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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *तैंतीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*बत्तीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*भीम रूप धरि असुर संहारे !*
*रामचंद्र के काज संवारे !!*
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अब आगे :----
*लाय संजीवनि लखन जियाये !*
*श्री रघुवीर हृषि उर लाये !!*
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इसके पहले की चौपाई में आपने पढ़ा *रामचंद्र के काज संवारे* अर्थात राम जी के जो कार्य बिगड़ गये थे उनको *हनुमान जी* ने सुधार दिया | क्या सुधारा ? उसका वर्णन इस चौपाई में मिलता है *लाय सजीवन लखन जियाये* इससे बड़ा भगवान श्रीराम का बिगड़ा हुआ कार्य क्या हो सकता था ? *लक्ष्मण जी* के प्राण संकट में आ गए थे और *हनुमान जी* ने उनको जीवनदान दिया | विचार कीजिए कि *हनुमान जी* ने भगवान श्री राम के कितने कार्य को बनाया ? कितने काम को सुधारा ?
*एक दृष्टि डालते हैं !*
लंका में रावण के साथ भयंकर युद्ध चल रहा था| शी राम की सेना के अजेय सेनापति के रूप में *लक्ष्मण जी* युद्ध कर रहे थे इतने में मेघनाथ की शक्ति मर्यादा रक्षण करने की लीला में *लक्ष्मण जी* उसकी शक्ति के प्रहार से स्वयं मूर्छित हो गये | राम जी को यह मार्मिक आघात सहना कठिन हो गया | क्योंकि बिना *लक्ष्मण* के जीवित रहे युद्ध की सारी योजना ही नहीं उद्देश्य भी निष्फल दिख रहा था | सब की आंखों में अंधेरा छा गया यदि *लक्ष्मण जी* जीवित नहीं होते तो सारे कार्य बिगड़ चुके थे |
*क्योंकि*
👉 *बिना भाई के अयोध्या लौटना मानसिक पारिवारिक सामाजिक सभी प्रकार की प्रतिष्ठाओं के विपरीत था |*
👉 *यदि श्री रामजी न लौटते तो भरत जी का जीवित रहना कठिन था |*
👉 *रावण के साथ युद्ध में विजय भी संदिग्ध हो गई थी |*
👉 *सेना का साहस व राम जी के कथन के प्रति विश्वास की नींव हिल चुकी थी |*
*क्योंकि*
राम जी ने अपनी सेना बल का भेद देते हुए विश्वास पूर्वक की घोषणा की थी कि:- *जग महुं सखा निशाचर जेते !* *लछिमन हनहिं निमिष महुं तेते !!*
अर्थात संसार के समस्त निशाचरों को अकेले *लक्ष्मण* क्षणभर में मार सकते हैं लेकिन अब वही *लक्ष्मण* एक निशाचर मेघनाथ की शक्ति प्रहार से मूर्छित हो चुके है | ऐसी स्थिति में जब काम बिगड़ा बिगड़ाया पड़ा था तो *लक्ष्मण जी* को स्वस्थ करने का असंभव कार्य *हनुमान जी* ने किया | पहले तो लंका के अभेद्य दुर्ग से सुषेण वैद्य को रात में ही उठाकर लाए फिर उनकी बताई गई असंभव सी औषधि भी निश्चित समय में लेकर लौट आए | इस प्रकार *हनुमान जी* ने भगवान श्री राम के कार्य को सुधारा |
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*संजीवनि*
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*संजीवनी* नाम की एक जड़ी का उल्लेख रामायण में ही नहीं पुराणों व अन्य संहिताओं में भी मिलता है | द्रोणगिरि नामक पर्वत पर यह बूटी पाई जाती थी | यह एक छुप जाति का पौधा था | जिसके किसलय रात्रि में स्वत: प्रकाशित होते थे | यह अत्यंत दिव्य औषधि है | इसके प्रयोग को भी संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता रहा है |मेघनाथ के पास विषाक्त अमोघ शक्ति तांत्रिक देविका अनुष्ठान के फल में मिली थी इसका प्रयोग एक ही बार हो सकता था जो कि प्राणघातक संकट समय जानकर प्रयोग में ली गई थी | युद्ध से लौटते समय संध्याकाल में इसका प्रहार किया गया था किंतु इसका प्रभाव सूर्य रश्मि के सहयोग से विशेष होता था इसलिए रातो रात ही संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था की जानी अनिवार्य थी | औषधि की अनुपलब्ध दूरी , असुरों के रात्रि में बलवान होने , औषधि की पहचान की बाधा व निशाचरों के छद्म आदि समस्त बाधाओं के कारण ऐसा संयोग असंभव था परंतु वह *हनुमान जी* ही थे जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया |
