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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *उनतालीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*अड़तीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*युग सहस्त्र योजन पर भानु !*
*लील्यो ताहि मधुर फल जानू !!*
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के अन्तर्गत :--
*युग सहस्र योजन पर भानू*
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अब आगे :-----
*लील्यो ताहि मधुर फल जानू*
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*लील्यो* अर्थात निगल लिया | यहां निगल लेने का अभिप्राय मुंह में डाल लेने से है | यद्यपि भगवान भूतभावन भोलेनाथ की लीला का रहस्य जानना किसी ऐसे जीव सामान्य के बस की बात नहीं है जिसके ऊपर भगवान की कृपा हो ना हुई हो , जिसे भगवान के प्रति श्रद्धा विश्वास है वह भगवान की किसी भी लीला पर एवं उनकी क्षमता पर संदेह नहीं करता | *लील्यो* शब्द का अर्थ उन व्यक्तियों के लिए तो और भी आश्चर्य प्रद होगा जो सूर्य तक पहुंचना एवं उसे ग्रहण करने की कल्पना करके ही थक चुके हो , परंतु यहां पर *गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज* का दर्शन देखते बनता है | श्री रामचरितमानस में लंकाकांड के वर्णन में *श्री लक्ष्मण जी* की मूर्छालीला में रावण उन्हें उठाकर नगर में ले जाना चाहता है व किसी भी प्रयास से उनकी देह टस से मस नहीं होती है | जिज्ञासा की सहज निवृत्ति में *गोस्वामी जी* लिखते हैं :--
*ब्रह्माण्ड भवन विराज जाके एक सिर जिमि रजकनी !*
*तेहि चह उठावन मूढ़ रावन जान नहिं त्रिभुवन धनी !"*
*जो सहस सीस अहीस महिधर :---*
अर्थात :- वे शेष भगवान के एक - एक सिर पर रजकणों की भाँति ब्रह्मांड विराजते हैं व ऐसे सहस्रशीर्ष भगवान स्वयं लीला कर रहे हैं और उनको मूर्ख रावण उठाना चाहता है , क्योंकि वह इस रहस्य को नहीं जानता है परंतु यहीं पर *हनुमान जी* आए और बिना कोई अतिरिक्त प्रयास किए सहज भाव से लक्ष्मण जी को उठा लिया | विचार करने वाली बात है *लक्ष्मण जी* के एक एक सिर पर कोटि कोटि ब्रह्मांड है | *लक्ष्मण* को *हनुमान जी* ने सहज भाव से कैसे उठा लिया ?? यहां पर यही कहना चाहूंगा कि हमें सबसे पहले *हनुमान जी* के स्वरूप को जानना होगा |
*हनुमान जी क्या है ?*
*हनुमान जी साक्षात शिव है*
*लक्ष्मण जी कौन है ?*
*लक्ष्मण जी शेषावतार हैं*
जिस शेषनाग को *भगवान शिव* अपने गले में धारण करके हमेशा उसका भार वाहन करते हैं उन्हें *शेषावतार लक्ष्मण* को बिना अतिरिक्त प्रयास किए उठा लेने में कैसा संदेह होना चाहिए ?? यदि *हनुमान जी* शेषावतार को (लीलावश) उठा सकते हैं तो सूर्य को निगलना कौन सी बड़ी बात है |
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*मधुर फल जानू*
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*हनुमान जी महाराज* ने उदय होते *सूर्य* को मीठा फल समझकर ऐसा कार्य किया | बाल सूर्य अरुण पके फल के रंग से मिलता है | लीला में ही वानर वेश में माँ ने फलों की पहचान बताई थी कि बेटा वृक्षों के लाल फल पक्के होने के कारण मधुर होते हैं तथा हरे फल कच्चे व खट्टे होते हैं | वृक्षों की शिखर स्थित टहनियों में से क्षितिज का उदित बाल सूर्य लाल-लाल फल की भाँति लग रहा था अतः बस सुपक्व मीठा फल जानकर दौड़ चले लेने के लिए |
*लील्यो* व *जानू* में भाव श्लेष भी है | यथा :-- स्वयं तो जानते थे कि फल नहीं सूर्यमंडल है *लील्यो* अर्थात *लीला कर डाली* | दूसरा मीठा फल जानकर निगल लिया | दूसरों ने ऐसे ही जाना होगा कि *हनुमान* ने मीठा फल समझ लिया | क्या सूर्य को निगलने वाले *हनुमान जी* को इतनी समझ नहीं थी कि यह क्या है ? यहां माधुर्य भाव श्लेष है वास्तव में तो वे सब कुछ जानते ही थे किंतु दिव्य ऐश्वर्य एवं माधुर्य श्लेषात्मक लीला का ही यह एक दृश्य था | यहाँ पर *एक अन्य सरल भाव* में यह समझना चाहिए कि *लील्यो ताहि* अर्थात उसे निगल लिया क्योंकि *मधुर फल जानू* अर्थात जानते थे कि इसका परिणाम फल मधुर होगा | भगवान की प्रत्येक दिव्य लीला का फल या परिणाम कितना मधुर होता है यह तो भक्त ही अनुभव कर सकते हैं | यहां पर कुछ लोगों को यह *शंका* हो सकती है या मन में *जिज्ञासा* हो सकती है कि *हनुमान जी* यदि भगवान शिव के अवतार थे तो क्या सूर्य भगवान नहीं थे ? इसके समाधान में यही कहना चाहूंगा कि सूर्य भगवान अवश्य है किंतु देवताओं के सभी स्वरूपों को जानने वाले जानते हैं कि *हनुमान जी* ने सूर्य मंडल को निगला था सूर्य के देवता स्वरूप को नहीं | सूर्य मंडल , सूर्य लोक , सूर्य देव स्वरूप आदि भिन्न-भिन्न पदार्थ ( किंतु पारस्परिक अभिन्नत्व को धारण किए ) हैं | जैसे जीव देह आदि का संबंध है | यह विषय अत्यंत गंभीर है अतः प्रसंग बस यहां इतना ही समझना पर्याप्त होगा |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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