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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *इकसठवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*साठवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*जो य पढ़े हनुमान चालीसा !*
*होहिं सिद्धि साखी गौरीसा !!*
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अब आगे :---
*तुलसीदास सदा हरि चेरा !*
*कीजै नाथ हृदय महं डेरा !!*
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*तुलसीदास*
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*गोस्वामी तुलसीदास जी* का प्रसिद्ध नाम है | इससे पूर्व जन्म का नाम इनका जन्मते मुख से *राम नाम* निकलने के कारण *रामबोला* था | प्रारब्धाधीन शैशवाकाल में ही माता-पिता व धाय चुनिया का भी देहांत हो गया | अल्पायु में ही पिता के देहावसान ने इनको अनाथ कर दिया | भिक्षावृत्ति में भी लोग मंदभागी व कुमुख का कुदर्शन मानकर बाधक होते थे | कालांतर में *स्वामी श्री नरहर्यानंद जी महाराज* के यहां शरण मिलने पर उन्होंने इन्हें अपने आश्रय में लगी *तुलसी* के पौधों की सेवा का भार सौंप दिया | यह नित्य *तुलसी* को पानी देते *तुलसीदल* व मञ्जरी भगवान शालिग्राम को अर्पण करते और *तुलसी* के पौधों की सेवा में अत्यधिक रहते | *तुलसी* की सेवा में श्रद्धा , श्रम व लगन देखकर गुरु जी ने नाम *तुलसीदास* रख दिया | यही नाम इनका भाग्य विधाता बन गया | अपने काव्यों , रचनाओं में कवि परंपरा से अपना यही नाम देते रहे हैं | वह परिपाटी में इस स्तोत्र के अंतिम चरण में इन्होंने अपने नाम का उल्लेख किया है |
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*सदा हरि चेरा*
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*तुलसीदास जी* कहते हैं कि *हे हनुमान जी* यह *तुलसीदास* अर्थात में भी आपका सेवक हूं *हरि*;शब्द में श्लेषात्मक भाव है क्योंकि *हरि* जहां भगवान विष्णु और श्री राम के लिए आता है वहीं *हनुमान जी* के लिए भी कपि होने के कारण आता है | *हरि* बानर को भी कहते हैं अतः यहाँ ऐसा शब्द दिया गया जिसमें *हनुमान जी* और *राम जी* दोनों के सेवक होने का भाव आ गया | *सदा हरि चेरा* अर्थात *हनुमान जी* क्योंकि *हनुमानजी* सदा हरि सेवक है | अत: *तुलसीदास जी* कहते हैं कि *हे सदा हरि चेरा* अर्थात *हनुमान जी* आप अपने इस सेवक *तुलसीदास* को अपनी सेवा में लगाइए | *हनुमान* कपीश आदि नामों में स्वयं *हनुमान जी* के व्यक्तित्व की गरिमा झलकती थी पर *हनुमान जी* इससे प्रसन्न नहीं होते जितने ऐसे संबोधन से जिसमें उनके ईष्ट की प्रधानता झलकती हो |
इसके पूर्व की चौपाई में शंकर जी की साक्षी दी तो मानो *तुलसीदास* के हृदय में प्रेरणा दे दी कि *हनुमान* को प्रसन्न करना हो तो तुम उनके संबोधन तो दो | यही संबोधन *सदा हरि चेरा* का है | *हनुमान जी* को इसमें जितना आनंद मिलता है उतना उनके व्यक्तित्व पूर्ण संबोधन से नहीं मिलता | *श्री रामचरितमानस* में सुंदरकांड की कथा में अशोक वाटिका में सीता जी ने *हनुमान* को आशीर्वाद दिया कि *हनुमान* प्रसन्न हो जाये | जब तक स्वयं को अजर अमर होने का वरदान मिला तब तक *हनुमान जी* को मानो कुछ मिला ही नहीं | माताजी ने यह कहा कि भगवान सदा तुम्हारे पर अपनत्व का प्रेम करते रहे तब *हनुमान जी* को लगा कि मानो सब कुछ मिल गया था |
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*अजर अमर गुननिधि सुत होहूँ !*
*करहु सदा रघुनायक छोहू !!*
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*करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना !*
