*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार से ज्ञानार्जन करने का प्रयास करता है | जब से मनुष्य का इस धरा धाम पर विकास हुआ तब से ही ज्ञान की महिमा किसी न किसी ढंग से , किसी न किसी रूप में मनुष्य के साथ जुड़ी रही है | मनुष्य की सभ्यता - संस्कृति , मनुष्य का जीवन सब कुछ ज्ञान की ही देन है | मनुष्य और पशु में यदि कोई मौलिक भेद है तो वह है ज्ञान का भेद | कुल मिलाकर यदि यह कहा जाय कि मानव जीवन में ज्ञान का बहुत बड़ा महत्व है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी , परंतु प्रश्न यह उठता है कि आखिर ज्ञान है क्या ? इस पर हमारे महापुरुष बताते हैं कि ज्ञान विचार है , ज्ञान एक तरह बुद्धि है , ज्ञान विश्लेषण एवं ज्ञान अनुभूति है | जहां पश्चिमी देशों में ज्ञान का अर्थ होता है ज्ञान के साथ प्रेम , वहीं हमारे यहां ज्ञान को दर्शन कहा गया है | दर्शन का मतलब है जो हमको देखना सिखाये , जो हमको दृष्टि दे या जो हमें अनुभव करना सिखाए | हम ज्ञान को अर्थ में परिभाषित नहीं करते बल्कि अनुभव से परिभाषित करते हैं | अनुभव की विशेष बात यह होती है कि अनुभव अपना स्वयं प्रमाण होता है | हमारा व्यक्तित्व , हमारा जीवन में वैसा ही होता है जैसा हम अनुभव करते हैं | हमारा व्यक्तित्व वैसा ही बन जाता है जैसा हमें अनुभव मिलता है , हमारी सोच , हमारा दृष्टिकोण अनुभव के अनुरूप ही होता है | ज्ञान कैसे प्राप्त होगा ? ज्ञान का अनुभव कैसे होगा ? इसके बारे में भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो यह पुस्तक पढ़ने से शब्दों से या स्मृतियों से नहीं प्राप्त हो सकता बल्कि इसके लिए अनुभवी लोगों के पास जाना पड़ेगा | जाना कैसे पड़ेगा ? "तदविद्धि प्रणिपातेन्" अर्थात भक्ति भाव से , विनम्रता से दंडवत प्रणाम करके उनकी शरण में जाना पड़ेगा तब ज्ञान प्राप्त होगा | ज्ञान वही दे सकता है जो ज्ञानी होगा इसलिए यदि ज्ञान के मर्म को समझना है तो ज्ञानी जनों का संग अर्थात सत्संग करना पड़ेगा , क्योंकि कोई भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए श्रद्धा की आवश्यकता होती है बिना श्रद्धा की सत्संग में जाने की इच्छा नहीं होगी और जब तक मनुष्य सज्जनों का संग नहीं करेगा तब तक उसे ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता | किसी चीज को सीखना और ज्ञान प्राप्त करना दोनों भिन्न बातें हैं इसलिए नित्य नए अनुभव प्राप्त करने के लिए सत्संग करना परम आवश्यक है क्योंकि अनुभव से ही मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो सकता है |*
*आज हमारा देश भारत भी पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में है | मोटी मोटी पुस्तकों को पढ़ लेने के बाद लोग स्वयं को ज्ञानी समझने लगे हैं जबकि पुस्तक पढ़ लेने मात्र से ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता | किसी भी ग्रंथ में लिखी विषय वस्तु को हम पढ़ तो सकते हैं परंतु उसके मर्म को जानने के लिए या पुस्तक से प्राप्त ज्ञान को आत्मसात करने के लिए हमें ज्ञानी जनों का आश्रय लेना पड़ेगा | ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने मन के अहंकार को मिटाना पड़ेगा | ज्ञान के विषय में मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अब तक जो जान पाया हूं उसके अनुसार ज्ञान वह है जो हमारी दृष्टि को , हमारी सोच को , हमारे जीवन को संकीर्णता से उबारता है | जो हमें व्यापक बनाता है वही ज्ञान है | जिस ज्ञान को प्राप्त करके मनुष्य का मोह नष्ट हो जाय वही ज्ञान है | ज्ञान केवल बुद्धि का विषय नहीं है बल्कि ज्ञान भाव का भी विषय है ज्ञान की साधना श्रद्धा से होती है श्रद्धा हमें अनुभव के शिखर तक पहुंचाती है , तब हमारा ज्ञान व्यापक बनता है और यह ज्ञान व्यापक होकर हमें भी व्यापक बना देता है | आज के युग में इसी दिव्य ज्ञान के अभाव में हमारा जीवन कलुषित हो गया है क्योंकि आज पवित्रता , भाव , विनम्रता , सकारात्मकता एवं सदाचार पूर्ण जीवन बहुत कम देखने को मिलता है और जब तक यह सब नहीं होगा तब तक उत्कृष्ट ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता | ज्ञान प्राप्त करने का सबसे सरल साधन सत्संग है जहां नित्य जिज्ञासाओं के माध्यम से नवीन ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है परंतु आज लोग सत्संग नहीं करना चाहते हैं जिसके कारण उनको ज्ञान होते हुए भी उस ज्ञान का मर्म नहीं प्राप्त हो पाता | सत्संग में ना आने का कारण एक ही है कि आज का मनुष्य पुस्तक पढ़कर यह समझता है कि मैं बहुत बड़ा ज्ञानी हो गया हूं जबकि यह यथार्थ सत्य है कि मनुष्य पुस्तक पढ़कर कभी भी ज्ञानी नहीं हो सकता है | जब तक पुस्तक की पढ़ी बातों का मर्म नहीं जानेगा और ज्ञान के मर्म को समझने के लिए ज्ञानी जनों के संग अर्थात सत्संग करना ही पड़ता है |*
*प्रत्येक मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि ज्ञान की महिमा में वह सब कुछ है जो जीवन को सार्थक बना सकता है , जीवन को उत्कृष्ट बना सकता है और उत्कर्ष को हमारे जीवन में परिभाषित कर सकता है |*