*इस संसार में सबसे कठिन और दुष्कर कार्य है मानव जीवन का प्राप्त होना , क्योंकि हमारे शास्त्रों का कथन है कि अनेक योनियों में भ्रमण करने के बाद बड़ी मुश्किल से मनुष्य का शरीर जीव को प्राप्त होता है | मनुष्य सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है | मनुष्य के लिए अपनी इच्छा से मानव जीवन पाना तो असंभव है परंतु मानव जीवन पा जाने के बाद संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता है | यदि मनुष्य संकल्प का धनी एवं आत्मबली हो तो उसके लिए संसार का कोई भी कार्य , कोई भी लक्ष्य असंभव कदापि नहीं हो सकता , चाहे वह भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक क्षेत्र | यदि वह सच्चे संकल्प के साथ सही दिशा में प्रयत्न करता है तो अपने इस प्रयत्न के बल पर वह सफलता की ऊंचाइयों को छू सकता है | हमारे देश में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में अनेकों ऐसे उदाहरण है जिन्होंने संकल्प व साहस के बल पर दीन हीन जीवन शैली से ऊपर उठ़ते हुए सब कुछ प्राप्त करने का उद्योग करके प्राप्त किया है | रसातल से चरम शिखर की उनकी यात्रा रोमांचित करती है और थके हारे मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है | पत्नी से तिरस्कृत होकर के तुलसीदास जी ने अपने आत्मबल को संजोया और अद्भुत संकल्प लेकर के उसी संकल्प के सहारे सफलता के उच्च शिखर पर आरूढ़ हुए | कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य में यदि इच्छा शक्ति और संकल्प को पूरा करने का आत्मबल है तो उसके लिए कुछ भी कर पाना असंभव नहीं है , इसलिए मनुष्य को दीन हीन बने रहने की अपेक्षा जीवन को ऊंचाइयों की ओर ले जाने वाले संकल्प को ले करके उस संकल्प पर दृढ़ता से डटे रहते हुए उसको पूरा करने का प्रयास करना चाहिए | यदि ऐसा किया जाय तो किसी भी कार्य में सफलता अवश्य मिलेगी |*
*आज के युग में भी अनेकों ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने अपना बचपन भूखे रह कर के सड़कों पर बिताया परंतु उन्हें यह दीन हीन जीवन स्वीकार नहीं था और उन्होंने जीवन में कुछ बनने का संकल्प लेकर के दृढ़ आत्मबल के साथ अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हुए , और उसी का परिणाम है कि आज अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने सफलता की ऊंचाइयों को प्राप्त किया है | मनुष्य कार्य प्रारंभ तो कर देता है परंतु जरा सी कठिनाई आने पर उस कार्य को बंद कर देना मनुष्य के आत्मबल की कमजोरी को दर्शाता है | दृढ़ संकल्प यदि मनुष्य के अंदर है तो मार्ग में अनेकों कठिनाइयों के आने के बाद भी वह अपने कर्तव्य पथ पर डटा रहता है और ऐसे ही व्यक्ति एक दिन सफलता को प्राप्त करते हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी' का इतना ही मानना है कि मानव जीवन पाकर के ऐसा कोई कारण नहीं है कि मनुष्य इस सुर दुर्लभ शरीर को दीन हीन और कलुषित जीवन बनाकर अपनी एवं परमात्मा की नियति मान ले | अरे यह वह जीवन है यह मनुष्य का वह शरीर है जिसमें ऐसा खजाना भरा पड़ा है कि व्यक्ति से मनचाहा वरदान पा सकता है | चौरासी लाख योनियों में किसी के पास भी वह खजाना नहीं है जो खजाना इस मानव शरीर में भरा है , उस खजाने को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को आवश्यकता है बस अपने संकल्प को जगाने की और असीम धैर्य के साथ उस और बढ़ने की | इतना यदि मनुष्य कर ले जाए तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है | कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने पिछले कुत्सित मानसिकता एवं कृत्यों वाले जीवन का त्याग करके एक नए जीवन की शुरुआत की और ऐसे लोग भी यदि सफलता प्राप्त कर पाए तो उसमें भी दृढ़ संकल्प असीम धैर्य एवं आत्मबल का महत्वपूर्ण योगदान कहा जाएगा |*
*यदि मनुष्य संकल्प का धनी है एवं आत्मबल दृढ़ है तो इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है | विचार यह करना चाहिए कि सृष्टि में सबसे असंभव मानव जीवन पाना जब संभव हो गया तो अब असंभव क्या बचा ? मनुष्य जो चाहे कर सकता है इसलिए कोई भी कार्य का संकल्प लिया जाए तो तब तक उसे ना छोड़ा जाए जब तक कि लक्ष्य तक न पहुंच जाए |*