*सृष्टि के प्रारम्भ में जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारम्भ की तो अनेकों औषधियों , वनस्पतियों के साथ अनेकानेक जीव सृजित किये इन्हीं जीवों में मनुष्य भी था | देवता की कृपा से मनुष्य धरती पर आया | आदिकाल से ही देवता और मनुष्य का अटूट सम्बन्ध रहा है | पहले देवता ने मनुष्य की रचना की बाद में मनुष्य ने देवता को स्थापित किया या बनाया | यदि इसे इस प्रकार कहा जाय कि मनुष्य देवता के बिना जन्म नहीं ले सकता और देनता मनुष्य के बिना अस्तित्वविहीन है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | उपासना / पूजन की परम्परा शायद आदिकाल से ही प्रारम्भ हो गयी थी | जैसा कि इतिहास बताता है कि पहले आदिमीनव समूहों में चलते थे और प्रकृति पूजा करते थे | धीरे - धीरे विकासक्रम में मनुष्य ने अपने गोत्र के अनुसार कुलदेवता की पूजा प्रारम्भ कर दी | फिर किसी प्रकार की दैविक , भौतिक एवं प्राकृतिक आपदाओं :- अग्नि , बाढ़ , महामारी एवं बाहरी आक्रमण से गाँवों को सुरक्षित रखने के लिए गाँव से बाहर गाँव की आखिरी सीमा पर ग्राम देवता की स्थापना की जाती रही है | विशाल
भारत के लगभग प्रत्येक गाँव में ग्रामदेवताओं / देवी के रूप में अनेक प्रतीकों की पूजा होती थी | सुनसान क्षेत्र में स्थित ये दैवता मनुष्य को मनोवैज्ञानिक बल प्रदान करते थे | प्रकृति मे फैली अपार सकारात्मक ऊर्जा से, प्राण वायु से नवीन चेतना प्राप्त कर अपनी मानवीय जिंदगी को बेहतर और सुखमय बनाने का
हमारे प्रात: स्मरणीय ऋषिओ ,मुनियो ,पूर्वजों आदि द्वारा दिखाया गया यह आध्यात्म का मार्ग निस्संदेह अद्भुत तो है ही साथ ही परम वैज्ञानिक भी है | सनातन
धर्म के तैंतीस कोटि देवी देवताओ मे ये सभी देवी देवता सम्मिलित हैं | लोगों ने अपनी जाति और व्यवसाय के अनुकूल अपने अपने देवता को चित्रित किया था |* *आज आधुनिक भारत में पाश्चात्य संस्कृति के आवरण से स्वयं को ढंक लेने वाले हमारे सनातन के अनुयायी एक ऐसे दोराहे पर खड़े हैं जहाँ एक ओर तो आधुनिकता में उनको प्राचीन सभ्यता पूजा - पाठ आदि ढकोंसला लगता वहीं दूसरी ओर ग्रामस्तर पर होने वाली ग्रामदेवता की वार्षिक पूजा में सम्मिलित भी होना पड़ रहा है | आज गाँवो के होते शहरीकरण के कारण गाँव की बाहरी सीमा पर स्थापित इन ग्रामदेवताओं का अस्थित्व भी खतरे में लग रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" प्राय: देखता हूँ कि ये बनावटी आधुनिक लोग पहले तो इन देवताओं के अस्तित्व को नकारते रहते रहते हैं परंतु जब गाँव पर कोई भीषण आपदा आती है तो दौड़ भागकरके पूरे गाँव को मिलाकर ग्रामदेवता की सामूगिक पूजा भी कराते हैं | कहते हैं भारत गाँवों में बसता है | जब भारत माता ही ग्रामवासिनी हैं तो देवताओं के अस्तित्व को नकारना महज मूर्खता एवं अंधापन ही कहा जायेगा | भारत ही नहीं अपितु विश्व के किसी भी कोने में जहाँ भी भारतवंशी हैं वे आज भी समयानुसार कुल व ग्रामदेवता के निमित्त सांकेतिक पूजा करते हुए अपने
देश की संस्कृति को संजोये हुए हैं | आज हमारे गाँवों में कुछ ढोंगी पुजारियों द्वारा इन ग्रामदेवी / देवता के नाम पर कुछ अंधविश्वाय को जन्म दिया जा रहा है जो कि समाज के घातक है | अत: हमें इन अंधविश्वासों / पाखंडों का खण्डन करते हुए इसका विरोध भी करना चाहिए | आज भी हमारे गाँवों में रीति के अनुसार गाँव के बाहर स्थापित काली माई , चण्डी माई , सत्ती माई , शीतला , भैरव , मसान , कारेदेव , ब्रह्म आदि की पूजा ग्रामदेवता के रूप में होती है और होती रहेगी , यही सनातन की दिव्यता है |* *जब ग्रामदेवता का पूजन होता है तो गाँव के सभी नर नारी इसी बहाने इकट्ठे होते हैं और एक दूसरे से मुलाकात करते हैं जिससे आपसी प्रेम सौहाद्र में वृद्धि होती है | यही सनातन की वैज्ञानिकता है |*