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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *साठवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*उनसठवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*यह सत बार पाठ कर जोई !*
*छूटै बंदि महा सुख होई !!*
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अब आगे
*जो य पढ़े हनुमान चालीसा !*
*होहिं सिद्धि साखी गौरीसा !!*
*×××××××××××××××××××*
*जोय*
*×××*
*जोय* अर्थात जो यह | यहां पर *तुलसीदास जी महाराज* "जो" को पुन: दोहरा रहे हैं | इसमें कोई जाति - पाँत , राजा - रंक , विद्वान - निरक्षर आदि का भेद नहीं है | भेद है तो केवल आसुरी प्रवृत्ति व दैवी संपद् गुणों का | यह पहले कहा जा चुका है कि *हनुमान जी* क्या हैं ?? कहा गया है :- *साधु संत के तुम रखवारे* होते हुए भी *असुर निकंदन* हैं | अतः जो मैं अधर्मी , शास्त्र , वेद , गुरु , गौ , द्विज सज्जनों को दुखदायक व्यक्ति अपवाद हैं | पूरे *हनुमान चालीसा* में *जो* शब्द चार बार आया है जिसमें से दो बार स्वयं *श्री हनुमान जी* के लिए व दो बार इस स्तोत्र के लिए प्रयोग किया गया है |
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*संकट ते हनुमान छुड़ावें !*
*मन क्रम वचन ध्यान जो लावें !!*
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*संकट कटै मिटै सब पीरा !*
*जो सुमिरे हनुमत बलबीरा !*
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*यह सत बार पाठ कर जोई !*
*छूटै बंदि महा सुख होई !!*
*×××××××××××××××××××*
*जो य पढ़े हनुमान चालीसा !*
*होय सिद्धि साखी गौरीसा !!*
*×××××××××××××××××××××*
दोनों में ही साधारण विशेष दोनों विधि का उल्लेख किया गया है | यथा :- *हनुमान जी* का मन क्रम वचन से ध्यान करना विशेष साधना है | व *जो सुमिरै* के अनुसार स्मरण सामान्य बात है | *मन* बस में नहीं रजोगुण के कारण चंचल हो रहा है , *कर्म* की शक्ति नहीं , *बचन* का ज्ञान नहीं , पर *स्मरण* तो एन केन प्रकारेण हो ही सकता है | इसी प्रकार *सौ बार* पाठ का अनुष्ठान बंधन मुक्ति के लिए विशेष विधि है तो केवल *पढ़ना* व उसमें भी कोई संख्या का निर्देश नहीं | *सत* नहीं तो चाहे एक बार ही *पढ़े* यह साधारण विधि है कि आवश्यकता व योग्यता अनुसार कोई भी साधारण से साधारण विधि से , विशेष से विशेष विधि से अनुष्ठान की साधना कर सकता है दोनों ही फलदायी होंगे |
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*पढ़ें*
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*पढ़े* अर्थात कंठस्थ भी ना हो तो देख कर *पढ़* लेने मात्र से ही *हनुमान चालीसा* फल प्रदान करता है | *पढ़े* शब्द आवृत्तियों की संख्या का भी कोई नियम नहीं दिखाई पड़ता है | वैसे पढ़ने व पाठ करने में साधारण अर्थ भले ही समान रूप से ग्रहण किया जाए पर गंभीर अर्थ में बहुत अंतर है | पाठ कण्ठस्थ की आवृत्तियों के स्वरूप में भी होता है पर *पढ़ना* तो देख कर *पढ़ना* या समझना या शिक्षा प्राप्त करना होता है | दोनों शब्दों का प्रयोग भी बड़े आभिप्राय पूर्ण उपयुक्त स्थानों पर सार्थक कर दिया गया है | मंत्र के सफल प्रयोग के लिए उसे पहले सिद्ध किया जाता है | एक बार स्तोत्र मंत्र प्रयोग करने के लिए उसका पाठ किया जाता है इसलिए पाठ करने की विधि के साथ *सत बार* आदि की विधि का संकेत दिया पर *पढ़े* के साथ यह सिद्ध होने का संकेत दिया कि जो इसको *पढ़ेगा* अर्थात गुरु मुख से गुरु द्वारा *पढ़ेगा* , समझेगा तो यह स्तोत्र सिद्ध हो जाएगा |
