*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , वह अपने क्रियाकलापों के द्वारा एक सुंदर समाज का निर्माण करता है | समाज से ही राष्ट्र बनता है परंतु राष्ट्र एवं समाज की प्रथम इकाई परिवार को कहा जाता है | जब परिवार सुंदर होगा , परिवार में सामंजस्य अच्छा होगा तभी एक सुंदर समाज का निर्माण किया जा सकता है | परिवार के लोगों का आपसी सामंजस्य , एक दूसरे के प्रति निष्ठा का भाव एवं समर्पण का होना बहुत आवश्यक है | परिवार को सुंदर बनाए बिना सुंदर समाज का निर्माण कदापि नहीं हो सकता | प्रायः लोग परिवार में भाँति - भाँति के आयोजन करते हैं इन आयोजनों में कोई बाहर का आए या ना आए परंतु घर के सभी सदस्यों को उपस्थित होना आवश्यक होता है तभी इन आयोजनों का आनंद आता है | हमें इतिहास में यदि परिवार का आदर्श देखना हो तो अयोध्या के महाराज दशरथ का परिवार देखना चाहिए | जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम , लक्ष्मण एवं मैया जानकी का बनवास हो गया और अयोध्या के लोग भरत जी को राजा बनाना चाहते थे तब भरत जी ने स्पष्ट कर दिया था कि :- "जब परिवार के लोग कहीं बाहर व्यस्त हों तो घर पर कोई आयोजन नहीं करना चाहिए |" अर्थात हमारे भैया श्री राम , मैया जानकी एवं अनुज लक्ष्मण वनवास में अपना दिन काट रहे हैं और आप लोग हमें राजा बनाना चाहते हैं कहां तक उचित है ? क्योंकि किसी भी आयोजन का आनंद तब तक नहीं प्राप्त हो सकता है जब तक परिवार के सभी सदस्य उपस्थित ना हो | कभी-कभी इन बातों का लोग गलत अर्थ निकाल लेते हैं | एक सुंदर समाज की परिकल्पना करने वाले अपने परिवार को सुंदर नहीं बना पाते और इसका दोष परमात्मा को देते हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए |*
*आज के व्यस्ततम जीवन में मनुष्य इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि वह अपने परिवार एवं समाज पर ध्यान ही नहीं दे पाता | जिस परिवार से निकलकर वह समाज में स्थापित हुआ है , जिस समाज में रहकर उसकी पहचान बनी है वह उस परिवार को छोड़कर अन्यत्र आनंद लिया करता है जबकि सर्वप्रथम मनुष्य को अपने परिवार पर ध्यान देना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं घर पर भव्य आयोजन (कथा - सतसंग - विवाहादि) होते हैं परंतु घर के सदस्य उन आयोजनों में किसी न किसी व्यस्तता का बहाना करके सम्मिलित नहीं हो पा रहे हैं | सतसंग कथा में पधारे श्रोताओं के बैठने की सुंदर व्यवस्था करके स्वयं नहीं बैठ पाते हैं | ऐसे में उस परिवार के आयोजन का रंग फीका हो जाता है | इसीलिए कहा गया है कि "जब घर के सदस्य कहीं बाहर व्यस्त हों तो घर पर कोई आयोजन कदापि नहीं करना चाहिए" परंतु लोग इस सूक्ति को व्यंग मान लेते हैं और इसकी गहराई में नहीं जाना चाहते | विचार कीजिए किसी भी आयोजन में जब घर के लोग सम्मिलित नहीं होंगे तो समाज के सैकड़ों लोगों का सम्मिलित होना व्यर्थ ही है , क्योंकि समाज के लोग आयोजन के समापन पर अपने अपने घर चले जाते हैं परंतु परिवार के लोग उसी एक छत के नीचे जीवन यापन करते हैं | इसलिए किसी भी आयोजन में परिवार के लोगों का उपस्थित रहना परम आवश्यक कहा गया है | परिवार के लोगों के बिना भी आयोजन संपन्न हो जाते हैं परंतु ना तो वह भाव रहता है और ना कि वह आनंद ही प्राप्त हो पाता है , परंतु आज मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है कि उसे अपने मूल उत्पत्ति स्थान का ध्यान ही नहीं रह गया है | यही कारण है कि परिवार बिखरते चले जा रहे हैं | किसी भी परिवार को समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करने के लिए आपसी सामंजस्य एवं समर्पण की भावना का होना इसीलिए परम आवश्यक है |*
*एक परिवार ही समाज की प्रथम ईकाई है और समाज के ना होने की स्थिति में राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता इसलिए इस जीवन की प्रथम इकाई परिवार से सदैव जुड़े रहने का प्रयास करना चाहिए |*