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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *पैंतीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*चौतीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई !*
*तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई !!*
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अब आगे :------
*सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा !*
*नारद सारद सहित अहीसा !!*
*यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते !*
*कवि कोविद कहि सकें कहाँ ते !!*
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ब्रह्मा जी ने प्रथम सृष्टि चार दिव्य ऋषियों के माध्यम से की , जिनके नाम सनक , सनंदन , सनातन एवं सनत कुमार हैं ! जिसमें से सनक जी सबसे बड़े थे और चारों सदैव साथ ही रहते थे इसलिए उनका नाम *सनकादिक ऋषि* पड़ गया | यह भगवान राम के परम भक्त हैं | भगवान के चरित्र लीला एवं गुणानुवाद सुनने के अत्यधिक रसिक हैं | यहां तक कि *गोस्वामी तुलसीदास जी* ने रामचरितमानस में कहा है :---
*आसा बसन व्यसन यह तिन्हहीं !*
*रघुपति चरित होंहिं तहँ सुन्हहीं !!*
*हनुमान जी* की लीला से युक्त रामचरित उनको विशेष प्रिय है | *हनुमान जी* की भक्ति सेवा भाव आदि पर वे रीझे ही रहते हैं |
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*ब्रह्मादि*
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*ब्रह्मादि* अर्थात ब्रह्मा आदि अर्थात ब्रह्मा विष्णु महेश , *सनकादिक* की तरह ही ब्रह्मादि से त्रिदेव मूर्तियों का व्यवहार समझाने के लिए *तुलसीदास जी* ने यहां *ब्रह्मादि* लिखा है |
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*मुनीसा*
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*मुनि + ईश* मुनियों के स्वामी अर्थात *ब्रह्मादि* तीनों देव या यूं कहिए मुनियों में श्रेष्ठ मुनि लोग | यहां *मुनीसा* पूर्व दोनों शब्दों के विशेषण के रूप में भी ग्रहण हो सकता है व स्वतंत्र भी | पूर्व प्रकार में ग्रहण करने से *ब्रह्मादि व सनकादि* मुनिश्रेष्ठ या मुनियों के स्वामी *ब्रह्मादि* तथा उपर अर्थ में अन्य जो भी श्रेष्ठ मुनिगण हैं वे सभी ग्रहण किए जा सकते हैं | *मुनीसा* शब्द के बाद अगली अर्धाली का प्रथम शब्द *नारद* होने से यह शब्द *नारद* की विशेषता या गुणवाचकता के रूप में लिया जा सकता है | अर्थात मुनियों में श्रेष्ठ *नारद* |
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*नारद*
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*नारद जी* ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं तथा देवर्षि के नाम से प्रसिद्ध है | ये देव योनि के ब्रह्मनिष्ठ ऋषि , बाल ब्रह्मचारी एवं निरंतर भ्रमण शील हैं | ये *राम मंत्र* के ऋषि हैं व *हनुमान जी* श्री राम मंत्र के प्रसिद्ध जापक है अतः दोनों अभीष्ट एक होने से पारस्परिक संबंध है |
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*सारद*
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*सारद* अर्थात सरस्वती जी | ब्रह्मा जी की पुत्री तथा वह विद्या बुद्धि वाणी आदि की अधिष्ठात्री देवी हैं | देवी स्वरूप में कुमारी कन्या शुक्लाम्बरधरा , वीणा धारणी के रूप में प्रतिष्ठित है | वाणी एवं बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनकी कृपा के बिना कुछ भी वर्णन करना पुनः दिव्य गुणों का वर्णन संभव भी कैसे हो सकता है ? अतः *श्री हनुमान जी* के गुणगान के प्रसंग में इनका उल्लेख *तुलसीदास जी महाराज* ने किया है |
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*अहीसा*
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*अहि + ईश* = अहीसा अर्थात सर्प पुनः *अहीसा* अर्थात सर्प रूप धारी ईश्वर शेषनाग |
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*यम*
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*यम* अर्थात मृत्यु के देवता , सूर्य के पुत्र , यमुना के भाई , काल के स्वरूप तथा दक्षिण दिशा के स्वामी |
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*कुबेर*
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*कुबेर* अर्थात धन के देवता या स्वर्ग पुरी के कोषाधिकारी |
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*दिगपाल*
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*दिगपाल* अर्थात दसों दिशाओं के स्वामी | दसों दिशाओं के देवताओं के नाम इस प्रकार हैं | *पूर्व* - इंद्र , *अग्नि कोण* - अग्नि , *दक्षिण* - यम , *नैऋत्य कोण* - निऋति , *पश्चिम* - वरुण , *वायव्य कोण* - वायु , *उत्तर* - कुबेर , *ईशान कोण* - शिव , *ऊपर* - ब्रह्मा , *नीचे* - शेषनाग |
*अब इन सबका भाव*
*श्री हनुमान जी* के महात्म्य कथन में जो भी वर्णन करने में दिव्य पुरुष हैं उन को वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है | यथा :- *सनकादिक* से *ब्रह्मादि* लोकों के दिव्य पुरुषों के द्वारा *हनुमान जी* का माहात्म्य कहना बताया गया है | *नारद एवं सारद* कहकर सभी लोकों में अव्याहतगति स्वभाव से ही भ्रमण शील व्यक्तियों के नाम कहकर या मध्य में रहने वाली दिव्य आत्माओं के द्वारा *हनुमान जी* का गुणानुवाद करने की बात *तुलसीदास जी* ने कही है | इसमें भी *नारद से पुरुष* एवं *सारद से स्त्री* जाति को कह दिया है | अधोलोकों पाताल आदि के लिए *शेष अर्थात अहीसा* का उल्लेख कर *ब्रह्म लोक से पाताल तक* के व्यक्तियों को *तुलसीदास जी महाराज* ने गिना दिया है जो कि *हनुमान जी* बल ऐश्वर्य का वर्णन कर रहे हैं | *यम* आदि देवताओं को *दिगपाल* के रूप में कहते हुए एक *दिगपाल* उत्तर दिशा का *कुबेर* और दूसरा दक्षिण दिशा का *यम* कहकर दिशाओं की विलोम स्थिति में आमने-सामने के सभी दिशाओं के अधिपतियों को अंतर्हित कर दिया है | *तुलसीदास जी* की लेखनी की दिव्यता ही है कि इन चार लाईनों में ही तीनों लोकों को समाहित कर दिया | *तुलसीदास जी* ने इन सब को कह कर यह बताने का प्रयास किया है कि जब यह लोग भी संपूर्ण गुणानुवाद नहीं कह सकते तो कवि वह पंडित *(कवि कोविद)* क्या कहेंगे ? क्योंकि *कवि या पंडित* तो *सरस्वती जी* की कृपा से ही कुछ कहने में समर्थ होते हैं | अर्थात *तुलसीदास जी महाराज* के कहने का भाव यह था कि तीनों लोक के चराचर प्राणी *हनुमान जी* की प्रशंसा एवं उनका गुणानुवाद कर रहे हैं |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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