*सनातन धर्म में मानव जीवन को चार भागों में विभक्त करते हुए इन्हें आश्रम कहा गया है | जो क्रमश: ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , सन्यास एवं वानप्रस्थ के नाम से जाना जाता है | जीवन का प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य कहा जाता है | ब्रह्मचर्य एक ऐसा विषय है जिस पर आदिकाल से लेकर आज तक तीखी बहस होती रही है | स्वयं को ब्रह्मचारी कहने वाले प्राचीनकाल से ही होते आये हैं | प्राय: आम जनमानस यही मानता चला आया है कि जिसने विवाह नहीं किया वही ब्रह्मचारी है | परंतु यदि इसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाय तो विवाह एवं ब्रह्मचर्य का कोई सम्बन्ध ही नहीं है | ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म व्यवहार | अर्थात ब्रह्म में लीन होने की अवस्था | यह किसी को भी जीवन के किसी भी पड़ाव पर प्राप्त हो सकती है | इसके लिए मनुष्य को वीतरागी बनते हुए अपनी समस्त इन्द्रियों पर नियंत्रण करना होगा | चक्रीय जागरण की अवस्था को पार करते हुए सांसारिकता से आबद्ध होने की अपेक्षा आध्यात्मिकता से आबद्ध होकर आंतरिक यात्रा करनी होगी | तभी मनुष्य ब्रह्मलीन होने की स्थिति को प्राप्त करके ब्रह्मचारी कहा जा सकता है | यदि वास्तविकता में देखा जाय तो ब्रह्मचर्य परमानंद की स्थिति है इसे कोई भी प्राप्त कर सकता है | परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार के लिए स्वयं मनुष्यत्व से ऊपर उठकर देवत्व का आरोपण करके तपश्चर्या के माध्यम से इस स्थिति को पहुँचा जा सकता है | यह स्थिति जितनी एक संयासी के लिए सुलभ है उतनी ही गृहस्थ के लिए भी | जिस प्रकार देहधारी महाराज जनक जी विदेह हो सकते हैं उसी प्रकार कोई भी विवाहित गृहस्थ भी ब्रह्मचारी हो सकता है | ब्रह्मचारी और ब्रह्मचर्य के विषय में लोगों को भ्रमित न होकर यह समझना चाहिए कि ब्रह्म के आचार में प्रवृत्त होना ही वास्तविक ब्रह्मचर्य है |*
*आज के युग में सनातन धर्म की मान्यताओं को लेकर अनेक भ्रांतियाँ समाज में व्याप्त हैं , इन भ्रांतियों को बल तब मिल जाता है जब सनातन के पुरोधा भी सत्यता को जाने बिना इन भ्रांतियों को हवा दे देते हैं | आज जिस प्रकार सनातन की सभी मान्यताओं का अर्थ आज बदल गया है उसी प्रकार ब्रह्मचर्य का अर्थ भी बदलकर रह गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूँ कि अनेक लोग अपने नाम के साथ ब्रह्मचारी तो लिखते हैं परंतु उनके कृत्य यदि देखा जाय तो किसी व्यभिचारी को भी लज्जित करने वाले होते हैं | प्राय: लोग यह भी कहते हैं कि मैं विवाह न करके ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा | परंतु क्या विवाह न करने मात्र से कोई ब्रह्मचर्य का पालन करने ब्रह्मचारी हो सकता है ?? अधिकतर लोग ब्रह्मचर्य पालन का ढोंग तो करते हैं परंतु उनकी चित्तवृत्ति सकारात्मक एवं नियंत्रित नहीं रह पाती है | ऐसे ब्रह्नचर्य से क्या लाभ ?? जो लोग विवाह न करने के पक्षधर हैं उनको यह ज्ञान होना चाहिए कि सनातन धर्म में बताये गये चारों आश्रमों में गृहस्थाश्रम ही सर्वश्रेष्ठ है | यदि इन्हीं लोगों की तरह इनके माता - पिता भी वैवाहिक बन्धन में न बंधे होते तो इनका जन्म कैसे होता | मन में यह भ्रांति कदापि नहीं रखनी चाहिए कि विवाहित व्यक्ति ब्रह्मचारी नहीं हो सकता ! भगवान श्रीकृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ थी और सभी रानियों से दस दस पुत्र थे , परंतु फिर भी उनको ब्रह्मचारी कहा जाता है | कामवासना का त्याग करके मात्र संतानोत्पत्ति के लिए स्त्री संग करने वाला ब्रह्मचारी की श्रेणी में गिना जाता है | इस प्रकार ब्रह्मचर्य का पालन करके मनुष्य ब्रह्मचर्य आश्रम एवं गृहस्थाश्रम दोनों का पालन कर सकता है |*
*ब्रह्मचर्य जीवन का प्रथम आश्रम है परंतु आज जीवन के प्रथम आश्रम में ही युवा पीढ़ी अपने पथ से भ्रष्ट होकर पतित हो रही है ! यह चिंतनीय विषय है |*