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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *तिरसठवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*बासठवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*पवन तनय संकट हरण मंगल मूरति रुप !*
*राम लखन सीता सहित हृदय बसहुँ सुरभूप !!*
*×××××××××××××××××××××××××××××*
के अन्तर्गत :-
*पवन तनय संकट हरण*
*××××××××××××××××*
अब आगे :---
*मंगल मूरति रुप*
*×××××××××××*
*पवन तनय* कह कर अब *मंगलमूर्ति* लिख रहे हैं *गोस्वामी जी* ! क्योंकि *पवन* के ना तो रूप है ना कि उनकी *मूर्ति* है | *मूर्ति* होती तो रूप भी होता | *पवन तनय* से कोई यह न समझे कि आप भी आकृति से हीन निराकार है | *मंगल मूर्ति* कहने का अभिप्राय है कि आपका स्वरूप मांगलिक शुभद है | यह कहने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि *हनुमान जी* शंकर जी के वानरावतार | वानर योनि का स्वरूप दर्शन भयंकर भयप्रद व सपने में भी अनिष्ट का सूचक होता है | *हनुमान जी* अपनी अभिमान रहित आदर्श वृत्ति से भक्तों का मार्गदर्शन करने के लिए स्वयं के स्वरूप को वानर योनि के निमित्त हीन मानते हैं *रामचरितमानस* में *हनुमान जी* इसी भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं :-
*××××××××××××××××××*
*कहहुँ कवन मैं परम कुलीना !*
*कपि चंचल सबहीं विधि हीना !!*
*×××××××××××××××××××*
और कहते हैं :-
*×××××××××=×××××××*
*प्रात लेई जो नाम हमारा !*
*तेहि दिन ताहि न मिलहिं अहारा !!*
*×××××××××××××××××××××*
इससे कोई यह न समझे कि *हनुमान जी* का नाम या स्वरूप अमांगलिक है | अतः *तुलसीदास जी* ने यहां स्पष्ट लिख दिया *मंगल मूर्ति रुप* अर्थात आप की *मूर्ति* का रूप *मंगल* पर है | वेष तो आपने अमांगलिक इसलिए धारण किया है कि उन अमांगलिक रूपों (वानरों) के दर्शन भी आपकी भावना उस रूप में करने से मांगलिक हो जाएँ | यह देहरूप तो आपने वेष धारण किया है जिसका उद्देश्य विशेष तो हो सकता है किंतु उससे आपका दर्शन का शुभ प्रभाव समाप्त नहीं हो सकता उल्टा वह भी आदरणीय हो जाता है | जैसा कि कहा है :--
*×××××××××××××××××××*
*कियेउ कुवेसु साधु सनमानू !*
*जिमि जग जामवंत हनुमानू !!*
*×××××××××××××××××××*
शिव रूप में भी आप की यही स्थिति है | यथा :--
*××××××××××××××××××*
*साजु अमंगल मंगल राशी !*
*××××××××××××××××××*
भगवान के राम|वतार के वचन को प्रमाणित करने के लिए चाहे आप ने वानर रूप धरा हो पर सामान्य जन को दर्शन देते समय विप्रादि *मंगल रूप* धारण करते हैं व भगवान के सम्मुख अपना वानर रूप धारण करके ही प्रस्तुत होते हैं | वहां वानर रूप से भी अमंगल नहीं होने से भक्तों को मार्गदर्शन करते हैं कि व्यक्ति के रंग रूप वेश नहीं उसके सद्भाव व उनके गुण ही प्रधान होते हैं | यदि प्राकृतिक लक्षण प्रधान स्वरूप प्रभाव अनिष्ट सूचक होता भी हो तो भी भगवान , भक्त , सज्जन आदि के संग से वे मांगलिक हो जाते हैं | जो जो अशुभ या अपशगुन शकुन , रूप , स्थान , भेष आदि कुछ भी होते हैं वे सभी भगवान के संग शुभद एवं मांगलिक हो जाते हैं | बहुत ही सुंदर उदाहरण *गोस्वामी जी* ने *मानस* में दिया है :-
