*सृष्टि के प्रारम्भ में मनुष्यों की उत्पत्ति हुई मानव मात्र एक समान रहा करते थे , इनका एक ही वर्ण था जिसे "हंस" कहा जाता था | समय के साथ विराटपुरुष के शरीर से चार वर्णों की उत्पत्ति की वर्णन यजुर्वेद में प्राप्त होता है :-- "ब्राह्मणोमुखमासीद् बाहू राजन्या कृता: ! ऊरूतदस्यद्वैश्य: पद्भ्या गुंग शूद्रो अजायत् !! अर्थात विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , उदर से वैश्य एवं पैरों से शूद्र की उत्पत्ति भाष्यकारों ने प्रतिपादित किया है | इन चारों ही वर्णों में ब्राह्मण को प्रधान मानते हुए इन्हें हमारे शास्त्रों ने अधिक महत्व दिया है | जिसका कि समय समय पर विरोध भी होता देखा गया है | प्राय: सुनने को मिलता है कि क्या ब्राह्मणकुल में जन्म ले लेने मात्र से कोई ब्राह्मण हो जाता है ?? यह जानने के पहले यह जान लेना परमावश्यक है कि आखिर ब्राह्मण है क्या ?? क्या जीव , शरीर , जाति ,
ज्ञान , कर्म या धार्मिकता ही ब्राह्मण का परिचय है ?? जी नहीं ! ब्राह्मण इनमें से कुछ भी नहीं है बल्कि ब्राह्मण उसे माना जा सकता है जो आत्मा के द्वैत भाव से युक्त ना हो , जाति गुण और क्रिया से भी युक्त न हो , षडविकारों आदि समस्त दोषों से मुक्त हो , सत्य, ज्ञान, आनंद स्वरुप, स्वयं निर्विकल्प स्थिति में रहने वाला , अशेष कल्पों का आधार रूप , समस्त प्राणियों के अंतस में निवास करने वाला , अन्दर-बाहर आकाशवत संव्याप्त ; अखंड आनंद्वान , अप्रमेय, अनुभवगम्य , अप्रत्येक्ष भासित होने वाले आत्मा का करतल आमलकवत परोक्ष का भी साक्षात्कार करने वाला ! ट काम-रागद्वेष आदि दोषों से रहित होकर कृतार्थ हो जाने वाला | शम-दम आदि से संपन्न ; मात्सर्य , तृष्णा , आशा,मोह आदि भावों से रहित ,दंभ, अहंकार आदि दोषों से चित्त को सर्वथा अलग रखने वाला हो, वही ब्राह्मण है |* *आज चारों वर्णों को इतिहासकारों ने चार जातियों में परिवर्तित कर दिया है | मानवमात्र में वैमनस्यता पैदा करके अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वालों ने ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र की असलियत जाने बिना इतना ज्यादा भ्रम फैलाया है कि सबके निशाने पर ब्राह्मण ही आ गये हैं | जबकि सभी शास्त्रों / उपनिषदों के रचयिता ब्राह्मणों ने यह कहीं नहीं लिखा कि जन्म से ही ब्राह्मण माना जाय | चाहे गीता में भगवान श्रीकृष्ण का उद्घोष हो या अन्यान्य स्मृतियों के वचन हों प्रत्येक स्थान पर कर्म की ही प्रधानता दर्शाई गयी है | एक ब्राह्मण का क्या कर्म होना चाहिए यह आज के अधिकतर ब्राह्मण भूलते जा रहे हैं यही कारण है कि वे तेजहीन होकर ठोकर खा रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज मात्र ब्राह्मण ही नहीं अपितु समस्त मानवजाति अपने कर्माचरण को भूलकर विपरीत कर्म करती जा रही है | रही बात ब्राह्मण की तो इतिहास गवाह रहा है कि अन्य वर्णों में जन्म लेकर अनेक विद्वानों ने अपने कर्मों से "ब्राह्मणत्व" को प्राप्त किया है | परंतु आज के युग में ब्राह्मणकुल में जन्म लेकर भा शिखा रखना , यज्ञोपवीत धारण करना लज्जा की बात प्रतीत होती है | आज के समय की यही माँग है कि भारतीय सनातन संस्कृति के हमारे पूर्वजो व ऋषियो ने ब्राह्मण की जो व्याख्या दी है उसमे काल के अनुसार परिवर्तन करना हमारी मूर्खता मात्र होगी | वेदों-उपनिषदों से दूर रहने वाला एवं अपने कर्म में अलिप्त व्यक्ति चाहे जन्म से ब्राह्मण हों या ना हों लेकिन ऋषियों को व्याख्या में वह ब्राह्मण नहीं है | अतः आओ हम हमारे कर्म और संस्कार तरफ वापस बढकर अपने ब्राह्मणत्व को स्थापित करने का प्रयास करें |* *हमारे वेद - पुराणों में वर्ण से ज्यादा कुछ भी नहीं लिखा है | कालान्तर में वर्णों को जातियों में परिवर्तित करने कार्य नव
समाज के पुरोधाओं ने सम्पादित किया , जिसका परिणाम हम सब भोग रहे हैं |*