*निर्भर प्रेम मगन हनुमाना !"*
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*हनुमान जी* को यही संबोधन उपयुक्त लगा |
इस पूरी चौपाई के मुख्य अन्य भाव इस प्रकार हैं :--
👉 *हनुमान जी* वहीं रहते हैं जहां भगवान रहते हैं , अत: *तुलसीदास जी* कहते हैं कि मैं भी भगवान का छोटा सेवक हूं इसलिए मेरे हृदय में निवास कीजिए |
👉 *तुलसी* के पौधों की सेवा करने में *तुलसीदास* तो सदा ही हूं पर अब हृदय में निवास करके *हरि चेरा* (हरि सेवक) और कर दीजिए |
👉 स्वानत:सुखाय स्वयं को संबोधित करते हुए *गोस्वामी जी* कहते हैं कि हे *तुलसीदास* तू भगवान *(हरि)* को स्वामी भाव से हृदय में निवास दे और सदा के लिए अपने आप को *हरि चेरा* कर दे |
👉 हे *तुलसीदास* तू *सदा हरि चेरा* अर्थात *हनुमान जी* को अपना स्वामी बनाकर हृदय में निवास दे |
👉 *तुलसीदास* को *भगवान का चेरा* बनाकर उन्हें मेरे हृदय में रोक दीजिए अर्थात ऐसी कृपा कीजिए कि मैं सदा भगवान के ध्यान में लगा रहूँ |
👉 भगवान के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही नहीं हो स्वर्ग हो या नर्क या अन्य लोकों की कोई भी परवाह नहीं करें क्योंकि उसे तो जहां तहां सभी जगह धनुष धारण किए *राम* ही राम दिखाई देते हैं | उनके हृदय को ही *भगवान राम का डेरा* करने के लिए कहा है | यथा :-
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*स्वर्ग नरक अपवर्ग समाना !*
*जहँ तहँ देख धरे धनु बाना !!*
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*वचन करम मन राउर तेरा !*
*सदा करहुँ तिन के उर डेरा !!*
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*👉 तुलसीदास* अपने आराध्य *हनुमान जी* से अविरल भक्ति का वरदान मांगते हुए कहते हैं कि *तुलसीदास* को *सदा हरि चेरा* (अविरल भक्ति युक्त) करके नाथ ( भगवान राम ) का *डेरा* ( विश्राम स्थल ) मेरे हृदय को भी बना दीजिए |
👉 *तुलसीदास* तो है पर *सदा* अर्थात *दास* की वर्णमाला का उल्टा *सदा हरि चेरा* कर दीजिए |
👉 *हे हनुमान जी* आप भगवान राम की सेवा करते हैं आपका हृदय भगवान का योग्य *डेरा* है | भगवान राम (नाथ) को *हृदय में डेरा* दीजिए और मुझे आपका सेवक सदा के लिए बना लीजिए |
👉 *हे हनुमान जी* आप भगवान की सेवा करते हैं तो ऐसा कीजिए कि आप मेरे हृदय को *डेरा* बना लीजिए अर्थात मेरे हृदय में निवास करें व मुझे सदा के लिए भगवान राम *(हरि)* का सेवक बना दीजिए | मेरे हृदय में आप होंगे व मैं सेवा करूंगा तो आपकी सेवा भी हो जाएगी आप द्वारा राम जी की सेवा भी हो जाएगी व मैं मध्यस्थ अधिष्ठान हो जाऊंगा तो मेरा भी काम बन जाएगा |
👉 *तुलसी* अर्थात हे मैया *तुलसी* तुम तो *हरिप्रिया* हो ही आपके इस दास को भी *हरि चेरा* ( हरिभक्त ) सदा के लिए बना लीजिए | यदि कहियेगा कि मैं क्या करूंगी तो भाव है कि आप अपने स्वामी *श्री हरि* के हृदय में बसी हुई है अतः मुझे चरणसेवा सौंप दीजिए |
*अब अन्त में कहना है कि*
*तुलसीदास जी* कहते हैं कि मैं आपका दास हूं आप नाथ को इतनी प्रिय हैं कि आपका हृदय ही उनका *डेरा* है या वे *श्रीहरि* आपको अपने हृदय में बसाए हुए हैं तो मुझे भी आपके साथ भगवान के हृदय में स्थान दिलवा दीजिए जिससे वही मैं भी आपकी सेवा करता रहूंगा |
इन्हीं अनन्य भाव के साथ *तुलसीदास जी महाराज* ने इस दिव्य स्तोत्र *हनुमान चालीसा* के अंतिम पद में लिखा |
*तुलसीदास सदा हरि चेरा !*
*कीजै नाथ हृदय महं डेरा !!*
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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