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*होहिं सिद्धि*
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*होहिं सिद्धि* पाठ की सिद्धि (मंत्रात्मक स्तोत्र सिद्धि) व कार्य की सिद्धि दोनों अर्थों का प्रकाशक है |
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*साखी गौरीसा*
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*साखी गौरीसा* अर्थात साक्षी गौरीसा है | *सिद्धि की साक्षी* संदेह निवृत्ति के लिए दे रहे हैं | *गौरीस* अर्थात उमा पार्वती के इस स्वामी भगवान शंकर अथवा *गौरी एवं ईश* दोनों इस बात के साथ हैं कि इसे *पढ़ने* से यह स्तोत्र या मनोरथ सिद्ध होगा | ऐसा सुना जाता है कि *रामचरितमानस* लिखने के बाद *हनुमान जी* के स्तोत्र की रचना *भगवान शंकर* की आज्ञा या निर्देश से हुई | इसमें मंत्र शक्ति या मनोरथ सिद्धि *भगवान शंकर* ने भरी , *गोस्वामी तुलसीदास* को आश्वासन दिया कि जो भी कोई इसका पाठ करेगा उसके सब कार्य सिद्ध होंगे | अतः यह *साक्षी* उल्लेख *गोस्वामी जी* ने इसमें कर दिया है कि कार्य सिद्धि में ( पाठ से ) *साक्षी भगवान शिव पार्वती* हैं | *हनुमान चालीसा* कहकर *तुलसीदास जी* ने इस स्तोत्र का नामकरण कर दिया है | विशेष मंत्र , स्तोत्र , सिद्धपीठ , स्थान , व्यक्ति विशेष , गुण विशेष आदि का नामकरण कर दिया जाता है | यथा :- *श्रीरामचरितमानस* का नाम भी करते समय उसी ग्रंथ में उसका उल्लेख किया गया है | यथा :-
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*रामचरितमानस येहि नामा !*
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इसी प्रकार इस स्तोत्र का नामकरण करके बताया है यह *हनुमान चालीसा* को जो *पढ़ेगा* इससे यह सिद्ध हुआ कि यह सब मैं यहां स्तोत्र का नाम देकर उसके लिए प्रयोग किया गया |
*गौरीसा* अर्थात् *भगवान शंकर* की *साक्षी* में जो *हनुमान चालीसा* पढ़ेगा उसे सिद्धि प्राप्त होगी | कार्य की सिद्धि व स्तोत्र की सिद्धि दोनों ही का भाव है | यह *हनुमान चालीसा* का भाव है कि यदि कोई भी बाद में कवि *हनुमान जी* की स्तुति चालीस छन्दों में कर दे व वह भी *हनुमान चालीसा* कहला दे तो हम उससे सिद्धि की बात नहीं कह सकते की हो या ना हो ! क्योंकि इस स्तोत्र से *सिद्धि की साक्षी गौरीश भगवान शंकर* ने दी है | अन्य विषय में हम क्या कहे | यहां *गोस्वामी तुलसीदास जी* ने स्पष्ट लिख दिया *जो यह पढ़े हनुमान चालीसा* *भगवान शंकर विश्वास* एवं *भवानी गौरी श्रद्धा* स्वरूपा कही गई है | यथा :--
*"भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ"*
जिसके बिना कोई भी प्राप्त नहीं हो सकती | जैसा कि *मानस* में *बाबा जी* ने स्वयं लिखा है :--
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*कवनिऊँ सिद्धि कि विनु विस्वासा !*
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एवं
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*श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई !*
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तथा जिनके बिना सिद्ध असिद्ध हो जाते हैं वह हृदय स्थित ईश्वर को भी नहीं देख सकते | यथा :-- *"याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्त:स्थमीश्वरम्"*
इस भाव से अभिप्राय है कि *श्रद्धा एवं विश्वास* पूर्वक पाठ करने पर ही कार्य सिद्धि होगी |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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