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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *बासठवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*इकसठवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*तुलसीदास सदा हरि चेरा !*
*कीजै नाथ हृदय महं डेरा !!*
*××××××××××××××××××*
अब आगे :--
*पवन तनय संकट हरण मंगल मूरति रुप !*
*राम लखन सीता सहित हृदय बसहुँ सुरभूप !!*
*×××××××××××××××××××××××××××××*
के अन्तर्गत :--
*पवन तनय संकट हरण*
*××××××××××××××××*
*पवन तनय*
*××××××××*
*पवन* = वायु , हवा , शुद्धता , शोधक !
*तनय* = पुत्र !
*तन*= शरीर !
*य* = ज = जन्म लेने वाला !
*तन + ज*= देह से उत्पन्न अर्थात पुत्र !
पुत्र के समानार्थक शब्द और भी बहुत है पर यहां पर *तनय* विशेष अभिप्राय से *तुलसीदास जी महाराज* ने लिखा है | इसके पूर्व जहां *पवन* का संबंध दिया गया है वहां *बल* की विशेषता भी दर्शाई गई है | यथा :--
*×××××××{××××××××××*
*अंजनी पुत्र पवनसुत नामा !*
*××××××××××××××××××*
एवं तुरंत बाद लिखा
*×××××××××××××××*
*महावीर विक्रम बजरंगी !*
*×××××××××××××××*
इस प्रकार *पवनसुत नामा* कह कर तुरंत *महावीर* विशेषण दिया क्योंकि *बल एवं विक्रम* का आधार निमित्त *पवन* ही होता है | *पवन तनय* से अभिप्राय है कि आप परम पवित्र हैं *पवन का पुत्र* पावन होता है | *पवन का पुत्र* पावक भी है | अग्नि का पवित्र करता होने से ही पावक नाम है यह भी *पवन* ( वायु ) से ही उत्पन्न होता है | यथा :- *वायोरग्नि:* | स्वर्ण को अग्नि का संयोग ही पावन करता है | *हनुमान जी* तो पावनता के मूर्तिमान रूप हैं | इसीलिए स्वयं पावन का पावक क्या करें ! अत: अग्नि *हनुमान जी* को जला नहीं सकता |
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*संकट हरण*
*××××××××*
*संकट* के निवृत्ति के संबंध में *हनुमान चालीसा* में तीन बार उल्लेख किया गया है व तीनों बार पुनरावृत्तियों में भिन्न भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न परिणाम बताने के लिए ऐसा किया गया है | केवल सामान्य नाम मात्र *हनुमान* प्रथम बार कह कर बताया कि *मन क्रम वचन* से *हनुमान* का ध्यान करने से *संकट* छूट जाता है | यथा :--
*×××××××××××××××××××*
*संकट से हनुमान छुड़ावैं !*
*मन क्रम वचन ध्यान जो लावैं !!*
*××××××××××××××××××××*
यहां छुड़ाने की बात ध्यान देने की है | छुड़ाना तो तभी होता है जब *संकट* से कोई जूझ रहा हो | दो व्यक्ति लड़ रहे हों एक प्रबल है तो उससे निर्बल की सहायता करके या दोनों को पकड़ कर अलग कर देना छुड़ाना होता है | यदि पकड़ा ही नहीं गया तो छुड़ाना क्या हुआ ? यहां नाम *हनुमान* मात्र दिया दूसरी बार कहा :--
*×××××××××××××××××××*
*संकट हटे मिटे सब पीरा !*
*जो सुमिरे हनुमत बलबीरा !!*
*×××××××××××××××××××*
यहां *संकट* से छुड़ाना नहीं कहा क्योंकि *संकट* से युद्ध करना ही नहीं पड़ा वह तो स्वमेव हट गया | यहां *हनुमान* नाम मात्र नहीं देकर *हनुमत बलबीरा* कहा गया | *बलबीरा* विशेषण से छुड़ाना नहीं पड़ा | *संकट* स्वयं ही हट गया | हट कर कहां गया ? कहीं भी गायब हो गया | सामने आने का साहस नहीं आता सामने से हट गया | तीसरी बार *संकट* का उल्लेख करते हुए *तुलसीदास जी* अब लिख रहे हैं *पवन तनय संकट हरण* अर्थात *पवन तनय* की विशेषता से *संकट* कहीं छद्म रूप धारण कर छिप नहीं सकता | भाग कर कहां जाएगा , *हरण* कर लिया जाएगा , अर्थात *संकट* अपहृत हो जाएगा | जिससे बस में हो जाएगा | व पुनः बिना छूटे बाधक कैसे हो सकता है ? *हरण* करने में *पवन तनय* लिखा है क्योंकि सबकी गति *पवन* से ही है *पवन तनय* के आगे भागने की क्षमता किसमें है अतः *पवन तनय संकट हरण* में कहा गया कि *हनुमान जी* यदि कृपा करें तो *संकट हरण* ही हो जाएगा *संकट* से सदा के लिए झंझट ही मिट जाएगा |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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