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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *चालीसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*उनतालीसवें भाग* में आपने पढ़ा :
*युग सहस्त्र योजन पर भानु !*
*लील्यो ताहि मधुर फल जानू !!*
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के अन्तर्गत :--
*लील्यो ताहि मधुर फल जानू*
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अब आगे :--
*प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहीं !*
*जलधि लांघि गये अचरज नाहीं !!*
*दुर्गम काज जगत के जेते !*
*सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते !!*
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*प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही !*
*जलधि लांघि गए अचरज नाही !!*
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भगवान की *मुद्रिका* मुख में रखकर समुद्र को लांघ गए तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है | यद्यपि सौ योजन के समुद्र को कूदकर पार कर जाना सामान्य बात नहीं बल्कि आश्चर्य का विषय है किंतु अगर ऊपर के भावों को देखा जाय जहां सूर्य को निगल जाने की बात कहीं गई है तो उसको पढ़ लेने के बाद समुद्र को लाँघ जाना कोई आश्चर्य का विषय नहीं रह जाता है | *प्रभु की मुद्रिका* है अर्थात *मुद्रिका* भी प्रभु ही है क्योंकि भगवान के आवरण भी लौकिक नहीं होते हैं | भगवान के मुकुट , कुंडल , धनुष आदि सभी वस्तुएं भी भगवान के अतिरिक्त किसी अन्य तत्व की नहीं होती हैं सब कुछ विवर्त्त मात्र है व वास्तव में निरावरण ब्रह्म ही है | *मुद्रिका* भी भगवान की है था वह भी प्रभु ही है | इससे *प्रभु मुद्रिका* कहा | *प्रभु मुद्रिका* अर्थात प्रभु जी साथ में है | लीला अवतार में भगवान ने साकेत तो छोड़ा परंतु शेष विग्रह यथास्थिति हनुमान जी के साथ है | भगवान का मनन चिंतन चार स्वरूपों ( नाम रूप लीला धाम ) में किया जाता है जिसमें से नाम *मुख* से लिया जाता है | कहा भी गया है कि :- *मुख में हो राम नाम* और *मुद्रिका* पर प्रभु राम का नाम अंकित है जैसा कि तुलसीदास जी बताते हैं :--
*तब देखी मुद्रिका मनोहर !*
*राम नाम अंकित अति सुंदर !!*
तो जब *मुद्रिका* पर भगवान का नाम अंकित है और नाम का स्थान मुख में होता है तो आखिर वह मुद्रिका *हनुमान जी* और कहां रखते ? इसीलिए राम नाम को मुख में धारण कर लिया रूप का ध्यान करते हुए समुद्र को लांघना प्रारंभ कर दिया |
*मुद्रिका मुख में रखने के लिए कुछ अन्य भाव भी प्रस्तुत है | यथा :--*
*👉 गोपनीयता की रक्षा के लिए मुख में मुद्रिका को रख लिया |*
*👉 गोपनीयता की रक्षा के लिए यही (मुख) स्थान सबसे उपयुक्त है |*
*👉 मुद्रिका में भगवान का नाम अंकित था इसीलिए उसको मुख में रखा |*
*👉 हाथ में रखने से हाथ रुक जाता अतः उड़ने में सुविधा ना होती इसीलिए मुद्रिका को मुंह में रखकर चल पड़े |*
मुख में *मुद्रिका* रखने का यह भाव भी हो सकता है कि जब तक भगवान का कार्य नहीं होता है तब तक ना कुछ खाना है , ना जल पीना है , ना भाषण देना है क्योंकि *हनुमान जी* ने घोषणा कर दी थी कि *राम काज कि नहीं बिना मोहि कहां विश्राम* इसलिए यदि *हनुमान जी* भगवान राम के नाम से उल्लेखित मुद्रिका को मुख में रखकर समुद्र को लांघने में कोई अचरज नहीं होना चाहिए |
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*दुर्गम काज जगत के जेते !*
*सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते !!*
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*हे हनुमान जी* संसार के जितने भी कार्य दुर्गम है उतना ही तुम्हारा अनुग्रह सुगम है | क्योंकि हे *हनुमान जी* आप स्वयं आशुतोष अवढरदानी है भोले तो इतने हैं कि भक्त कुछ भी मांग लेता है तो पा जाता है , कृपालु इतने हैं कि शीघ्र ही अनुग्रह कर देते हैं | संसार के जितने कार्य दुर्गम हैं उतने ही सुगम अर्थात दुर्गम आपकी अनुग्रह प्राप्ति है | संसार के जितने कठिन , कठिनतर व कठिनतम कार्य होते हैं आपके अनुग्रह से उतने - उतने कमश: सुगम अर्थात सरल , सरलतर व सरलतम होते जाते हैं | जितने भी दुर्गम कार्य हैं वह सभी आपकी कृपा से सुगम हो जाते हैं | आपकी कृपा अनुग्रह के बाद कोई भी कार्य कठिन नहीं रह जाता है |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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