*भारत देश अपनी महानता , पवित्रता , सहृदयता एवं अपनी सभ्यता / संस्कृति के लिए संपूर्ण विश्व में जाना जाता रहा है | लोक मर्यादा का पालन करके ही हमारे महापुरुषों ने भारतीय सभ्यता की नींव रखी थी | मानव जीवन में अनेक क्रियाकलापों के साथ लज्जा एक प्रमुख स्थान रखती है लोक लज्जा एक ऐसा शब्द माना जाता था जिससे प्रत्येक व्यक्ति भयभीत होकर के कोई ऐसा कृत्य नहीं करता था जिससे कि उसकी समाज में हंसी उड़ाई जाय | भारतीय पहनावा , आहार - विहार इतना व्यवस्थित था कि मनुष्य को जल्दी कोई रोग नहीं होता था | इसके साथ ही विद्यालयों में पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थी में संस्कार आरोपित किए जाते थे | उन संस्कारों को ग्रहण करके अपनी विद्या पूर्ण कर जब विद्यार्थी समाज में स्थापित होता था तो वह समाज को एक नई दिशा प्रदान करता था | आजकल की भांति पूर्व काल में टेलीविजन एवं उसने दिखाने जाने वाला छिछोरा पन एवं अश्लीलता नहीं थी | नौनिहाल बच्चों को घर के बुजुर्गों के द्वारा देश भक्ति / ईश्वर भक्ति की कथाएं कहानियों के माध्यम से सुनाई जाती थी और साथ ही उनसे यह भी कहा जाता था कि तुमको इसी चरित्र की तरह बनने का प्रयास करना है , इन कहानियों का बाल सुलभ मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता था | कन्याओं को लाज शर्म की गुड़िया कहा जाता था | इन्हीं संस्कारों को आत्मसात करके भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता समस्त विश्व में प्रसारित हुई और भारत को विश्व गुरु कहा जाने लगा | परंतु धीरे-धीरे समय परिवर्तित होता गया और आज आधुनिकता की भीड़ में भारतीयता लुप्त होती दिखाई पड़ रही है |*
*आज के वर्तमान युग में किसी को भी लोकलज्जा या समाज का भय प्रतीत ही नहीं होता है | मनुष्य के क्रियाकलाप समाज एवं संस्कार के विपरीत होते चले जा रहे हैं | सबसे पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के केंद्र बिंदु रहे गुरुकुल विद्यालयों को नष्ट करके हमें छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया | हमारे पूर्वजों ने मुगलों व अंग्रेजों से जो कुछ बचा कर रखा था उसे अब हमारे द्वारा नष्ट किया जा रहा है | आज समाज में फैले हुए टेलीविजन के रोग एवं उसमें दिखाई जा रही अश्लीलता हमारे संस्कारों को निगलती चली जा रही है | बच्चों को सुनाई जाने वीली संस्कारपरक कहानियों का स्थान आज मोबाईल ने ले लिया है | अनेक बुद्धिजीवी इस पर चिंतन भी करते हैं और चिंतित होकर के अनायास उनके मुंह से यह प्रश्न निकल जाता है कि आखिर हमारी सभ्यता संस्कृति को कैसे बचाया जा सकता है | उन सभी बुद्धिजीवियों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना ही कहना चाहता हूं कि इस सभ्यता एवं संस्कृति को बचाने के लिए कहीं से कोई दूसरा नहीं आएगा इसके लिए स्वयं ही प्रयास करना होगा और इसकी नींव अपने परिवार से डालनी होगी | आज हमारी बच्चियां कैसे वस्त्र पहन रही हैं इस पर ध्यान देना होगा | दूसरों के बच्चों के ऊपर टिप्पणी करने वाले अपने बच्चों के रहन सहन , उनके पहनावे पर यदि ध्यान देने लगे तो शायद इससे कुछ बचाव किया जा सकता है | परंतु आज समाज में उपदेश देने वालों की संख्या कुछ ज्यादा ही है और उपदेशों का पालन करने वाले कहीं भी दिखाई नहीं पड़ते | कोरे भाषण या संदेश लिख देने मात्र से सभ्यता एवं संस्कृति नहीं बचने वाली है इसके लिए सर्वप्रथम मनुष्य को स्वयं से शुरुआत करनी होगी , अन्यथा वह दिन दूर नहीं है जब पाश्चात्य संस्कृति हमारे भारतीय संस्कृति को मूल रूप से नष्ट कर देगी |*
*हमारे संस्कार हमारी , सभ्यता एवं संस्कृति कहीं गई नहीं है बस हमने उसे देखना बंद कर दिया है , उसके विषय में सोचना बंद कर दिया है | जिस दिन हम उस दिशा में पुनः विचार करने लगेंगे भारतीय संस्कृति पुनर्स्थापित हो जाएगी |*