*भारत देश अपनी परंपराओं एवं मान्यताओं के लिए जाना जाता है , हमारे देश भारत की मान्यता है कि नर को प्रकट करने वाली नारी ही इस सृष्टि का मूल है | नारी के बिना नर की कल्पना करना भी व्यर्थ है | हमारे शास्त्रों में नारी की पूजा एवं उसका आदर करने का निर्देश स्थान स्थान पर प्राप्त होता है | "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता" की घोषणा हमारे देश भारत में ही की गई है | नारी का प्रथम स्वरूप है कन्या | कन्या का स्वरूप पूजनीय एवं वंदनीय माना गया है | प्रारंभकाल से ही कन्या को पूजनीय मानकर उससे कोई भी सेवा लेने से माता-पिता बचते रहे हैं , यहां तक कि यदि भूलवश कन्या को तनिक पैर छू जाता था तो लोग तुरंत उस कन्या को देवी स्वरूप मानकर प्रायश्चित करने लगते थे क्योंकि जिस कन्या के अंग प्रत्यंग में देवी के स्थित होने की बात हमारे पुराणों में लिखी है उसी कन्या के शरीर में अपना पैर छू जाना महापाप माना जाता था | इस महापाप के प्रायश्चित के रूप में लोग कन्या के पैर स्पर्श करते थे | जब हमारे पूर्वज कन्या के शरीर में अपना पैर छू जाने पर प्रायश्चित रूप से चरण स्पर्श करते थे तो हमारे लिए कन्या से अपना चरण स्पर्श कराने की बात सोचना भी हास्यास्पद लगता है | कन्या को सरस्वती , अनुमति , राका , गौरी तथा लक्ष्मी माना गया है | सरस्वती के रूप में विद्या प्रदान करने वाली महादेवी से अपना चरण स्पर्श कराना कहां तक उचित है ? विवाह के पहले कन्या को गौरी अर्थात् जगतजननी पार्वती के रूप में माना जाता है ! जो जगत की जननी है उससे अपना चरण स्पर्श करवाना कहां तक उचित है ? उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमारे पूर्वज इन मान्यताओं को मानते चले आए है | श्रीमद् देवी भागवत में भगवान वेदव्यास ने कन्या को पूजनीय मानते हुए उसकी पूजा करने का निर्देश भी दिया है | इस प्रकार कन्या सदैव पूज्यनीय है और पूज्यनीय से अपने पैर छुआना या सेवा कराना हमारी परंपरा नहीं रही है |*
*आदि युग परिवर्तन के इस काल में , आधुनिकता के बवंडर में लोग घोषणा करते हैं "बेटा बेटी एक समान" और ऐसा कह कर वह स्वयं को क्रान्तिकारी एवं युगपरिवर्तक दिखाने का प्रयास करते हैं | आज जो लोग "बेटा बेटी एक समान" कह कर पुत्र के बराबर पुत्री को सम्मान देते हैं और स्वयं को क्रांतिकारी मानने लगते हैं उनको मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूंगा आज कन्या को सिर्फ पुत्र के समान बताया जा रहा है जबकि हमारे शास्त्रों में कन्या को सदैव पुत्र से अधिक महत्व दिया गया है | हमारे शास्त्रों में स्पष्ट लिखा हुआ है "दश पुत्र समा कन्या" अर्थात एक कन्या दस पुत्रों के बराबर होती है | कुछ लोग यह भी कहते हैं कि संतान को अभिवादन करने की परंपरा सिखाई जानी चाहिए ऐसे सभी विद्वानों को यह विचार करना चाहिए कि अभिवादन करने एवं प्रणाम करने में भेद है | प्रणाम करने में भी भेद हैं अपने पूज्यनीय के समक्ष या अपने आराध्य देवता के समक्ष साष्टांग दंडवत प्रणाम करना समर्पण की भावना है वही किसी को हाथ जोड़कर प्रणाम करना उसका स्वागत एवं अभिवादन है | परंतु आज चर्चा होती है कि जब पुत्री पुत्र के समान है तो उसे अपना चरण स्पर्श क्यों नहीं कराया जा सकता ? इस कराल कलयुग में चरण स्पर्श कराना तो छोटी बात है लोग अपनी कन्याओं से अनेकानेक ऐसे कृत्य करवा रहे हैं जो निंदनीय माना जाता है | जो पूज्यनीय है उससे चरण स्पर्श कराना या फिर ऐसे कर्म कराना कहां तक उचित है ? यह आज के सभ्य समाज को विचार करने की आवश्यकता है , परंतु आज शायद विचार करने की शक्ति क्षीण हो गई है | जिस कन्या को विवाह उपरांत लक्ष्मी माना जाता है उसी कन्या को विवाह के पहले गौरी मानने की परंपरा रही है ऐसे में सृष्टि के मूल नारी के प्रथम स्वरूप से अपनी पूजा करवाना या उनसे अपना चरण स्पर्श करवाना आधुनिकता नहीं बल्कि मूर्खता ही कही जाएगी |*
*कन्या सदैव से पूजनीय रही है और आगे भी रहेगी क्योंकि कन्या ही इस सृष्टि का मूल है और जब हम अपने मूल का सम्मान नहीं कर पाते हैं तो हमारे पास कुछ भी नहीं बचता है क्योंकि जिसने मूल गवा दिया वह अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएगा |*