आदिकाल से भारतीय परंपरा में सनातन के अनुयायियों के द्वारा अपने धर्म ग्रंथों का दिशा निर्देश प्राप्त करके भांति भांति के पर्व त्यौहार एवं व्रत का विधान करके मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास किया गया है | सनातन धर्म का मानना है ईश्वर कण - कण में व्याप्त है इसी मान्यता को आधार बनाकर के सनातन धर्म ने समय-समय पर प्रकृति पूजा के साथ-साथ गंगा , गायत्री , गीता एवं गोवर्धन की भांति गाय के महत्व को भी दर्शाया है | गौ माता के लिए विशेष पर्व "गोपाष्टमी" अर्थात आज के दिन मनाया जाता है | कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तक गो समुदाय एवं गोप - गोपियों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपने नख पर धारण किया था | आठवें दिन अपने अहंकार का त्याग करके देवराज इंद्र भगवान की शरण में आया और कामधेनु ने अपने दुग्ध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया | तब भगवान का नाम गोविंद पड़ा एवं तभी से गोपाष्टमी का पर्व मनाए जाने का विधान सनातन परंपरा में विद्यमान है | हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि :-- "मातर: सर्वभूतानाम् गाव:" अर्थात गाय समस्त प्राणियों की माता है | भारत देश में शैव , शाक्त , वैष्णव , गाणपत्य , जैन , बौद्ध , सिख आदि सभी धर्म संप्रदायों में अनेक भिन्नता होने के बाद भी गौ माता के प्रति आदर एवं सम्मान का वही भाव है | हमारे सनातन के धर्म ग्रंथ कहते हैं कि "सर्वे देवा स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:" अर्थात सृष्टि के समस्त देवी-देवता गाय के शरीर में निवास करते हैं | इसलिए उसे सर्वदेव में ही कहा जाता है | कहने का तात्पर्य है सनातन धर्म में जितने भी देवी देवता बताए गए हैं उनके पूजन करने का फल प्राप्त करना है तो एक साथ सब के पूजन का फल गाय की पूजा करने से प्राप्त हो सकता है |*
*आज गोपाष्टमी का पर्व पूरे देश में मनाया जा रहा है विशेषकर ब्रजमंडल में इसका विशेष महत्व है | परंतु आज वर्तमान परिदृश्य देखा जाए तो लोगों ने गोपालन करना बंद कर दिया है जिसके कारण आज गौ माता दर बदर भटकने एवं लोगों के द्वारा प्रताड़ित होने को विवश हैं | यह आज के मनुष्य की मूर्खता है जो गाय के महत्व को नहीं समझ पा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सनातन साहित्यों के अध्ययन को आधार मानकर गाय की महिमा का वर्णन करते हुए इतना कहना चाहूंगा कि गाय के अंग प्रत्यंग में देवताओं का निवास माना गया है | गाय के गोबर में लक्ष्मी , गोमूत्र में भवानी , चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता , रभांने की आवाज में प्रजापति और उसके स्तनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं | हमारी ऐसी मान्यता रही है गाय के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से किसी भी तीर्थ स्नान का पुण्य मनुष्य को प्राप्त हो जाता है | आज भी ब्रजमंडल में और भारतवर्ष के विभिन्न भागों में गोपाष्टमी का पर्व बड़े ही उल्लास एवं उत्सव के साथ मनाया जाता है | आज प्रातः काल उठकर के गाय का पूजन करने से मनोवांछित फल मनुष्य को प्राप्त होता है | परंतु आज मनुष्य की मानसिकता इतनी विकृत हो गई है उसके मन मस्तिष्क पर अविश्वास की एक गहरी धुंध जमी दिखाई पड़ती है | सनातन ग्रंथों में वर्णित तथ्यों को मानना आज के मनुष्य को दुष्कर लग रहा है | यही कारण है कि आज धीरे-धीरे मनुष्यता एवं मनुष्य पतित होता चला जा रहा है | आधुनिकता के चक्कर में अपनी सनातन परंपराओं को भूलता हुआ मनुष्य अंधकार के गहरे समुद्र में समाता चला जा रहा है | आज वह समय एवं परिदृश्य स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि भारत देश को सनातन परंपराओं की ओर लौटने की आवश्यकता है |*
*सनातन धर्म में वृक्ष , पहाड़ , नदी आदि की पूजा करने का भी विधान बताया गया है | उसी प्रकार गाय को भी एक दूध देने वाला पशु न समझकर के देवताओं का प्रतिनिधि मानकर पूजा जाता है | यही सनातन धर्म की दिव्यता है |*