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*श्री रघुवीर हृरषि उर लाये*
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*तुलसीदास जी* शब्दों के विशेषज्ञ थे | प्रसंग के अनुसार संबोधन करना उनकी विशेषता थी | यहां पर *श्री रघुवीरर कह कर उन्होंने रघुनाथ जी का ऐश्वर्य बताने का प्रयास किया है | उन्होंने किस प्रकार भगवान श्री राम के अनेक नामों का वर्णन किया यह देखने वाली बात है | पहले लिखा :---
*राम काज करिबे को आतुर*
पुनः
*रामचंद्र के काज संवारे*
फिर लिखा
*श्री रघुवीर हरषि उर लाए*
उसके बाद लिख दिया
*रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई*
भिन्न-भिन्न संबोधन तुलसीदास जी की विद्वता का परिचायक है | *लक्ष्मण जी* क्योंकि मेघनाथ की शक्ति से मूर्छित हो गए थे व उन्हें *हनुमान जी* ने संजीवनी लाकर जिलाया इस प्रसंग में उन्हें केवल *लखन* शब्द से संबोधित किया गया व जी व श्री आदि किसी ऐश्वर्य परक अलंकार से संयुक्त नहीं किया गया| राम जी के लिए *श्री रघुवीर* कहकर यह दिखाया कि लक्ष्मण को जीवित देखकर अब युद्ध में उपराम नहीं होंगे ऐसा हुआ भी वही था कि युद्ध को प्रातः यथावत जारी ही नहीं रखा बल्कि उसी मेघनाथ के साथ *लक्ष्मण* को युद्ध के लिए भेजकर उसी मेघनाथ को मरवा दिया | यह भगवान का ऐश्वर्य इसीलिए तुलसीदास जी ने *श्री रघुवीर* लिखा |
*श्री* शब्द की युति विशेषता *श्री गुरु चरण सरोज* की व्याख्या में देखा जा सकता है वह वीर की व्याख्या *महावीर विक्रम बजरंगी* में की जा चुकी है |
*श्री रघुनाथ जी ने हर्षित होकर हृदय से लगा लिया | परंतु यहां एक प्रश्न उठता है हृदय से किसे लगा लिया ? हनुमान जी को या फिर लक्ष्मण जी को ?*
तुलसीदास जी बहुत ही चतुर लेखक हैं यहां पर उनका भाव अभय परक है दोनों भाव देखने का प्रयास करें :---
*👉 लक्ष्मण जी मूर्छा से जगे थे तो एकदम स्नेह उमड़ पड़ा अत: भाई लक्ष्मण को स्नेह से हृदय से लगा लिया !*
👉 *दूसरा भाव देखिए :*
*👉लक्ष्मण के सचेत होते ही हनुमान जी के अद्भुत अद्वितीय साहस से गदगद होकर श्री राम ने हनुमान जी को हृदय से लगा लिया !*
👉 *तीसरा भाव*
👉 *हनुमान जी ने ही लाय संजीवन लखन जियाये व श्री रघुवीर हरषि उर लाये अर्थात लक्ष्मण जी को जिलाकर श्री रघुवीर रामजी को हर्षातिरेक से हृदय से लगा लिया |*
अर्थात लक्ष्मण जी के लिए रामजी रुदन कर रहे थे इसलिए लक्ष्मण को जीवित करके प्रसन्नता से मानो रामजी को गले से लगा लिया |
*👉 एक अन्य भाव देखे :--*
*श्री रघुवीर* शब्द लक्ष्मण जी के लिए भी काम में लिया जा सकता है क्योंकि यह भी रघुकुल के वीर हैं व श्री युक्त भगवान बताकर संकेत किया कि *हनुमान जी* की सेवा भाव की परीक्षा कर उन्हें गले से लगा लिया |
यहां पर यह शंका करने पर कि *लक्ष्मण जी* तो मेघनाद से मूर्छित हो गए हैं | उत्तर है कि मेघनाथ और लक्ष्मण जी का कोई मुकाबला नहीं था वह तो लीला बस केवल खेल दिखा रहे थे इसी बहाने उसे प्राप्त दिव्यास्त्रों पर विजय व उनकी दैविक मर्यादाओं का संरक्षण भी उन्होंने कर दिखाया | यदि मेघनाथ बल या ऐश्वर्य में अधिक होता तो शक्ति लगने के बाद उसी वीर से पुनः द्वंद युद्ध में कुछ घबराहट होती परंतु पुनर्युद्ध में घबराहट मेघनाथ को रही तथा लक्ष्मण जी ने जिस क्षण चाहा उसे उसी समय चुनौती पूर्वक घोषणा कर दी कि *एहि पापिहिं मैं बहुत खेलावा* और तुरंत मार गिराया | इससे स्पष्ट है कि श्री लक्ष्मण जी भी *श्री रघुवीर* की उपाधि के योग्य है |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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