*हमारा देश भारत आदिकाल से संस्कृति एवं शिक्षा के विषय में उच्च शिखर पर रहा है | विश्व के लगभग समस्त देशों ने हमारे देश भारत से शिक्षा एवं संस्कृति का ज्ञान अर्जित किया है | इतिहास के पन्नों को देखा जाय तो जितना दिव्य इतिहास हमारे देश भारत का है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं देखने को मिलता है | आदि काल से लेकर मध्यकाल तक हमारा इतिहास स्वर्णिम रहा है यदि समस्त विश्व में हम को विश्व गुरु कहा जाता था तो उसका एक ही कारण था कि हमारी शिक्षा संस्कृति एवं संस्कार उच्च श्रेणी के थे जिसके माध्यम से मानवता का निर्माण होता था | मानवता का निर्माण एवं उसकी समझ तभी हो सकती है जब मनुष्य का चरित्र उच्च कोटि का हो | यही विशेषता हमारे देश की रही है कि यहां आदिकाल से ही चरित्र निर्माण पर बल दिया गया था | यदि मनुष्य का चरित्र उच्च कोटि का हो तो उसके लिए जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है | हमारे पूर्वजों ने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के माध्यम से बालकों में संस्कार , संस्कृति एवं माननीय गुणों का आरोपण किया था जिसके फलस्वरूप वहां से निकले विद्यार्थी लोक कल्याण एवं देश हित में अपनी शिक्षा का प्रयोग करते थे | गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थी को ज्ञान के साथ-साथ शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर भी मजबूत किया जाता था | सबसे विशेष बात यह थी कि वहां पर बालक के चरित्र का निर्माण करने पर बल दिया जाता था | यही कारण है कि हमारे पूर्वज दिव्य जीवन शैली व्यतीत करते थे और समस्त विश्व हमारे देश भारत से चरित्र निर्माण की प्राप्त करता था | हमारे पूर्वज पुस्तकीय शिक्षा के विषय में भले ही कमजोर थे परंतु उनमें संस्कृति की समझ एवं संस्कारों की कमी कदापि नहीं थी | यह सत्य है कि जब तक मनुष्य का चरित्र नहीं दृढ़ होगा तब तक सारे ऐश्वर्य प्राप्त कर लेने के बाद भी पूर्ण मनुष्य नहीं कहा जा सकता , इसीलिए शिक्षा के साथ साथ बालकों के चरित्र निर्माण पर भी बल देते रहना चाहिए |*
*आज सम्पूर्ण विश्व के साथ साथ हमारे देश भारत में भी शिक्षा के अवसर बढ़े हैं | जहाँ पहले प्रत्येक व्यक्ति के लिए शिक्षा सुलभ न होने के बाद भी उनका पारिवारिक संस्कार उनके चरित्र का निर्माण करता था वहीं आज जन जन को शिक्षा के अवसर प्राप्त होने के बाद भी विद्यार्थियों के उच्च चरित्र का निर्माण नहीं हो रहा है तो विषय विचारणीय हो जाता है | आज हमारे देश में वही शिक्षा दी जा रही है जिसके माध्यम से धनार्जन किया जा सके | यदि आज युवापीढ़ी का चारित्रिक पतन हो रहा है तो उसका एक ही कारण है कि न तो अभिभावकों के द्वारा और न ही विद्यालय के गुरुजनों के द्वारा विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण पर बल दिया जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज की शिक्षा प्रणाली एवं सामाजिक अस्त - व्यस्तता को देखकर यह कह सकता हूँ कि आज के अधिकतर अध्यापक त्याग की भावना से नहीं बल्कि अपनी ड्यूटी समझकर बालकों के साथ अपना समय व्यतीत कर रहे हैं | आज की शिक्षा अर्थप्रधान बनकर रह गयी है | आज देश में जो चारों ओर तरह तरह की व्यभिचार की घटनायें सुनने को मिल रही हैं उसका एक ही कारण है कि आज मनुष्य का चारित्रिक पतन हो गया है | देश की सरकारों की ओर से इन प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए अनेक प्रकार के विधान बनाये जा रहे हैं परंतु फिर भी इन अपराधों में निरन्तर हो रही वृद्धि चिंता का विषय बनती जा रही है | यदि इन अपराधों को रोकना है तो पुन: बालकों में उच्च चरित्रों का आरोपण करके ही यह सम्भव हो सकता है इसके लिए अभिभावकें को परिवार के संस्कार एवं अध्यापकों को विद्यालय में चरित्र निर्माण पर बल देना होगा | जब बालक विद्यालय से उच्च चरित्रों को स्वयं में उतारने में सफल होता बै तब उसके हृदय में दया , करूणा एवं दूसरों के प्रति सम्मान का भाव स्वमेव जागृत हो जाता है | जिसके हृदय में इस प्रकार के भावों का उदय हो गया है उसके द्वारा ऐसे अपराध होना असम्भव है | इसलिए चरित्र निर्माण पर ध्यावन देने की आवश्यकता है |*
*जिस प्रकार कीचड़ में भी पड़ा हुआ हीरा चमकता रहता है उसी प्रकार दुर्दिन में भी चारित्रिक व्यक्ति के मुख मण्डल की आभा तेजस्वी बनी रहती है | जीवन में चरित्र के महत्त्व को सामझना होगा |*