*हम उस दिव्य एवं पुण्यभूमि भारत के निवासी हैं जहाँ की संस्कृति एवं सभ्यता को आदर्श मानकर सम्पूर्ण विश्व ने अपनाया था | जहाँ पूर्वकाल में समाज की मान्यताएं थी कि दूसरों की बहन - बेटियों को अपनी बहन -बेटियों की तरह मानो | जहाँ तुलसीदास जी ने अपने मानस में लिखा कि :- "जननी सम जानहुँ परनारी ! धन पराव विष ते विष भारी !!" अर्थात :- पराई स्त्री में अपनी माँ का स्वरूप देखो | पराये धन को विष के समान जानो | जहाँ यह मान्यता थी कि भाभी माँ के समान होती है | हमें यह सिखाया जाता है कि बुजुर्गों का सम्मान करो , समाजिक बुराइयों का विरोध करो , धर्म की रक्षा अपने प्राण देकर भी करो | मार्ग पर पड़े असहाय घायलों की सहायता करो , अतिथि भगवान् के रूप होते हैं | इसके अतिरिक्त यह भी बताया - सिखाया जाता था कि बड़ो का सम्मान करो , गुरुओं की आज्ञा का पालन करों | हमारे देश में नवरात्रि पर कन्याओं को माँ के रूप में पूजन होता था | यही था हमारा समाज , यही थीं हमारी मान्यतायें , इन्हीं मान्यताओं एवं सभ्यताओं के बल पर हमारा देश भारत विश्वगुरु बना था | फिर अचानक हमारे देश की सभ्यता एवं संस्कृति को क्या हो गया ?? जहाँ कन्या , नारी अपनी मर्यादा का पालन करती थीं वहीं अभिभावक भी अपनी कन्याओं को किसी मणि की तरह रखते थे | एक नारी का मुख्य आभूषण उसकी मर्यादा एवं लज्जा होती थी | परंतु आज यदि कुछ भी शेष नहीं बचा है तो इसके कारणों पर विचार करने की आवश्यकता है |*
*आज हम स्वयं को आधुनिक कहकर गौरवान्वित होते हैं | परंतु आधुनिक होने का अर्थ क्या यही हुआ कि हम अपनी मर्यादा को भूल जायं ? आज जो अश्लीलता हम सबको सड़कों पर , पार्कों में , क्लबों में दिख रहा है , वास्तव में इसका जिम्मेदार कौन है ?? इसके जिम्मेदार समाज के ठेकेदार एवं अभिभावक ही हैं | आज नारियों के प्रति यदि अत्याचार , यौन उत्पीड़न की घटनायें बढ़ रही हैं तो इसके जिम्मेदार जितना युवक हैं उससे कहीं ज्यादा स्वयं को आधुनिक मानकर अंग प्रदर्शित करते हुए वस्त्रों को पहनने वाली युवतियाँ भी हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह भी देख रहा हूँ कि आज हमारी बेटी की शिकायत जब कोई जानकार या पडोसी करने आता है तो हम अपनी बेटी का दोष ना देकर उसके सामने ही उस जानकार या पडोसी के इज्जत की धज्जियाँ उदा देते हैं उनसे लड़ बैठते हैं कि आप " होते कौन है हमारी बेटी पर अंगुली उठाने वाले इस प्रकार बेटी की गलतियों को बढ़ाकर उसका मनोबल बढ़ा रहे है और दूसरी तरफ समाज के मुँह पर थप्पड़ मार रहे हैं | सारा दोष समाज का देने वाले माता - पिता या पति को यह नहीं दिखाई पड़ता कि हमारी पुत्रियां या पत्नी कैसे वस्त्र पहन रही हैं | आधुनिकता एवं स्वतंत्रता के नाम पर जो नंगा नाच नाचा जा रहा है उसका जिम्मेदार क्या सिर्फ पुरुष समाज ही है ?? जी नहीं | नारी का आभूषण लज्जा ही है है | प्रत्येक नारी जाति को मर्यादा की लक्ष्मण रेखा लाँघने का प्रयास नहीं करना चाहिए | लक्ष्मणरेखा का उल्लंघन करने पर जब जगज्जननी माता सीता का हरण हो गया तो साधारण स्त्री की क्या बिसात है |*
*आज जो समाज हम देख रहे हैं उसमें संस्कार एवं सभ्यता स्वयं रोगी हो गयी है इसके जिम्मेदार मुख्यरूप से समाज के ठेकेदार एवं अभिभावक को ही कहा जायेगा |*