*भारत देश में अपने परिवार तथा समाज को संपन्न एवं दीर्घायु की कामना से नारियों ने समय-समय पर कठिन से कठिन व्रत का पालन किया है | वैसे तो वर्ष भर कोई न कोई पर्व एवं त्योहार यहां मनाया जाता रहता है , परंतु कार्तिक मास विशेष रुप से पर्व एवं त्योहारों के लिए माना जाता है | कार्तिक मास में नित्य नए-नए त्यौहार एवं पर्व देखने को मिलते हैं | अभी चार दिन पहले सौभाग्यवती महिलाओं ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का निर्जल एवं कठिन व्रत संपन्न किया है | पुन: आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माताएं अपने पुत्र की लंबी आयु एवं संतानोत्पत्ति के लिए अहोई अष्टमी का कठिन व्रत करेंगी | अहोई अर्थात अनहोनी से बचाने वाला व्रत | अपनी संतान को किसी भी अनिष्ट से बचाने के लिए यह निर्जल व्रत किया जाता है | दिन भर निर्जल व्रत रहकर के सायंकाल को पूजन करके तारों के उदय होने पर इस व्रत को समाप्त किया जाता है | इसका विधान तो चंद्रोदय पर व्रत समाप्त करने का है परंतु प्रायः महिलाएं तारों के उदय होने पर ही अर्घ्य देकर व्रत का समापन कर देती हैं | आज के दिन मातायें अपनी संतानों की लम्बी आयु और स्वास्थ्य के लिए यह कठिन व्रत करती हैं | करवा चौथ की ही भाँति प्रात:काल स्नान - ध्यान कर , स्वच्छ वस्त्र धारण करते मिट्टी के मटके में पानी भरकर अहोई माता का वूजन करने का विधान है | दिन भर निर्जल रहकर सायंकाल को पूजन करके पूरी , हलवा , चना आदि का भोग समर्पित करके अहोई माता से अपनी संतान के सुखद जीवन एवं लम्बी आयु की प्रार्थना की जाती है | पुरुष किसी भी रुप में नारी को माने या न माने , सम्मान करे या न करे परंतु नारी अपने सभी रूपों में सदैव पुरुषों के लिए मंगल कामना ही करती है |*
*आज जिस प्रकार अपने माता पिता को छोड़ कर के संतानें उनसे अलग एकल परिवार बना रही हैं , उससे माता-पिता को कष्ट तो होता है परंतु इतना होने के बाद भी स्वयं को छोड़कर चली गई संतान के लिए भी यह व्रत माताएं बड़ी श्रद्धा से मनाती हैं | पुत्र के द्वारा तिरस्कृत एवं उपेक्षित कर देने के बाद भी उसी पुत्र के लिए कठिन व्रत करना यह दर्शाता है कि नारियां कितनी ममतामयी एवं त्याग की मूर्ति होती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज में देख रहा हूं कि किस प्रकार संतान अपनी मां को अपनी पत्नी की झूठी शिकायत पर उसी पत्नी के सामने तिरस्कृत करता है वह यह भूल जाता है कि पत्नी तो युवावस्था में प्राप्त हुई है परंतु जन्म से लेकर पत्नी प्राप्त होने तक इसी माता ने अपने ममता के आँचल तले उसका पालन पोषण किया है | परंतु पत्नी के मोहपाश में अंततोगत्वा पुत्र या तो माँ को घर से निकाल देता है या फिर ले जाकर वृद्ध आश्रम में छोड़ आता है | पुत्र के द्वारा ऐसा कृत्य किए जाने के बाद भी माताएं अपने पुत्र की कुशल कामना के लिए पुत्र से संबंधित कोई भी व्रत करना छोड़ती नहीं | विचार कीजिए इतना बड़ा त्याग इतनी बड़ी तपस्या एक नारी केअतिरिक्त कोई पुरुष भी कर सकता है ?? शायद ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता है | संतान के द्वारा मिले तिरस्कार एवं उपेक्षा कुछ ही समय बाद कोमल हृदय वाली माताएं भूल जाती हैं तथा वही प्रेम दर्शाती हुई इन कठिन व्रतों का पालन करती हैं | नारियों के कठिन व्रतों को देखते हुए पुरुष समाज को भी विचार करना चाहिए कि जिस नारी को इतनी उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं वही पुरुष समाज के लिए यदि कठिन से कठिन व्रत का पालन कर रही है तो पुरुष समाज भी उनको सम्मान देने के लिए उत्तरदायी है |*
*समय-समय पर पुरुष समाज के लिए कठिन व्रत एवं उपवासों के द्वारा सनातन संस्कृति एवं मान्यताओं को संरक्षित करने में नारी के महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता |*