*मानव जीवन पाकर के समाज में स्थापित होने के लिए मनुष्य को अपने भीतर कछ उत्कृष्ट गुणों को समाहित करना पड़ता है और यह गुण हमको हमारे आदर्शों में देखने को मिलते हैं | इन गुणों में सबसे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक गुण है मनुष्य की व्यवहार कुशलता | यदि इस विषय पर सूक्ष्मता से विचार किया जाय तो तीन बातें महत्वपूर्ण है :- १- व्यक्ति की सही पहचान ! २- उसकी समय पर पहचान ! ३- और व्यक्ति को पहचानने के बाद उससे समुचित व्यवहार ! इन तीनों मापदंडों पर खरे उतरने वाले विरले लोग है होते हैं | यह सारे गुण हमें हनुमान जी में देखने को मिलते हैं | जब हनुमान जी लंका की ओर प्रस्थान करते हैं तो सीता जी से मिलने के पहले वे पाँच लोगों से मिलते हैं :- मैनाक , सुरसा , सिंहिका , लंकिनी और विभीषण | इन पांचों से हनुमान जी का कोई पूर्व परिचय नहीं था वे उन्हें लंका जाते समय मार्ग में ही मिलते हैं | हनुमान जी उन पाँचोॉ को न केवल तुरंत और सही पहचान करते हैं बल्कि उन सब के साथ समुचित एवं अलग-अलग व्यवहार करते हैं ` मैनाक को प्रणाम किया , सुरसा को मां की उपाधि दी , सिंहिका को बिना किसी बात के परलोक भेज दिया , लंकिनी पर मुष्टिका का प्रहार करते हैं और विशेषण से गले मिलकर मित्रता करते हैं | जीवन में सफलता पाने के लिए हनुमान जी की इस अनोखी एवं रोचक व्यवहार के मर्म को समझना नितांत आवश्यक है | जो भी मनुष्य व्यवहार कुशलता को अपना करके किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए यह जान लेता है तो जीवन में कभी भी असफल नहीं होता और ना ही कभी परास्त होता है |*
*आज हम अपने आदर्शों को ना तो पढ़ना चाहते हैं और ना ही सुनना चाहते हैं यही कारण है कि आज मनुष्य की व्यवहार कुशलता में परिवर्तन देखने को मिल रहा है | बहुत से लोग आज व्यक्ति की सही पहचान कर ही नहीं पाते हैं | कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें व्यक्ति की पहचान तो हो जाती है परंतु समय निकल जाने के बाद होती है | इसके लिए उन्हें या तो दुर्जनों के साथ कटु अनुभव से गुजरना पड़ता है या फिर सज्जन व्यक्तियों से पूछना पड़ता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है के दोनों ही स्थितियों में नुकसान पहले ही हो चुका होता है | तीसरी स्थिति तो इन तोनों से भी ज्यादा पीड़ादायक होती है जब व्यक्ति में औरों को समय पर ही परख लेने की क्षमता तो होती है मगर वे उनसे उचित व्यवहार करना ही नहीं जानते | यदि ध्यान से देखा जाय तो मैनाक पर्वत हमें शिक्षा देता है कि हम अपने लक्ष्य पर बढ़ते समय किसी भी प्रकार के प्रलोभन में न पड़े | और हनुमान जी बातों ही बातों में सुरसा को पहचान करके उसे माता की उपाधि देते हैं ` यह हनुमान जी की व्यवहार कुशलता का अनुपम उदाहरण है कि छल करने वाली सिंहिका को बिना किसी बात के परलोक भेजा | हनुमान जी को चोर कहने पर हनुमान जी समझ गए कि लंकिनी में संस्कार नहीं है और कुसंस्कारी को कभी भी क्षमा नहीं करना चाहिए | इसी प्रकार विभीषण के घर पर मंगल प्रतीकों को देखकर हनुमान जी उन ़से मित्रवत व्यवहार करते हैं | इस जीवन में जो भी हनुमान जी के आदर्शों का अनुभव करते हुए पालन करने का प्रयास करता है वह निरंतर सफलता प्राप्त करता चला जाता है |*
- *हम अपने कर्म क्षेत्र में बल और बुद्धि का प्रयोग करते हुए इन पांच प्रकार के लोगों की यथाशीघ्र पहचान कर तथा सबसे अच्छा योग्य व्यवहार करने की कला हनुमान जी के चरित्र से सीख कर अपना मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं |*