*पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।* *प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥* *हमारे सनातन
धर्म में नवरात्र पर्व के तीसरे दिन महामाया चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है | चंद्रघंटा की साधना करने से मनुष्य को प्रत्येक सुख , सुविधा , ऐश्वर्य , धन एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है | सांसारिक सुख , वैभव आज की प्राप्ति के लिए चंद्रघंटा की आराधना प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए | जिसके शीश पर घंटे के आकार का चंद्र विराजमान हो ऐसी देवी को चंद्रघंटा कहा गया है | चंद्रघंटा वीरता का प्रतीक हैं | बदलते सामाजिक परिवेश में स्त्रियों के लिए एक अनजाना भय तो दिखता है मगर वो आज इससे भयभीत होकर चुप नहीं बैठी है | 'अति सौम्य अति रौद्र' रूपा स्त्री जानती है कहां झुकना है और कहां झुकाना है | संसार के उद्गम का स्रोत आदि शक्ति है | माना जाता है कि इस विस्तृत, अपरिमित और अचंभित करने वाले संसार का निर्माण इसी आदि शक्ति से हुआ है | वैसे भी प्रकृति में सृजन क्षमता स्त्री को ही प्राप्त है | यह प्रकृति और आदि शक्ति स्त्री रूपा ही तो है | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के रज-रज में जिस ऊर्जा का संचार है, वह स्त्री रूपा है | नवरात्र का त्यौहार हमें प्रत्येक वर्ष इस बात का स्मरण कराता है | यह मात्र त्यौहार या पूजा नहीं है, बल्कि नारी शक्ति की महत्ता समझने का अवसर है | माँ दुर्गा के नव रूप, स्त्री के नौ कलाओं की परिचायक हैं |* *आज के परिवेश में भी माँ भवानी अपने जिन रूपों में वंदनीय हैं, आज के स्त्री में भी वही सृजन, पालन और संहार की अभूतपूर्व शक्ति है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि माँ दुर्गा के नव रूप जिन आनंदों और शक्तियों से भरे हैं, आज की स्त्री उन्हीं शक्तियों और भावनाओं से सुसज्जित हैं | आज स्त्री सशक्त है | बदलते समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है | संयम, ज्ञान, समझ, धैर्य, आत्मविश्वास और साहस से वह आगे बढ़ रही है | शक्ति का अर्थ सिर्फ शारीरिक बल नहीं होता है | शक्ति का अर्थ मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी है | नारी इस संतुलन के शिकार पर है जो अध्यात्म, माया और आधुनिकता का अद्भुत संयोजन है | इस
समाज का भी उत्तरदायित्व है कि नवरात्र में सिर्फ शक्ति की उपासना ही नहीं करें बल्कि स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना रखें | भ्रूण हत्या, दहेज़, हिंसा, बलात्कार से मुक्त समाज ही माँ दुर्गा की असली पूजा होगी एवं भयमुक्त नारी ही माँ दुर्गा की असल आराधक होगी | इस बदलते और स्त्रियों के लिए और घातक होते दौर में स्त्री को अपने शक्ति रूप का स्मरण करना होगा | आज स्त्री ने हर रूप में स्वयं को स्थापित किया है। रुढिवादी सोच के कैद में फंसी स्त्री इन बंधनों से स्वतन्त्र हो रही है |* *यदि सृष्टि को सम्हाल कर रखना है तो पुरुष प्रधान समाज को नारी शक्ति का सम्मान करते हुए उनका संरक्षण व कदम कदम पर उचित सहयोग करना ही होगा |*