*इस संपूर्ण सृष्टि की रचना पारब्रह्म परमेश्वर ने अपनी इच्छा मात्र से कर दिया | इस सृष्टि का मूल वह परमात्मा ही है | प्रत्येक मनुष्य को मूल तत्व का सदैव ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यदि मूल को अनदेखा कर दिया जाए तो जीवन सुचारू रूप से नहीं चल सकता | जिस प्रकार इस सृष्टि का मूल परमात्मा है उसी प्रकार मनुष्य के मूल के विषय में भी विचार करना चाहिए | मनुष्य का शरीर एक अलौकिक संरचना है , जब जीव मां के गर्भ में आता है तो नौ महीने तक उसको मां के उदर में नाभि नली के माध्यम से आहार मिलता रहता है | मां के उदर में शरीर संरचना की प्रक्रिया में जो सबसे पहला अंग बनता है उसे ही नाभि कहा जाता है , इसी नाभि से बच्चा मां के गर्भ से जुड़ा रहता है और उसके बाद उसके शरीर के अन्य अंगों की रचना प्रारंभ होती है | कहने का तात्पर्य है कि जीवन का उद्गम स्रोत नाभि है इसके बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं है | नाभि है तो जीवन है क्योंकि जीवन की शुरुआत नाभि से ही हुई है | यह कहा जा सकता है कि मानव जीवन का मूल , मनुष्य शरीर का मूल नाभि ही है क्योंकि मां के गर्भ में बच्चे को जो जीवन मिलता है , उसे जो भी संसाधन मिलते हैं वह गर्भनाल के द्वारा ही मिलते हैं , इसलिए जीवन का मूल नाभि को कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | प्रत्येक मनुष्य को अपने मूल का ध्यान अवश्य रखना चाहिए परंतु इस संसार में आने के बाद मनुष्य अपने शरीर के मूल नाभि केंद्र को विस्मृत करके अपने चेहरे को चमकाने में व्यस्त हो जाता है और उसके इस उपेक्षा पूर्ण व्यवहार से नाभि के माध्यम से मनुष्य को अनेकों प्रकार के रोग घेरने लगते हैं | जीवन का मूल नाभि एवं सृष्टि के मूल परमात्मा को जिसने भी बराबर याद रखा है वह जीवन में कभी भी असफल नहीं हो सकता | जीवन के उद्गम स्रोत को कभी भूलना नहीं चाहिए क्योंकि यदि उद्गम स्रोत ना होता तो शायद हमारा जीवन भी नहीं होता | जीवन की सत्यता को समझ कर जीवन यापन करने वाले मनुष्य महापुरुषों की श्रेणी में गिने जाते हैं |*
*आज हम जिस आधुनिक युग में जीवन यापन कर रहे हैं यहां का मनुष्य इतना विकसित हो गया है कि वह अपने मूल को बिल्कुल ही भूल चुका है | सुंदर मानव जीवन को प्राप्त करके अनेकों प्रकार के आहार विहार करने वाला मनुष्य सृष्टि के मूल परमात्मा को धन्यवाद भी नहीं देना चाहता जिसने इतनी सुंदर सृष्टि की रचना करके मनुष्य को सुखद एवं मनोरम वातावरण प्रदान किया | परमात्मा की बात तो जाने ही दीजिए मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि लोग अपने जीवन के उद्गम स्रोत अर्थात अपने माता पिता की भी उपेक्षा कर रहे हैं वह शायद यह भूल जाते हैं कि यदि माता-पिता ना होते तो उनको यह जीवन मिल पाना संभव नहीं था | अपने उद्गम स्रोत माता पिता को भूलकर उनकी उपेक्षा करके या उनको तिरस्कृत कर के जो लोग प्रसन्न हो रहे हैं और यह समझ रहे हैं कि अब हमारा जीवन सुखमय बीतेगा वे जागती हुई आंखों से सपने देख रहे हैं क्योंकि माता-पिता की गई उपेक्षा मनुष्य के द्वारा लिखा हुआ वह निबंध होता है जिसे उनकी संतान ने उनको पढ़कर सुनाती हैं | कहने का तात्पर्य है कि जो अपने मूल को उपेक्षित करके सुखी जीवन जीने की अपेक्षा करता है उसकी संतान उसके साथ उससे भी बदतर व्यवहार करती हैं जो उन्होंने अपने माता-पिता के साथ किया होता है | जिस प्रकार किसी वृक्ष की जड़ सूख जाने पर विशालकाय वृक्ष धराशायी हो जाता है उसी प्रकार सृष्टि के मूल परमात्मा एवं जीवन के मूल उद्गम स्रोत माता पिता उपेक्षित हो जाने पर मानव जीवन भी रंगहीन एवं तेजहीन हो जाता है | मां की गर्भनाल से जुड़कर जीवन पाने वाली संतान जब इस पृथ्वी पर आती है तो अपनी उसी माता को एक निश्चित समय आने पर उपेक्षित करने लगता है जो कि अनुचित कार्य कहा जा सकता है | प्रत्येक मनुष्य को अपने मूल की सुरक्षा एवं संरक्षा सदैव करते रहना चाहिए अन्यथा जीवन रूपी विशाल वृक्ष कभी भी धराशायी हो सकता है |*
*प्रत्येक मनुष्य को अपने माता-पिता में ही परमात्मा के दर्शन करने चाहिए क्योंकि उन्हीं के संयोग से इस धरा धाम पर मनुष्य का जन्म होता है और मनुष्य परमात्मा को जान पाता है | जीवन का उद्गम स्रोत माता-पिता हैं इसलिए अपने मूल स्रोत को कभी भी नहीं भूलना चाहिए |*