है | भगवान के प्रत्येक अवतार से हमें एक नवीन
ज्ञान एवं शिक्षा प्राप्त होती है | परंतु प्रायः यह देखा जा रहा है कि आज का मनुष्य दूसरों को ज्ञान देना तो जानता है परंतु स्वयं उसका पालन करने में उसको परेशानी होती है | आज भगवान के "कच्छप अवतार" धारण करने के पावन दिवस पर हम सभी को यह संकल्प लेना होगा अपने परिवार के पालन करने में यदि हमें अपने स्वरूप को भी मिटाना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए | भगवान के विभिन्न अवतार हमें यही शिक्षा देते हैं |* *पालनकर्ता का एक ही उद्देश्य होता है कि हमारे संरक्षण में रह रहे लोग किस प्रकार सुखी रहें , कौन सा कर्म किया जाए जिससे उनको कोई कष्ट ना हो | तभी वह पालनकर्ता कहा जा सकता है |*