पर्यावरण दिवस पर एक कविता ************************** स्वर्ग सी पावन धरा थी, शुद्ध था अन्तःकरण l तितलियों के रंग जैसा, स्वच्छ था पर्यावरण ll दूध की नदियाँ बही थीं, जल सुधा का पान था l पक्षियों
देश हित में प्राण का बलिदान देना चाहता हूँ l कुछ न हो फिर भी उसे सम्मान देना चाहता हूँ ll रक्त रंजित जो हुए, उन देशभक्तों को नमन l त्यागकर जो तन गए, उन वीर संतो को नमन ll देश की माटी तिलक है, वेश है
प्रकाश का चितेरा l अंधकार का मित्रवत वैरी l तारों की आँखों का तारा, नीले नभ के नीचे विवश प्रहरी l अधिकारी है अपनी चमक का l अंधकार की कालिमा का नहीं, निशा के आंचल में टाँक देता है, सितारों के मोती
मैं तो सिर धुन के पछताई, मैंने कर ली पाप कमाई। बचपन खेल में गवाया, जवानी नींद ने भरमाया। बुढ़ापे में सुधि आई, मैंने कर ली पाप कमाई..... काम क्रोध का झूला झूली, अहंकार में फूली फूली। मोह माया ने
रिश्ते नाते यारी सब निकले कारोबारी सब उनके घर में 4 बेटियां फिर भी उन्हें दुलारी सब राजनीत की माचिस देखो देतीं है चिंगारी सब जाने किसकी नजर लगी है सूखीं हैं फुलवारी सब जो दुनिया का चाल चलन
🌷🌷🌷🌷मेरी दुआओं में इतना असर हो.........तुम खुश रहो हमेशा चाहे इस जहां में........................ हम रहे ना रहे पर तेरी खुशियों की दुआ जरूर करेंगे................!!!!🥀❤️🍁🍁🍁🍁🍁🍁🌹🌹सुन जरा ए
🌷🌷🌷🌷वो शाम ही तो मुझे.................... हर रोज़ घुट _घुट कर मरने के लिए...................... मेरी जिंदगी में एक श्राप बनके आई थी..............!!!🥀💔😔🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹🤍वो शाम ही कुछ ऐसी थी म
🌹🌹🌹जुदा तुम हुए पर बेवफ़ा हम हो गए भूल तुम गए पर भुलाने का इल्जाम हमे लगा गएएक हम थे जो तुमसे प्यार करते रहे पर तुम तो किसी और के प्यार में गुम थे.......!!💔🥺🌷🤍🌷🤍🌷🤍🌷🤍🌷💔दिल के करीब आ
🌷सारी रात जाग के मैं,,🤍यही सोचती रहतीं हुं,,🌷की क्या हम इत्ते बुरे हैं...!!🥀🥀🤍कि सब मुझे छोड़ के चले जाते हैं,,🌷मेरा मन तो करता है कि कहीं दूर,,🤍चली जाऊं जहां से कभी ना आ सकूं,,🌷कोई ऐसी जगह ज
🌷🌷🌷ये छोटी _छोटी आंखे भी कितने राज छुपाए होती हैं..............................चाहें खुशी के हों आंसू.................... चाहें गम के हों दोनों ही एक जैसे होते हैं................!!!!🥀💔🍂🍂�
एक शाम वो हसीन सी ,मुझे याद है तुम्हे शायद नही,जब आती थी पाने राहत सी,जो अब न मुन्तजिर है तुम्हे रही,,बस दिन ही तो कुछ बदले,है।तुम हो अमीर संग किसी,मै भले ही
रूबरू रहू मै उसके ,कभी तो रे ऐसा हो,बार बार देखे, मुझे वो,अजी ये कैसा हो,मुख पे हो नकाब उसके, अजी जो ऐसा हो,उठा के बार बार देखे मुझे ,खुदा ये कैसे हो।उसकी महक,आए मुझे , यदि जो ऐसा हो,रहे स
रूबरू मै रहू ,उसके आगोश मे,, मय की उसमे रहू,आंऊ न होश मे,वो जो सजदा करे,,आऊ मै जोश मे,रूबरू मै रहू उसके आगोश मे।।उसको पाने की बस, जुस्तजू इक रहे,खो न ,दू मै उसे ,बस यही होश रहे।
कृष्णा के काले जादू से कौन यहां बच पाया है, गोकुल बृंदावन के वासी सब पर जादू छाया है, कान्हा की मुरली जब बाजे, उस जादू से कोई नहीं बच पाए, लाज शरम सब छोड़ कर भागे, प्रेम की धुन पर सभी गोपियां, नाचें त
मिल जाएगा ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::विस्मृत मन में ख्वाब सुनहरे ,यूं ही उलझ उलझ जाए रे,टूटी हुई सी तारे मन की, फिर से राग सुना जाए रे।तिल तिल मरती हुई सांसो म
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::है फैली चहुँ ओर समाज मे ,रूढ़िवादी परम्पराएं ।कुप्रथाएं खुद के होने का ,पल पल ही एहसास कराए ।इन सबसे ऊपर उठने को ,जागरूक हम समाज करे ।हम सब कुल के गौरव अपने,&n
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: अहंकार:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
=========================है सिलसिला ये कैसा, राह- ए- मजार में ,खबर नही किसी को, पर चल रहे हैं सब।मन मे लिए उमंगे न , जाने किस बात की,पाने को सुख कौन सा , मचल रहे हैं सब ।==================
शोषक और शोषित वर्ग::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::टूटी हुई कलम से तुमने ,गैरो का इतिहास लिखा ,
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●दिल मे उतरकर अपनो सा, अहसास करा जाती है ।और कभी दिल को ही भेद , विक्षुप्त