देश हित में प्राण का बलिदान देना चाहता हूँ l
कुछ न हो फिर भी उसे सम्मान देना चाहता हूँ ll
रक्त रंजित जो हुए, उन देशभक्तों को नमन l
त्यागकर जो तन गए, उन वीर संतो को नमन ll
देश की माटी तिलक है, वेश है श्रंगार है l
वह हमारे प्राण में है, वह हमारा प्यार है ll
मैं उसी बलिदान को ही मान देना चाहता हूँ l
कुछ न हो फिर भी उसे सम्मान देना चाहता हूँ ll
मैं रहूँ या न रहूँ, ये देश मेरा हो प्रबल l
आँधियों में हो अडिग यह, पर्वतों सा हो सबल ll
प्रात की पहली किरण पर नाम मेरे देश का l
साँझ की ढलती किरण पर नाम मेरे देश का ll
देवता के रूप सा प्रतिमान देना चाहता हूँ ll
कुछ न हो फिर भी उसे सम्मान देना चाहता हूँ ll
देशभक्तों ने स्वयं को ही समर्पित कर दिया l
घर हुआ सूना उन्हीं का, रक्त अर्पित कर दिया ll
रुक गए हैं हाथ मेरे, क्या लिखूं क्या न लिखूं?
रक्त के आंसू लिखूं, या लिखूं या न लिखूं?
लेखनी का आज उनको दान देना चाहता हूँ l
कुछ न हो फिर भी उसे सम्मान देना चाहता हूँ ll
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'