*परमात्मा ने सृष्टि का सृजन करते हुए आकाश , पाताल एवं धरती का निर्माण किया , फिर इसमें पंच तत्वों का समावेश करके जीवन सृजित किया | पृथ्वी पर जीवन तो सृजित हो गया परंतु इस जीवन को संभाल कर उन्नति के पथ पर अग्रसर करने हेतु प्रोत्साहित करने वाले एक योद्धा की आवश्यकता प्रतीत हुई | एक ऐसा योद्धा जो अपनी चिंता न करते हुए जीवन में अनेकों त्याग और बलिदान देते हुए मानव जीवन को सतत पुष्पित पल्लवित करता रहे | परमात्मा ने नारी के रूप में उस योद्धा का चुनाव किया | जिस प्रकार किसी बगीचे को सजाने एवं संवारने में एक माली अपनी नींद , भूख के साथ-साथ धूप , शीत एवं बरसात की चिंता किए बिना लगा रहता है उसी प्रकार एक नारी भी अपनी आवश्यक आवश्यकताओं / अपनी कामनाओं का दमन करके मानव समाज रूपी उपवन को सदैव पुष्पित पल्लवित करने में लगी रहती है | जिस प्रकार माली के बिना कोई बगीचा उजाड़ हो जाता है उसी प्रकार नारी के बिना मानव जीवन भी शमशान की तरह वीरान हो जाता है | ईश्वर की अनुपम कृति नारी इस सृष्टि का मूल है जिसका सम्मान देवताओं ने किया है उसका सम्मान मनुष्य नहीं कर पा रहा है | जब जब मनुष्य पर कोई संकट आया है तब तब नारी शक्ति उनके कंधे से कंधा मिलाकर जीवन के युद्ध में सैनिक की भूमिका निभाती आई है | कभी महालक्ष्मी के रूप में धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती है तो कभी मैया सरस्वती के रूप में आकरके विद्या ज्ञान प्रदान करने वाली दुष्टों का संहार करने के लिए महाकाली भी बन जाती है | इन महाशक्तियों का स्वरूप नारी में भी देखने को मिल ही जाता है आवश्यकता है सकारात्मक दृष्टिकोण की |*
*आज चारों और आधुनिकता ने अपने पांव पसार लिए हैं | पश्चिमी सभ्यता को जीवन में उतारने की होड़ सी लगी हुई है | ऐसे में पुण्यभूमि भारत के देव तुल्य प्राणी भी अपनी संस्कृति और संस्कार को भूलते हुए दिखाई पड़ रहे हैं | जिस भारत देश में नारियों को सदैव देवी की संज्ञा दी गई है आज उसी देश में स्थान स्थान पर नारी की अस्मिता दांव पर लगी हुई है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूं कि वर्तमान समय में पुरुष प्रधान समाज नारी को दलित एवं पतित कहने से भी नहीं चूकता | वह यह भूल जाता है कि उनको जन्म देने वाली माँ भी नारी ही है | घर में कन्या का जन्म होने पर दुर्भाग्य के रूप में , युवती हो जाने पर वासना की दृष्टि से , विवाहोपरांत असमय विधवा हो जाने पर अपशकुन के रूप में एवं वृद्धावस्था में स्वयं की माता को बोझ के रूप में देखने वाला पुरुष प्रधान समाज यह भूल जाता है यदि नारी ना होती तो उनका कोई अस्तित्व नहीं था | आज के युग में जहां नारी पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है वहीं कुछ लोग आज भी नारी को हेय दृष्टि से देखते हैं , ऐसे पुरुषों को अपने पुरुषत्व पर मिथ्या अभिमान होता है | आवश्यकता है अपनी मानसिकता बदलने की | मनुष्य को विचार करना चाहिए कि जब भगवान श्रीराम को नारी के बिना यज्ञ करने का अधिकार नहीं प्राप्त हुआ तो साधारण मनुष्यों की क्या बिसात है | नारी प्रेम एवं सम्मान की भूखी होती है , परंतु पुरुष प्रधान समाज नारी को सम्मान ना दे करके सिर्फ उनसे सम्मान पाना चाहता है | यही संभव नहीं हो पा रहा है | सीधा सा अर्थ है सम्मान तभी मिलेगा जब आपमें सम्मानित करने की भी कला होगी |*
*जब नारी के बिना परमात्मा सृष्टि को आगे नहीं बढ़ पाया तुच्छ मनुष्यों को भी विचार करना चाहिए कि नारी की महत्ता क्या है ??*