*जे जे वर के दोष बखाने !*
*ते सब मैं पहिं अनुमाने !!*
*जौ विवाह संकर सन होई !*
*दोष उगुन सम कह सब कोई !!*
*×××××××××××××××××××*
*मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार !*
*जनु सब सोंचे होन हित भये सगुन एक बार !!*
*××××××××××××××××××××××××××××*
अमंगल रूप दण्डक वन भी *मंगल रूप* हो गया जब भगवान वहां पधारे :-
*××××××{×××××××××××××××*
*मंगल रूप भयो बन तब ते !*
*कीन्ह निवास रमापति जब ते !!*
*××××××××××××××××××××××*
जब यह सब *मंगल रूप* हो गए तो *हनुमान जी* का भी रूप चाहे अमांगलिक दर्शन वानर का हो पर *मंगल की मूरति* ही है | इसमें भी यही निमित्त है | इसे ही स्पष्ट करने हेतु तुरंत कहते हैं कि आपके हृदय में *सुरभूप* श्री राम जी लक्ष्मण व सीता सहित बसते हैं |
*मंगल मूरति रुप*
*राम लखन सीता सहित हृदय बसहुँ सुर भूप !!*
*मंगल मूरति रूप* होने में सभी निमित्त बताए हैं | यथा :-
*रवि पावक सुरसर की नाईं* सामर्थ्य , संकट हरण !
भगवान का संग *राम लखन सीता सहित*
औरों के सामने तो :- *विप्र रुप धरि बचन सुनाए ! सुनत बिभीषण उठि तहँ आये !!*
और
*राम बिरहसागर महं भरत मगन मन होत !*
*विप्र रूप धरि पवनसुत आइ गयो जनु पोत !!*
ब्राह्मण का रूप दिखा रहे थे पर भगवान राम व भगवती सीता के सामने वानर रूप धारण कर इस स्वरूप को मांगलिक सिद्ध कर दिया है | यथा :- सीता जी के समक्ष :--
*××××××××××××××××××××*
*तब हनुमंत निकट चलि गयऊ !*
*फिरि बैठी मन संसय भयऊ !!*
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*नर वानरहि संग कहु कैसें !*
*कही कथा भइ संगति जैसे !!*
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*सुनि सुत कपि सब तुम्हहिं समाना !*
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और रामजी के सामने
*×××××××××××××××××××××××*
*अस कहि परेउ चरन लपटाई !*
*निज तन प्रगटि प्रीति उर छाई !!*
*×××××××××××××××××××××*
*सुनु कपि जियं मानसि जनि ऊना !*
*तैं मम प्रिय लक्षिमन ते दूना !!*
*××××××××××××××××××××××*
इस प्रकार *जय कपीस* का प्रारंभ में संबोधन देकर अब उपसंहार में उसी रूप को *मंगल मूरति रूप* कहकर वानर के अशुभ रूप की शंका का समाधान *गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज* कर रहे हैं |
*एक अन्य भाव*
*मंगल* का अर्थ जहां शुभ से है वहीं अग्नि रूप *मंगल ग्रह* से भी है | *मंगल ग्रह* को अंगारक भी कहते हैं | अग्नि जहां तप , तेज , ओज , जठर रूप , लौकिक व दिव्य रूप में रक्षक है वहीं प्रलयाग्नि , वज्र , तड़ित , वाडवा आदि के रूप में भयंकर संहारक भी है | इसी प्रकार *हनुमान जी* भी *साधु संत के रखवारे* व *असुर निकंदन* है अतः *मंगल रूप की मूरति* है | *पवन तनय* से *संकट हरण* हैं व राम लखन सीता सहित* होने से *मंगल मूरति* हैं |
*शेष अगले भाग में :---*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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