*हमारा देश भारत पर्व एवं त्योहारों का देश है , यहां वर्षपर्यंत पर्व एवं त्योहार मनाए जाते रहते हैं | सबसे विशेष बात यह हैं कि सनातन धर्म के प्रत्येक त्यौहार एवं पर्वों में मानवता के लिए एक दिव्य संदेश छुपा होता है | इन्हीं त्योहारों में प्रमुख है रंगों का त्योहार होली | होली के दिन अनेक प्रकार के रंग एक में मिश्रित हो जाते हैं जो कि अनेकता में एकता का दिव्य संदेश देते है | होली के एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद अपने दैत्यकुल परंपरा के विपरीत जाकर के भगवान श्री हरि का नाम स्मरण करने लगे | तब उस बालक को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अनेकानेक उपाय किये , परंतु भक्त प्रहलाद ईश्वर के प्रति विश्वास की डोर को पकड़े रहा और उसका बाल भी बांका ना हुआ | हिरणाकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए उसने प्रहलाद को अपनी गोदी में बिठा कर के उस बालक को जलाने का प्रयास किया , परंतु परिणाम इसके विपरीत हुआ | प्रहलाद तो बच गए परंतु बुआ होलिका जल गई | तब से आज तक होली के एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा मनाई जाती रही है | होलिका दहन करने के पीछे जो रहस्य छुपा है उस पर ध्यान देना परम आवश्यक है | होलिका नकारात्मकता का प्रतीक है और प्रहलाद दृढ़ विश्वास का , यदि मनुष्य में किसी भी कार्य के प्रति दृढ़ विश्वास है तो नकारात्मकता स्वयं जलकर भस्म हो जाती है | अनेकों प्रकार की आधि - व्याधियां एवं रुकावटें भी व्यक्ति का मार्ग नहीं रोक पाती | जिस प्रकार प्रहलाद को भगवान श्रीहरि के चरण कमलों में अटूट विश्वास था उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य यदि श्रद्धा एवं विश्वास के साथ कोई भी कार्य करें दो होलिका रूपी नकारात्मकता उसे ना तो रोक सकती है और ना जला सकती है , और जिसका विश्वास डगमगा जाता है वही नकारात्मकता की होलिका में दहन हो जाता है | इसलिए प्रत्येक मनुष्य को कोई भी कार्य सकारात्मकता के साथ करते हुए पूर्ण विश्वास बनाए रखना चाहिए तभी वह प्रहलाद की भाँति सफल हो सकता है |*
*आज हमारे देश के लगभग प्रत्येक गांव में होलिका दहन की परंपरा मनाई जाएगी , परंतु आज हम कुछेक लकड़ियां इकट्ठा करके उनको जलाने तक ही सीमित ही रह गए हैं | होलिका के वास्तविक रहस्य एवं तथ्यों को ना हम जानते हैं और ना ही जानना चाहते हैं , यही कारण है कि आज नकारात्मकता रूपी होलिका प्रायः सभी को निरंतर दग्ध कर रही है | आज देश का जो परिवेश दिखाई पड़ रहा है उसमें नकारात्मकता अधिक प्रभावी दिख रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" होलिका दहन करके होली मनाने वाले सभी सनातन धर्मावलंबियों से यही कहना चाहूंगा कि होलिका दहन करने का अर्थ तभी पूर्ण हो सकता है जब अपने जीवन की संपूर्ण नकारात्मकता को निकाल कर बाहर कर दिया जाए और यह तभी संभव है जब मनुष्य प्रहलाद की भांति अपने लक्ष्य के प्रति अटूट श्रद्धा / विश्वास बनाए रखेगा अन्यथा किंचित लपटों से ही मनुष्य के विचार डगमगाने लगते हैं और वह सकारात्मकता को स्पर्श भी नहीं कर पाता है | दिव्य होलिकोत्सव के एक दिन पहले जब होलिका दहन करने जायं तो आपसी वैमनस्यता , कटुता एवं नकारात्मकता का दहन भी करने का प्रयास करें तभी होली मनाना सार्थक कहा जा सकता है अन्यथा यह मात्र दिखावा ही कहा जाएगा | सनातन धर्म इतना दिव्य है कि इसके प्रत्येक त्योहार एक दिव्य संदेश प्रस्तुत करते हैं परंतु हम उन संदेशों को ना तो समझना चाहते हैं ना ही उनका पालन करना चाहते हैं | यही कारण है कि आज सनातन धर्म के अनुयायी अपने पथ से भ्रष्ट होते जा रहे हैं |*
*होली के रंग में रंगने के पहले जीवन के समस्त विकारों कुविचारों एवं कुसंस्कारों का दहन करने के बाद जब हम होली मनाएंगे तो मुखमंडल के साथ-साथ जीवन भी दिव्य अलौकिक प्रकाश से प्रकाशित हो जाएगा |*